Tathagata Buddha

तथागत बुद्ध की नज़र में दोहरी विजय की परिभाषा

By Ritu Bhiva March 3, 2022 06:28 0 comments

किसी ने गाली दी, कड़वे बोल बोले. यदि सामने वाला व्यक्ति वापस गाली नहीं देता है तो वह दोहरी विजय प्राप्त करता है। भगवान बुद्ध अपनी निंदा और प्रशंसा दोनों से बहुत परे थे। एक बार लिच्छवी गणराज्य का सरदार सुनक्षत्र भावुकता में भिक्षु बन गया। लेकिन सांसारिक सुखों को भोगने के लिए थोड़े दिनों बाद भिक्षु संघ को छोड़कर वापस गृहस्थ हो गया। वह बुद्ध के बारे में कई गलत बातें फैलाने लगा कि बुद्ध का धम्म तो केवल इनकी बुद्धि की ऊपज हैं और इंद्रिय अनुभूति से आगे गौतम का ज्ञान नहीं जाता।
 
जब यह बात धम्मसेनापति सारिपुत्र ने शास्ता (शिक्षक, मार्गदाता) को सुनाई तो बुद्ध ने कहा, "वह नासमझ मनुष्य क्रोध के वश में हो गया है क्रोध के कारण ही उसने ऐसा कहा है"। एक बार एक पुरोहित ने भगवान को चोर और गधा तक कह दिया लेकिन भगवान ने उसे शांतिपूर्वक सुनते हुए यही कहा, "गाली देने वाले को जो लौट कर गाली नहीं देता वह दोहरी जीत हासिल करता है"।

 राजकुमार सिद्धार्थ ने जब गृहत्याग का फैसला किया, और यह खबर उनके ससुर को लगी तो उन्होंने कपिलवस्तु में आकर सिद्धार्थ को खूब गालियां सुनाई और भला बुरा कहा,। लेकिन बदले में सिद्धार्थ अपने मुख से सिर्फ हल्की मुस्कान ही निकाल सके, इससे ज्यादा कुछ नहीं। कुछ लोगों ने गौतम बुद्ध को वृषल, पापी, शुद्र तक कहा। उन पर व्यभिचार के झूठे आरोप लगाए। लेकिन बुद्ध हर स्थिति में जागृत, समता व शांत चित्त में रहे।

दूसरी ओर तथागत के गृहस्थ अनुयायियों व भिक्षुओं  ने भगवान की महिमा कर खूब वंदना की, गुणगान किया, लेकिन तथागत दोनों ही स्थितियों में पूरी तरह अनासक्त रहे, और अप्रभावित रहे। अपनी देशना में बुद्ध यही कहते थे, "भिक्षुओ" यदि दूसरे लोग मेरी या तुम्हारी निंदा करें तो तुम्हें न क्रोध करना है, और न द्वेष, न मन में जलन अनुभव करें, दूसरी ओर यदि मेरी या तुम्हारी कोई प्रशंसा करें तो प्रसन्न भी नहीं होना चाहिए।

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