Power of Upper Caste

जुल्मी जातियों की आर्थिक, धार्मिक व राजनीतिक शक्ति आखिर मिलती कहाँ से हैं?

By Site Admin August 30, 2022 10:48 0 comments

देश में आए दिन दलितों पर जुल्मी सवर्ण जातियों द्वारा हर क्षेत्र में भेदभाव, अन्यान्य, अत्याचार किए जा रहे हैं। ऐसी घटनाओं के समय दलित वंचित समाज में आक्रोश फूटता है, प्रभावशाली आंदोलन भी होते है लेकिन आर्थिक कमजोरी के कारण वंचित समाज हकों के संघर्ष में हार जाता है। इसी कारण जुल्म करने वालों का दुस्साहस बढ़ता जा रहा है।  रोजगार के अभाव में समाज अपने हक, सम्मान व स्वाभिमान को भूल जाता है। इसलिए वंचित समाज को यह समझना होगा कि आखिर सवर्ण अत्याचारी जातियों की शक्ति के स्त्रोत क्या हैं? इनको मजबूत करने में वंचित समाज का कितना बड़ा योगदान है? ये है आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक। इनको कमजोर करके ही दलित समाज जुल्म की जड़ों को सूखा सकता है। पत्तों को झाड़ने की बजाय जड़ों को खाद पानी देना बंद करना बहुत जरूरी है।

आर्थिक शक्ति

इन जातियों के छोटे बड़े व्यापार के आर्थिक संसाधनों, प्रतिष्ठानों से सामान खरीदना बंद करें, घर, परिवार, रीति रिवाजों में अनावश्यक खरीद न करें।  सवर्णो पर निर्भरता कम करें। और विकल्प में दलित बहुजन समाज खुद दैनिक जीवन के उपयोग की चीजों का छोटा बड़ा मार्केट तैयार करें। और ऐसा करना संभव है। हम तो मेहनतकश हुनरमंद कौम है। लघु उद्योग, प्रोडक्शन, सप्लाई आदि बिजनेस में कूदें ताकि हमारे धन से मजबूत होने वाली जातियां कमजोर पड़े और हमारा धन हमारे बीच में ही रहें। हमें आर्थिक रूप से समृद्ध होना बहुत जरूरी है। धन की कमी से शिक्षा, स्वास्थ्य, सारे आंदोलन व मिशन धराशायी हो जाते है। समाज के विकास और जाति व जुल्म के मुकाबले के लिए धन बड़ा हथियार है।

धार्मिक शक्ति

दलित बहुजन आदिवासी समाज में संतों, महापुरुषों के और उनके अनमोल विचारों का भंडार है, गौरवशाली संस्कृति है। इसलिए दूसरों के थौपे हुए झूठे, अज्ञान और अंधविश्वास के मार्ग की ओर नहीं भटकें।  विडम्बना यह भी है कि दलित समाज जीवन भर उन अत्याचारी जातियों द्वारा थोपे गए काल्पनिक पात्रों की मूर्तियों की पूजा, पूजा स्थलों की तीर्थ यात्राएं करता है, मेलों की भीड़ बनता है। मेहनतकश दलित आदिवासी अपनी गाढ़ी कमाई के धन, समय व ऊर्जा को उनके धार्मिक कर्मकांडो में बर्बाद करता रहता है। इस लूट से पूजा स्थलों के ट्रस्ट पर कब्जा की हुई अत्याचारी जातियां मालोमाल होती हैं, हर तरह से मजबूत होती हैं, जुल्म के हाथ मजबूत और शोषित समाज कमजोर होता है। गुलामी की बेड़ियां और अधिक मजबूत हो जाती है। इस महीन लेकिन लुभावनी साज़िश को समझना होगा।

दलित बहुजन आदिवासी को चाहिए कि वह अपने गौरवशाली इतिहास को पहचाने। हम अब तक बहुत भटके, अब तो वापस अपने घर की ओर लौट आओ। अपने समाज में ही संतो महापुरुषों, देवी देवताओं, साहित्य का अथाह सागर है। अब अत्याचारियों के झूठे इतिहास, काल्पनिक पात्रों का गुणगान, पूजा बंद करे। खुद के गौरवशाली इतिहास को संजोए, संतों की वाणी को गाएं। इसी में हमारी खुशहाली हैं समृद्धि है। इससे जुल्मी शोषक कमजोर होगा।

राजनीतिक शक्ति

दलित बहुजन समाज ने सांस्कृतिक व आर्थिक समृद्धि की बजाए राजनीतिक ताकत को ही सब कुछ समझ लिया। इससे समाज में भारी फूट पड़ गई। फिर विरोधी भी यही चाहता है। इसमें भी दलित समाज हर पार्टी में स्वयं ताकतवर बनने के बजाय सवर्ण जुल्मी जातियों के जातिवादी राजनेताओं का गुलाम बन जाता है। वह अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को भूल कर रात दिन उसी के गुणगान करता है।उसी के लिए भागदौड़ करता है। 

इन राजनीतिक पार्टियों व राजनेताओं ने बहुजन समाज की एकता का भारी नुक़सान किया है।   राजनीतिक महत्वाकांक्षा के अंधे स्वार्थ के खातिर बहुजन समाज के लोग, कार्यकर्ता व राजनेता गांव से लेकर शहर तक हर पार्टी में जुल्मी जातियों के नेताओं का समर्थन व गुलामी करते नजर आते हैं। इन्हें नहीं पता कि वे अपने स्वार्थ के खातिर वंचित समाज को कितना बड़ा धोखा दे रहे हैं, अहित कर रहे हैं। आखिर में ऐसे लोगों को निराशा ही हासिल होती हैं जब सवर्ण लोग इनका उपयोग कर दूध में से मक्खी की तरह बाहर फेंक देते हैं लेकिन तब तक वे स्वयं व समाज का भारी नुकसान कर चुके होते हैं जिसकी भरपाई कतई संभव नहीं होती है।

दलित आदिवासी समाज के वोट से इन जुल्मी जातियों के नेता ताकतवर बनते है। पर्दे के पीछे से नियमों के खिलाफ जाकर भी वे खुद की जाति का साथ देते है और वंचितों शोषितों का विरोध व नुकसान करते हैं।  माना कि हर जुल्मी जाति में कुछ ठीक लोग भी होते हैं लेकिन  बुद्धिजीवी और प्रगतिशील कहलाने वाले ऐसे लोग समय आने पर मुंह पर ताला लगा देते हैं और कुछ अपनी जाति के अन्याय अत्याचार के साथ खड़े नजर आते हैं।

जुल्मी जातियों की आर्थिक, धार्मिक व राजनीतिक शक्ति को मजबूत मत करो, जुल्म की जड़ों को खाद पानी देना बंद कर दो, जड़ें सूख जाएगी। अत: वंचितों को चाहिए कि वे जुल्मी जातियों के आर्थिक, धार्मिक व राजनीतिक शक्ति के स्रोतों को पहचाने और चिंतन मनन करें कि इनको मजबूत कर वंचित समाज खुद के वर्तमान और आने वाली पीढ़ियों का कितना नुक़सान कर रहे है?  यदि वंचित समाज तय कर लें तो शोषण, अत्याचार व अन्याय की जड़ों को सूखा सकता हैं। इसके लिए सामाजिक, धार्मिक कुरीतियों व अंधविश्वासों को छोड़कर स्वयं को सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक और वैचारिक रूप से मजबूत करना होगा।

यही बुद्ध, कबीर, रैदास, फुले व बाबासाहेब का मार्ग है। यही समाज और देश की खुशहाली का मार्ग है।


लेखक : एम. एल. परिहार

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