faith and belief

आस्था और विश्वास एक मानसिक बीमारी

By Ritu Bhiva March 26, 2022 01:52 0 comments

एक किसान का बछड़ा मर गया,  गाय ने दूध देना बंद कर दिया,  किसान ने मरे हुए बछड़े के अंदर भूषा भरकर उसे खड़ा कर दिया,  गाय जीवित बछड़ा समझकर उसके चमड़े को चाटती और फिर दूध देना शूरु कर दिया,   "कबीरा कहे ए जग अंधा,  अंधी जैसी गाय।"  "बछड़ा था जो मर गया,  झूठा चाम चटाय।," आज दूर्गाभक्तो की मनस्थिति अंधी गाय की तरह ही है। 'असली माई और नकली माई की पहचान ही नहीं है',   "देश की अब जाग्रति जनता उस हर इन्सान को, चाहे वह किसी पद या पोस्ट में कितने भी ऊंचे ओहदे पर बैठा हो,  अपने आप को ज्ञानी और विद्वान समझता हो,  लेकिन

(1)  यदि वह सावन महीने को पवित्र समझकर,  भोले शंकर से बिना कर्म किए फल प्राप्ति की आशा में,  पढ़ाई-लिखाई,  काम-धंधा,  नौकरी छोड़कर,  कावर कंधे पर लेकर ढोता है, उसकी तुलना गधे से करना,  गधे का ही अपमान है।

(2)  यदि वह करवा चौथ की ढोंगी कथा कहानियों को सही मानकर,  उसकी पूजा-पाठ करते हुए अपनी उम्र बढ़ाने का ढोंग करता है,  ऐसे लोगों को समझदार जनता मूर्ख और जाहिल ही समझती है।

(3)  यदि वह इन्सान की मूड़ी को कटने के बाद,  हाथी की मूड़ी को जोड़कर जीवित करने (गणेश जी) पर विश्वास करता है,  उसकी पूजा-पाठ करते हुए फल प्राप्ति की उम्मीद करता है, ऐसे लोगों को,  आज के वैज्ञानिक युग में समझदार जनता जाहिल और अंधविश्वासी समझती है।

(4)  यदि वह गाय को माता समझकर,  उसके मूत्र और गोबर को दवा समझकर प्रयोग करता,  गाय (जानवर) को लेकर किसी कारण वस,  किसी इन्सान पर अत्याचार करता या करवाता है,  ऐसे लोगों को अब समझदार जनता नासमझ और जाहिल से कम नहीं समझती है।

(5)  यदि कोई नदी को माई समझकर,  उसकी आरती करता है,  पंडितों से पूजा करवाता है,  उनके पैर पूजता है और उन्हें दान दक्षिणा देता है,  तथा उस पूजा से अच्छे फल प्राप्ति की कामना करता है,  ऐसे लोगों को अब समझदार जनता अनपढ़, गंवार और पाखंडी से कम नहीं समझती है।

(6)  आज के वैज्ञानिक युग में,  जो मोबाइल पर पूरी दुनिया का हालचाल देख और समझ रहा है,  फिर भी ढोंगी पाखंडी,  कपोल कल्पित सत्यनारायण की कथा में विश्वास करते हुए अच्छी मनोकामना की उम्मीद करता है,  ऐसे लोगों को, अब समझदार जनता दुनिया का सबसे बड़ा मूर्ख समझती है।

(7)  जो लोग हजारों साल से धर्म के नाम पर जात-पात,  ऊंच-नीच,  छुआछूत,  पाप-पुण्य आदि दिमागी मानसिक कचरे को पहले साफ करने के बजाय,  उसे बढ़ाने में मदद कर रहे हैं और स्वच्छ भारत का अभियान चलाकर सिर्फ देश की जनता के साथ ढोंग कर रहे हैं,  ऐसे लोगों को भी समझदार जनता किसी खणयंत्रकारी से कम नहीं समझती है।

बस लिस्ट तो फिलहाल बहुत लम्बी है,  समझदारों के लिए इतना इशारा काफी है,  लेकिन अंधभक्त इस पर ज्यादा न सोचें, अन्यथा खोपड़ी खराब होने का खतरा बढ़ सकता है,  अपनी तर्कबुद्धि से किसी बात को पहले जाने,  फिर मानें  इस समय सही में,  करोना वायरस ने भी इन पाखंडियों के दिमाग को कुछ हद तक ठीक कर दिया है। डोज जारी रहना चाहिए, अन्यथा करोना वायरस जाते ही,  ए फिर बरसाती मेंढक की तरह टर्र टर्र करते दिखाई देने लगेंगे,  कुछ अंधभक्त कहते मिल जाएंगे कि,  आप को किसी की आस्था और विश्वास पर चोट नहीं करना चाहिए।  तो क्या हमारी आस्था कुछ भी नहीं है?  क्या आप हमारी आस्था का खयाल रखते है?

लेखक : शूद्र शिवशंकर सिंह यादव

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