Education System in India

कैसे शिक्षा का स्तर ही किसी देश व समाज की प्रगति का मूल स्तम्भ है?

By Ritu Bhiva April 30, 2022 02:06 0 comments

जिस समाज में जैसे व्यक्ति होंगे वैसा ही वहाँ के समाज का निर्माण होगा। किसी देश या समाज का उत्थान या पतन इस बात पर निर्भर करता है कि उस देश व समाज के नागरिक किस स्तर के हैं और यह स्तर वहाँ की शिक्षा के स्तर पर निर्भर रहता है। व्यक्ति के उज्वल भविष्य का निर्माण और समाज के उत्थान में शिक्षा का विशेष महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।

जिन देशों ने अपना भला-बुरा निर्माण किया है, उसमें शिक्षा को ही प्रधान साधन बनाया है। जिसके फलस्वरूप बहुत से देशों ने अभूतपूर्व प्रगति की है जैसे जर्मनी, इटली , रूस और चीन, जापान, युगोस्लाविया, स्विटजरलैंड, क्यूबा आदि ने अपना विशेष निर्माण इसी शताब्दी में किया हैं। यह सब वहाँ की शिक्षा के स्तर में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने से ही संभव हुआ। व्यक्ति का बौद्धिक निर्माण वैज्ञानिक एवं तकनीकी व गैर तकनीकी उच्च शिक्षा पर ही निर्भर करता है।

भारत देश में भी इसी तरह यदि शैक्षणिक क्षेत्र में विशेष ध्यान दिया जाये तो अभूतपूर्व सुधार किया जा सकता है और देश के मानव जीवन के स्तर में विशेष परिवर्तन हो सकता है। इस प्रकार की विशेष पहल करने से देश की जनता में ब्याप्त गरीबी व बेरोजगारी में कमी लाई जा सकती है। विशेष शिक्षा प्राप्त व्यक्ति स्वत: ही अपने जीवन स्तर में सुधार लाने का प्रयास कर सकता है।

जहाँ तक सम्भव हो सके प्रत्येक व्यक्ति को अपनी संतानों की शिक्षा के प्रति प्रारम्भ से ही विशेष ध्यान देना चाहिए अन्यथा थोड़ी सी असावधानी होने पर जब बच्चों का शिक्षा का प्रारम्भिक स्तर बिगड़ जाता है तो उनमें स्वयं की हीन भावना उत्पन्न होने लगती है और वे अपनी आगे की शिक्षा ग्रहण करने में अभिरुचि नहीं रखने लगते हैं। ऐसी स्थिति में या तो अपनी शिक्षा बीच में अधूरी छोड़ कर चुप बैठ जाते हैं, जिन्हें आगे की शिक्षा ग्रहण कराने के लिए अविभावकों को भी काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। आगे की शिक्षा ग्रहण में अभिरुचि न रखने के कारण निराश ही हो जाते हैं जिसके फलस्वरूप पारिवारिक स्तर में सुधार नहीं आ पाता है।

प्रत्येक अविभावक अपनी बृद्धावस्था आने पर शारीरिक शिथिलता या असहाय की स्थिति आने पर अपनी ही संतानों पर निर्भर हो जाता है। ऐसे समय में यदि उनकी संतानें उनके जीवन का सहारा नहीं बन पाती हैं तो दोनों के लिए ही जीवन यापन के लिए कष्टदायी हो जाता है।

अत: मेरा विशेष सुझाव कि वे अपनी संतानों की बेहतर शिक्षा के लिए प्रारम्भिक शिक्षा से ही विशेष ध्यान दें तो उचित होगा, उनकी प्रारम्भिक शिक्षा सही होगी तो उनमें आगे की शिक्षा ग्रहण करने में स्वत: ही अभिरुचि बनी रहेगी और वे स्वयं ही अपना मार्ग प्रशस्त कर लेगे।

लेखक : पुत्तीलाल भारती

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