बहुजन समाज पार्टी की हरियाणा प्रदेश की पिछले 38 सालों की कारगुजारी
By Site Admin October 25, 2022 11:57 0 commentsकुछ प्रकांड विद्वान बीएसपी के बारे में ये सोचते हैं कि हम सिर्फ़ बहनजी की वाह-वाई करके ही सरकार बना लेंगे। इसके साथ-साथ बीएसपी के अलावा कोई दूसरा सामाजिक संगठन, छात्र संगठन और कोई अन्य विंग बनाने से बीएसपी कमजोर हो जायेगी। ये लोकतंत्र है मेरे प्यारे साथियों, यहां राजनीतिक शक्ति का ऊपर से नीचे तक बटवारा होता है। आज मैं आप को और एक मजेदार बात बताता हूं। हमारे बहुजन समाज के लोगों और शीर्ष नेतृत्व का ये मानना है कि जब हमने यूपी को जीत लिया है तो बाकि राज्यों में क्या जरुरत है मेहनत करने की। साल 2009 में यूपी वालों ने एक नारा लगाया था और कहा था कि यूपी हुई हमारी है अब दिल्ली की बारी है। ये नारा बीएसपी प्रमुख ने जब दिया था जब वो यूपी की चौथी बार सीएम बनी थीं। उस समय अगर यूपी की सीएम रहते हुए उन्होंने अपने दल को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित कर लिया होता तो आज यूपी की भरपाई दूसरे राज्यों ने कर दी होती।
बीएसपी आज भी ये कहती नही थकती कि आप हमे एक बार यूपी में सत्ता मिल जानें दो बाकि पूरे देश में हमें मेहनत करने की कोई जरुरत नहीं है कयोंकि पूरे देश में यूपी से लहर बनेगी। यूपी से ही केंद्र और पूरे देश के सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में बीएसपी की सरकार अपने आप बन जायेगी। जो इस तरह के तर्क दे रहे हैं मेरे उन साथियों से मैं ये कहना चाहूंगा कि आप अपने ऑफिस मत जाओ, महीने के 25 दिन और लास्ट के पांच दिन जाओ और अपने बॉस से एक महीने की पूरी सैलरी मांगों। आज बीजेपी लगभग सभी बड़े राज्यों में मजबूत है लेकिन फिर भी देश के यूपी को छोड़कर दूसरे बड़े राज्य जिनमे महाराष्ट्र बीजेपी अपने दम पर सरकार नही बना पाई, बंगाल में नही बना पाई, अब बिहार में उनकी हैसियत छोटी हो गई है। केरल में बीजेपी ने कभी 10 विधायक नही जिताए, पंजाब में आज तक बीजेपी 20 एमएलए नही जीता पाई। आप प्रकांड विद्वान मुझे ये बताओ की बीजेपी की केंद्र और बहुत सारे राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में सरकार है? लेकिन क्या कारण है वो अपने सारे दम को अपने चुनाव में लगा देते हैं? उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष बूथ पर जाकर एमसी तक के चुनाव में अपनी पार्टी को सत्ता में लाने के लिए जबरदस्त संगठन शक्ति और मैनेजमेंट करते हैं।
अब अगर हम बीएसपी अध्यक्ष की बात करे तो उनको अपने ट्वीटर और पारिवारिक चिंताओं से ही फुर्सत नही है। मैं फिर इस बात को दोबारा दोहराना चाहता हूं बड़े-बड़े शहरों के अपने एसी केबिन में बैठकर आप बीएसपी और उसकी विचारधारा, कारगुजारी, संगठन को नही समझ सकते। अब रही बात हरियाणा के युवाओं की वो लोग पढ़ने के लिए यूनिवर्सिटी गए, कालेज गए वहा से वो अपनी पढाई के साथ-साथ हमारी बीएसपी पार्टी को कैसे मजबूत करना है ये भी सीख कर आए है। वो सभी चीजे सिख कर आए जिनसे बीएसपी को मजबूती मिले। इसके साथ-साथ हरियाणा की प्रत्येक यूनिवर्सिटी में बीएसपी के नेता और उनकी गाड़ी पूरे दल बल के साथ गई है। साल 2009 में बीएसपी ने लोकसभा में 16% वोट लिया था अकेले अपने दम पर। 1998 में हरियाणा में बीएसपी का इनेलो के साथ गठबंधन हुआ, अंबाला से एक सांसद अमन कुमार नागरा बीएसपी से जीता था, उस समय वो हरियाणा का प्रदेश अध्यक्ष था। इनेलो के साथ गठबंधन में सन 1998 में जीता था। इसके बाद लगातार हरियाणा में बीएसपी ने 1 एमएलए जिताया है जिनमे गुर्जर, मुस्लिम, बरहामन, सैनी और भी एक दो ओबीसी एमएलए जिताया है। साल 2019 के हुए लोकसभा और विधानसभा चुनाव में बीएसपी 0 सीट पर है। लोकसभा में 3 से साढ़े तीन प्रतिशत और विधानसभा में चार प्रतिशत वोट मिला है।
इसका जिम्मेदार हरियाणा का युवा नही है बल्कि हमारा राष्ट्रीय नेतृव और हरियाणा प्रदेश नेतृत्व जिम्मेदार है। हरियाणा में ये जो वोट इतना बचा हुआ है ये बीएसपी की मेहनत का वोट नही है बल्कि उन सभी युनिवर्सिटी और कालेज के छात्र नेताओं की मेहनत का नतीजा है जो उन्होनें अपने यूथ को केडर कैंप लगाकर तैयार किया हुआ है। इसके बाद जो युवा तैयार हुए वो सभी अपने-अपने गांव में काम करने लगे। ये सभी स्टूडेंट्स जिनमे पीएचडी स्कॉलर और नॉर्मल स्टूडेंट अपने-अपने बूथ की रखवाली करते हैं।
बीएसपी हरियाणा 2009 के चुनाव के बाद इनेलो, जेजेपी, एलएसपी और हज्का से गठबंधन कर चुकी है लेकिन आपके महान क्रांतिकारी पंडित सतीश चन्द्र मिश्रा जो हरियाणा में बार-बार आए और यहां सौदे बाजी करके गए है। हरियाणा के युवाओं की मैं खासकर उस तबके की बात कर रहा हूं जो बीएसपी का कोर वोट बैंक है आज भी 80% पढ़ा लिखा युवा बीबीएफ में ड्यूटी, और बीएसपी संगठन में सक्रिय काम करता है। इलेक्शन में अपने बूथ को मजबूत करने के लिए बूथ एजेंट बनता है सवर्ण समाज की गलियां खाता है। हरियाणा बीएसपी काम करने की तो दूर की बात है वो तो आज तक युवाओं को उनका संगठन में भी उचित प्रतिनिधित्व नही दे पाई है। जो लोग कभी अपने बूथ पर वोट डालने तक नही जाते है वो लोग कहते हैं कि हरियाणा का यूथ कुछ करता नही है।
जब महाराष्ट्र के लोगों ने बाबा साहब अम्बेडकर को छोड़कर जय भीम जय भीम करते गांधी के पैरों में जा गिरना स्वीकार किया। उसके बाद जो नेता बाबा साहब अम्बेडकर की विचारधारा को नकार कर दूसरे राजनितिक दलों में चले गए थे उन सभी को एक बार तो उन दलों ने एमपी एमएलए बनाया और उसके बाद उनको एक-एक करके मिटटी में मिला दिया गया। अब वर्तमान में भी जो दल बहुजन समाज के नाम पर राजनीती कर रहे हैं उनकी हालत भी कुछ ऐसी ही है एक बार तो सवर्णों ने अपना वोट दे दिया और अब उनके आंदोलन को जब वो तोड़ने में कामयाब हो गए हैं तो उनको क्या जरुरत है बीएसपी को वोट देने की। बीएसपी के लोगों ने 2007 में ये मान लिया की हम कांशीराम की विचारधारा पर चलकर पूर्ण बहुमत की सरकार नही बना सकते।
आज बीएसपी अपनी विचारधारा और अपने मुद्दों से बहुत दूर है। उस समय अपनी सहूलियत के हिसाब से विचारधारा में जो बदलाव किया गया आज उसी का नतीजा है की बीएसपी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। जब-जब बहुजन समाज के नेता और उनके राजनीतिक दल अपनी विचारधारा से भटके है तब-तब गुलामी के बंधन बहुजन समाज के और ज्यादा बढ़े हैं। अब भारत का सवर्ण समाज बीएसपी को वोट क्यों नहीं कर रहा है? अब कहा गई वो सोसल इंजीनियरिंग और सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाए का नारा। जब-जब भी बहुजन आन्दोलन और उसके नेता अपनी मंजिल की और कदम बढ़ाते हैं तभी मनुवादी साजिश के तहत उनके आंदोलन में घुषपेठ करते है और उनको छोटा सा लालच देकर उनको उनके मुख्य लक्ष्य से भटकाने का प्रयास करते हैं। आप के अकेले के मानवतावादी बनने से पूरा समाज मानवतावादी नही बनेगा। सबसे पहले आपको उस समाज के लिए रोटी कपड़ा और मकान और उनकी सुरक्षा का इंतजाम करना पड़ेगा जो सदियों से पीड़ित हैं दबाया गया है कुचला गया है। उसके बाद आप उन वर्गों का भी ध्यान रखिए जिन वर्गों के पास हमेशा सत्ता और जमीन जायेदात रही है। आप इन दोनों को एक ही कमरे में इक्कठे नही रख सकते।
लेखक: अशोक कुमार मुवाल, राजनीती शास्त्र M.A., पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़
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