old woman and daughter-in-law story

अंधविश्वास पाखंडवाद पर एक बुढ़िया और उसकी बहू पर एक जबरदस्त लेख

By Site Admin September 21, 2022 07:08 0 comments

एक समय की बात हैं एक गांव में एक बुढ़िया अपने बेटे और बहू के साथ रहती थी। वह कुछ ऊंचा सुनती थी। उसके बेटे की शादी हुये तीन-चार साल हो चुके थे। कोई बच्चा नहीं हुआ था। बुढ़िया परेशान रहने लगी थी। एक दिन वह गांव में एक ब्राम्हण भगत के यहां उसके दरबार में गयी। भगत के ऊपर देवता की सवारी थी। बुढ़िया बोली महाराज मेरी बहू को अभी तक कोई बच्चा नहीं हुआ, मैं क्या करूँ? भगत बोला जा गऊमूत्र लेकर आ। बुढ़िया ने ऊंचा सुनने के कारण उसे सुनाई कम पड़ा और उसने गौमुत्र की जगह, बहुमूत्र समझा।

फिर वो वहां से घर गयी और अपनी बहू से बोली, ओ बहुरिया एक कटोरे में अपना मूत्र देदे। इस पर बहू ने पूछा मूत्र किस लिये माँ जी? बुढ़िया बोली भगत के सिर देवता सवार हैं इसलिए उन्होनें मंगाया है। बहू ने पीछा छुड़ाने के लिये कटोरे में मूत्र कर दिया और अपनी सास को दे दिया। वह बुढ़िया मूत्र का बर्तन लेकर वापिस भगत के दरबार में गयी। भगत के सिर पर सवार देवता बोला बुढ़िया ले आयी? बुढ़िया बोली जी हां महाराज। भगत बोला ला दे। बुढ़िया ने वह मूत्र का बर्तन भगत को दिया। भगत ने उस मूत्र पर कुछ मंत्र बड़बड़ाये और गौमाता का आशीष मान और अमृत मान खुद पिया और सबको थोड़ा-थोड़ा पिलाया और अपने ऊपर और सबके ऊपर छिड़का और फिर बुढ़िया से कहा कि तू भी पी लें इस अमृत तुल्य पवित्र प्रसाद को और अपने ऊपर छिड़क ले और बचा हुआ अपनी बहू को पिला देना। अब इसे मंत्रों से सिद्ध किया जा चुका है। तेरी बहू को बच्चा हो जायेगा। 

बुढ़िया खुशी -खुशी घर गयी और बहू से बोली यह प्रसाद पी लें। बहू आयी और देखा कि यह तो उसी का मूत्र है जो उसने ही कटोरे में दिया था। बहू ने साफ इन्कार कर दिया कि वह अपना मूत्र नहीं पियेगी। बुढ़िया बोली वहां दरबार में देवता ने पिया, मैंने पिया पर तू क्यों नहीं देवता का कहना मानती। बहू बोली देवता के सात पुरखे मूत पी लें और तुम्हारें सात पुरखे पी लें पर मैं तो अपना मूत्र नहीं पियूंगी।

बुढ़िया परेशान होकर वह फिर ब्राम्हण भगत के दरबार में गयी जहां देवता की सवारी थी। भगत ने पूछा बुढ़िया अब क्या परेशानी है। बुढ़िया बोली बहू ने तो यह प्रसाद पीने से मना कर दिया। देवता ने पूछा क्यों? बुढ़िया बोली कि बहू ने कहा कि वह अपना मूत्र कभी नहीं पियेगी। भगत जोर से बोला - क्या? अपना मूत्र। बुढ़िया क्या तू गऊ मूत्र नहीं लायी थी? बुढ़िया बोली आपने ही तो बहूमूत्र मंगाया था। भगत बोला बुढ़िया तेरा सत्यानाश हो सबको अपवित्र कर दिया, मैंने तो गऊमूत्र मंगाया था।

अब बुढ़िया की बारी थी उसने धीरे से चप्पल निकाला और भगत के ऊपर बजाना चालू कर दिया, और बोली तुझ पर कौन सा देवता सवार है जो तुझे पता ही नही चला किसका मूत्र है। मै तो कम सुनती थी लेकिन तु तो देवता है, तुझे तो पता होना चाहिए था। फिर उस भगत को खूब धो दिया।

अंत मे यही शिक्षा मिलती है की मनुष्य होने का परिचय दो, किसी भी बात को आँख बन्द करके मत मानो, अपना दीपक स्वय बनो। अंधविश्वास व पाखंड वाद हटाओ देश बचाओ। स्वम् जागो और दूसरो को भी जगाओ।

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