आज-कल हमारे देश में सभी बुद्धिजीवी, समाज सुधारक एवं राजनीतिज्ञ हिंदू समाज में व्याप्त सामाजिक अन्याय और सामाजिक परिवर्तन की बात करते हैं, लेकिन सामाजिक अन्याय कब, कहां, कैसे और क्यों शुरू हुआ, इसकी जड़ क्या है, किसने और किस भावना से अन्याय किया, उसकी जड़ की गहराई में जाने की कोशिश कोई नहीं करता है। जब तक उस मूल जड़ का पता न लगा लिया जाए और उसे जड़ से ही खत्म न कर दिया जाए, तब तक ऊपर से सामाजिक न्याय को थोपने का कोई अर्थ पूर्ण उद्देश्य नहीं है। ऊपर से कितना भी परिवर्तन करते रहेंगे, जब तक जड़ें रहेंगी, उसमें से अन्याय का पत्ता पनपना चालू रहेगा।
वैसे तो हिंदू समाज की सभी धार्मिक पुस्तकें वेद, पुराण, उपनिषद, रामायण, महाभारत, रामचरितमानस तथा अनेक तरह की काल्पनिक कथा व कहानियां, मनुवादियों द्वारा अपने स्वार्थ के लिए लिखी गई हैं। तथा इन पुस्तकों के द्वारा नकली भगवान को महिमामंडित करते हुए, ब्राह्मणों को देवताओं से भी ऊपर, तथा शूद्रों को जानवरों से भी बदतर बना दिया गया है। यही धार्मिक पुस्तकें सामाजिक अन्याय की जड़ है। यहां हम एक पुस्तक तुलसीकृत रामचरितमानस की समीक्षा करते हुए देखेंगे कि, तुलसी के राम, एक भगवान है, मर्यादा पुरुषोत्तम या साधारण इंसान और इसका हिंदू समाज पर कितना प्रभाव पड़ता दिखाई दे रहा है।
रामचरित्र मानस का सारांस
राम रमन्ना दोई जन्ना, एक ठाकुर एक बाभन्ना।
एक ने एक की नारी चुराई, आपस में तकरार मचाई।
ठाकुर मारि दिहें बाभन्ना, तुलसी लिखै नौबोझन पन्ना।
कुलीन परिवार
रामचंद्र जी हत्यारे पिता दशरथ के पुत्र थे, जिसने बालक श्रवण कुमार जैसे निरपराधी की हत्या की थी, तीन औरतें थी, तीनों से दशरथ को कोई संतान उत्पन्न नहीं हुई। तीनों को गलत तरीके से नियोग के द्वारा तीन ऋषियों होता, अदवयु और युक्ता से पुत्र पैदा कराया गया। जिसे खीर खाने का प्रसाद कहा जाता है। तीनों रानियों में आपस में मित्रता नहीं थी, तभी तो एक दूसरे के पुत्र को सुखी नहीं देखना चाहती थी।
राम का राज्याभिषेक
राम ने भरत को धोखे में रखकर छल कपट से राज्याभिषेक कराया। दक्षिण भारत के एक रामायण में यह प्रसंग मिलता है कि, जब दशरथ को दोनों रानियों से पुत्र पैदा नहीं हुआ, तब दशरथ कैकेय नरेश के पास गए और उनकी पुत्री से विवाह कराने का आग्रह किया। कैकेई के पिता ने, एक शर्त पर विवाह करने को राजी हो गए और कहा कि, उनकी पुत्री के गर्भ से जो पुत्र पैदा होगा वही राजगद्दी पर बैठेगा। धर्म के अनुसार ज्येष्ठ पुत्र ही राज्याभिषेक का अधिकारी होता है। कैकेई के पिता ने एक सवाल और पूछा, यदि पहले की दोनों रानियों को कैकेई से पहले पुत्र पैदा हो जाएगा तो, धर्म संकट उत्पन्न हो जाएगा। इस प्रश्न के उत्तर में दशरथ ने पूरा राज्य कैकई के नाम लिखकर, उसके होने वाले पुत्र को राज्य का उत्तराधिकारी बनाने का वचन देकर, विवाह रचाया और इस तरह पूरा राजपाट, दशरथ का न होकर, कैकई का हो गया था। दुर्भाग्यवश राम ज्येष्ठ पुत्र पैदा हो गये। राम को यह धर्म संकट मालूम था।
जब भरत ननिहाल में थे, तब राम मात्र 12 साल के थे। बशिष्ठ (कुम्भज) से मंत्रणा लेकर, बिना भरत को बुलाए राज्याभिषेक की तैयारी कर दी। कैकई इस छलकपट से अनभिज्ञ थी। मंथरा ने कैकई को उसके अधिकार और राम के खणयंत्र के विरुद्ध, जोर देकर वकालत की। इस पर कैकेई ने राम को चेतावनी देते हुए कहा, हमारे राज्य में रहते हुए, हमारे बेटे से ही छल कपट करते हो, इसलिए हमारे राज्य के बाहर निकल जाओ। इस तरह राम को वनवास और भरत को राजगद्दी मिली।
तुलसी ने इस छल- कपट को पर्दा दिया और दो वरदान के काल्पनिक कहानी की पटकथा रची। प्रश्न उठते हैं कि -
1) - राज्याभिषेक के समय राम ने भरत भाई को निमंत्रण या बुलावा क्यों नहीं भेजा?
2) - रानी कैकेई, दोनों रानियों को छोड़ कर, अकेले युद्ध के मैदान में क्यों गई थी।
3) - लड़ाई के मैदान में जब रथ का लोहे का धूरा टूट गया, तब रानी का कोमल हाथ कैसे रथ को रोक लिया?
4) - मान लिया, रानी ने युद्ध के मैदान में राजा पतिदेव को युद्ध जीतने में सहयोग किया, फिर वरदान की क्या आवश्यकता थी? यह तो उसका नारी धर्म का फर्ज था।
5) - एक मां कैकई, जिसके परिवार में भगवान अवतार लिया हो और जिसे दो वरदान प्राप्त हो। उस वरदान को अपने बेटे के खिलाफ ही क्यों प्रयोग करेगी?
6) - क्या राम का बनवास, उनके परिवार का आंतरिक कलह नहीं था? क्या इसके लिए कोई और जिम्मेदार था?
अबला नारी पर हमला
तुलसी के अनुसार रावण एक उत्तम ब्राह्मण खानदान का पुलत्स्य ऋषि का नाती था। ( उत्तम कुल पुलत्स्य कर नाती ) और सीता के स्वयंवर में भी उस को निमंत्रण देकर बुलाया गया था। फिर पुलत्स्य ऋषि की नतिनी, ब्राह्मण खानदान की शूर्पणखा, ब्राह्मणी से राक्षसी कैसे हुई? वहीं जब विश्व सुंदरी कुलीन राजकुमारी, जंगल में दो योग्य राजकुमारों को अपने योग्य वर देखकर, शादी का आग्रह किया तो कौन सा पाप कर दिया। ऐसे तो उस समय कई बालिकाओं, जैसे सावित्री ने भी ऐसा ही किया था। जंगल में अबला नारी को झूठ बोलकर, मजाक कर, उसका नाक - कान काटकर, अपमानित किया, यह भगवान की कौन सी मर्यादा थी? प्रश्न उठता है?
1) - क्यों नहीं? राम ने दूसरी शादी शूर्पणखा के साथ कर लिया? क्योंकि सीता से कोई अभी संतान भी नहीं थी? खानदान के रीति-रिवाज के अनुसार पिता तीन शादी किए हुए थे। राम भी कर सकते थे।
2) - लक्ष्मण 14 साल के लिए अकेले थे। उससे भी शादी करवा सकते थे।
3) - भगवान को झूठ बोलने की क्या जरूरत थी? कि मेरी शादी हुई है लेकिन छोटे भाई की नहीं हुई है। उसी के पास जाओ। (अहे कुमार मोर लघु भ्राता) क्या भगवान को अकेली निर्दोष नारी के ऊपर हथियार उठाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था। तो फिर मर्यादा पुरुषोत्तम या भगवान कैसे?
सीता हरण
अंतर्यामी भगवान को एक मायावी हिरण का भी पता नहीं चला, उसके पीछे दौड़ पड़े। यहां भी माया रुपी हिरण द्वारा कहना (हाय लक्ष्मण!) सुनकर, जब सीता माता नें लक्ष्मण से आग्रह किया और कहा कि, आपके भाई संकट में है, जाओ! आज्ञा का पालन न करने पर, सीता ने लक्ष्मण को जो कटु वाणी बोली है, वह हिंदू समाज में आज भी, मां और बेटे के बीच, किसी भी मुसीबत में ऐसी बात नहीं कही जा सकती। इस कटु वचन से दोनों में या किसी एक के चरित्र पर संदेह होता है। फिर इस परिवार की कौनसी और कैसी मर्यादा?
बाली वध
तुलसी के अनुसार बाली, सुग्रीव का बड़ा भाई था। छोटे भाई के साथ दुश्मनी में, उसने उसकी औरत को अपने पास रख लिया था। सुग्रीव की औरत को बाली रख लिया और राम की औरत को रावण उठा ले गया। दोनों स्त्री वियोगी, दुखियारे, एक दूसरे का सहयोग करने का समझौता कर लिए। राम ने पीछे से छिपकर, बहेलिये के शिकार की तरह, धर्म के खिलाफ जाकर, बाली का वध कर दिया।
प्रश्न उठता है ?
राम ने मर्यादा के अनुसार, दोनों भाइयों के झगड़े में, एक भाई की बात सुनकर , दूसरे को दोषी मानकर उसका बध क्यों कर दिया? दूसरे का पक्ष क्यों नहीं सुना? क्या तथाकथित दोनों भाइयों को बातचीत कर समझा नहीं सकते थे? राम नें समझौता कराने की कोशिश क्यों नहीं की? दोनों में भाईचारा पैदा क्यों नहीं किया? क्या सिर्फ बाली का बध ही, एक अंतिम रास्ता भगवान राम के पास था। निर्दोष शंबूक ऋषि की हत्या क्यों की? क्या इस तरह की हत्या आज के समाज में उचित है? नहीं, तो फिर उक्त हत्या किस श्रेणी में आता है?
रामचरितमानस के अनुसार सुग्रीव, बाली, हनुमान सभी जानवर जाति के बताए गए हैं और उनकी पत्नियां साधारण नारी की तरह। आज के समाज में संभव है, फिर ऐसी अंधविश्वासी, ढोंगी और पाखंडी राम-लीलाएं क्यों गांव -गांव, शहर-शहर की जाती है?
रावण वध
राम ने प्रतिज्ञा की थी कि, इस धरती को निशाचर विहीन कर दूंगा। ( भुज उठाई प्रन: कीन्ह)। क्या विभीषण राक्षस नहीं था, वह तो राक्षस राज्य के राजा रावण का देशद्रोही भाई था। उसको तो पहले ही मारना चाहिए था।
प्रश्न उठता है ?
1) - राम ने विद्रोही विभीषण राक्षस से क्यों मदद ली?
2) - राम और रावण की दुश्मनी थी, फिर मर्यादा पुरुषोत्तम ने श्रीलंका की निरीह निर्दोष जनता को जलाकर क्यों मार डाला?
3) - सिर्फ अपनी औरत के लिए, दूसरे सम्पन्न खुशहाल राष्ट्र की निरीह जनता को मार डालना, कहां तक उचित है।
हनूमान की पूंछ में, लगन न पाई आग।
सिगरी लंका जल गई, चलें निशाचर भाग।
सीता का परित्याग
प्रश्न है? विवाहित राम के दुखी जीवन में, उनके साथ 14 साल तक बनवास के समय दुख झेलने के बाद, गर्भवती अबला नारी, पतिव्रता औरत को, राम ने बिना बताए जंगल में, बाघ, शेर और भालुओं द्वारा नोचने खाने के लिए क्यों छोड़ा? छोड़ना ही था तो, सोने की लंका के राजा रावण के महल से इतना नरसंहार करके क्यों लाए?
प्रश्न उठता है?
1) - सीता का दोष क्या था और निर्दोष को सजा क्यों दी गई?
2) - यदि अपनी प्रजा की भावनाओं का इतना ही ख्याल था तो, श्रीलंका की प्रजा को समूल नष्ट क्यों किया गया? क्या यह मर्यादा के खिलाफ नहीं है ?
3) - क्या जंगल में छोड़ने के अलावा, भगवान के पास कोई और रास्ता नहीं था। नहीं था, तो विभीषण के पास ही पहुंचा दिए होते।
4) - माना कि जनक ने सीता को कन्यादान में दान दे दिया था, उनका कोई अधिकार नहीं बनता था। लेकिन राम तो, सीता को जनक के पास लौटा सकते थे। अक्सर देखने में आता है कि शादीशुदा कन्या को ससुराल वाले सताते हैं, भगाते हैं, तब भी वह मायके नहीं जाती है। कहीं-कहीं मायके वाले भी उससे कन्नी काट लेते हैं। मायके में आने के बाद भी, उसके साथ तिरस्कृत भाव रखने का जो सामाजिक चलन है, क्या राम के व्यवहार से, इस कुप्रथा को बल नहीं मिलता है?
5) - क्या आज का इंसान ऐसी परिस्थिति से गुजरने वाली अपनी निर्दोष पत्नी के साथ, इस तरह का बर्ताव कर सकता है? कदाचित राम द्वारा सीता को छोड़ने के बाद ही हिंदू समाज में स्त्री छोड़ने की प्रथा चालू हो गई। इसके पहले कभी नहीं थी। किसी भी दुष्कर्म की शिकार हुई महिला को ससंकित और तिरस्कृत भाव से देखने की सामाजिक परंपरा को राम के इस व्यवहार से, समुचित आधार और सामाजिक मनोवल मिलता है।
आत्महत्या
तुलसी के अनुसार, लव कुश दो सुकुमार बच्चों के साथ लड़ाई में राम के सभी महारथी सेनापति, यहां तक कि लक्ष्मण भी हार गए। तब खुद राम को लड़ाई के मैदान में अपने ही बेटों के सामने लड़ना पड़ा। इतना होने पर भी अंतर्यामी भगवान राम को शंका या एहसास तक नहीं हुआ। क्या इतनी भी बुद्धि राम या राम की सेना के पास नहीं थी या फिर सभी घमंड में अंधे हो गए थे। बाप बेटों के बीच लड़ाई देखकर माता सीता दुखी हो गई। धरती फट गई, सीता जी उस में समा गई, अर्थात पहाड़ से खांई में कूदकर आत्महत्या कर ली। राम के कहने पर ही लक्ष्मण ने सीता मैया को बिना बताए जंगल में जानवरों के बीच छोड़ आए थे। बाद में स्त्रीवियोग में दुखी हो गए और पूरा दोष लक्ष्मण पर लगा कर अपमानित किया। वह इस अपमान को बर्दाश्त नहीं कर सका और सरयू नदी में कूदकर आत्महत्या कर ली। बाद में खुद भगवान राम भी अंत में कुंठित होकर अपने किए पर पछतावा करके सरजू नदी में कूदकर आत्महत्या कर ली।
ब्राह्मणवाद
रामचंद्र जी एक क्षत्रिय राजा थे, लेकिन फिर भी तुलसी ने रामचरितमानस में क्षत्रिय वर्ण का वर्णन नहीं किया। पूरे मानस में किसी भी पन्ने को पलटिए, वहां आपको विप्र की बढ़ाई और शूद्र की बुराई के अलावा और कुछ भी नहीं मिलता है। प्रश्न है? क्षत्रिय राजा की कहानी में विप्र व शूद्र का वर्णन क्यों? सत्य तो यह है कि राम को आधार मानकर, तुलसी ने ब्राह्मणवाद को बढ़ावा देने के लिए काल्पनिक कथा के रूप में अनर्गल बातें रामचरितमानस के अंदर कथा के रूप में भर दी है। तुलसी दास लिखते हैं। -
विप्र धेनु सुर संत हित, लीन्ह अनुज अवतार
अर्थात ब्राह्मण, गाय, साधु-संतों की भलाई के लिए भगवान राम ने अवतार लिए हैं। यहां तुलसी ने यह भी स्वीकार कर लिया है कि राम को क्षत्रिय वैश्य या शूद्रों के संवर्धन से कोई लेना-देना नहीं था। यह भी एक आश्चर्य है कि ब्राह्मणों ने क्षत्रियों को हथियार बनाकर ब्राह्मणवाद का विस्तार किया है। क्षत्रियों के हाथ में तलवार थमा कर धर्म के नाम पर, अपनी रक्षा में लगा दिया। लेकिन परोक्ष तौर से क्षत्रियों का भी ब्राह्मणवाद से नुकसान हुआ है। ब्राह्मण परशुराम ने 21 बार क्षत्रियों का संहार किया। लड़ाई से पैदा हुई विधवा महिलाओं को सती प्रथा के रूप में जिंदा जलाकर मार डालने का प्रावधान कर दिया। आज पूरे देश में क्षत्रियो की संख्या कम है तो, इसके लिए सिर्फ ब्राह्मणवाद जिम्मेदार है।
निष्कर्ष
जन्म से मरण तक, यही राम का चरित्र था और आधुनिक युग का कोई भी तर्कशील और बुद्धिमान मानव ऐसे व्यक्ति को समदर्शी भगवान और मर्यादा पुरुषोत्तम मानने को तैयार नहीं होगा, जो कहता है कि चांद समुद्र से निकला है, उसे राहू लगता है, उसपर जो काला धब्बा दिखाई देता है, वह उसका विषभाई है। पृथ्वी अचल है। कछुए की पीठ पर टिकी हुई है। सूर्य रथ के साथ चलता है, आराम करता है, थक भी जाता है और रास्ता भी भूल जाता है। इन दोहों पर मानस में अर्थपूर्ण विचार कीजिए -
कौतुक देख भुलाय पतंगा
रथ समेत रवि थाकेऊ
कमठ सेष रम धर वसुधा के
विश्व भार भर अचल क्षमा सी
लेखक : शूद्र शिवशंकर सिंह यादव
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