Ambedkar choose Dhamma Diksha Bhoomi Nagpur

Ambedkar Jayanti 2022: डॉ. आंबेडकर ने धम्म दीक्षा भूमि नागपुर ही क्यों चुना?

By Ritu Bhiva April 13, 2022 11:51 0 comments

अगर हम धम्म दिक्षा भुमी की बात करें तो धम्म दिक्षा भुमी भारत में बौद्ध धर्म का एक प्रमुख केंद्र है। यह भारत में रहने वाले सभी लोगों को अच्छे से पता होगा यही वह जगह है जहां बौद्ध धर्म का पूर्ण रूप से उत्थान हुआ है या यूं कह सकते हैं जहां बौद्ध धर्म की फिर से शुरुआत हुई है। यह पवित्र स्थान महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर शहर में स्थित है और इसी पवित्र स्थान पर पर बोधिसत्व डॉ भीमराव अंबेडकर जी ने 14 अक्टूबर 1956 बौद्ध धम्म दिक्षा ली थी उन्होंने अपने 500000 से अधिक अनुयायियों को त्रिशरण पंचशील और 22 प्रतिज्ञा देकर हिंदू दलितों को बौद्ध धम्म दिक्षा की दिक्षाएं भी दिलवाई थी।

यही नहीं उन्होंने फिर अगले दिन यानी कि 15 अक्टूबर को 3 लाख लोगों को बौद्ध धम्म दिक्षा दी और स्वयं भी फिर से दीक्षित हुए पूरी दुनिया की बात करें तो देश तथा विदेश से हर साल यहां 25 लाख से अधिक अंबेडकरवादी और बौद्ध अनुयाई आते हैं। हर साल यहां लोग हजारों की संख्या में लोग बौद्ध धर्म में परिवर्तित होते रहते हैं आंकड़ों की बात करें तो यहां 2015 में 50000 दीक्षित हुए वहीं अगर बात करें 14 अक्टूबर 2016 की तो 2016 में 20000 लोग और उसी वर्ष, 25 अक्टूबर 2016 को मनुस्मृति दहन दिवस के उपलक्ष में 5000 ओबीसी लोगों ने बौद्ध धम्म दिक्षा ली थी। यह तो पता ही होगा कि बाबा साहब डॉ. अंबेडकर जी ने 25 दिसंबर 1927 को मनुस्मृति को जलाया था।

अभी तक हम हमने बौद्ध धम्म दिक्षा भूमि की बात की, पर एक सवाल आज भी उठता है। डॉ. अंबेडकर ने भारत में इस समारोह के लिए नागपुर को ही क्यों चुना ?आखिर क्या वजह थी नागपुर को ही दिक्षा के चुनने की ली थी। क्या वह राट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को यह समारोह करके उनको दिखाना चाहते थे या  जवाब देना चाहते थे ? चलिए जानते है?

बहुत से लोगों ने बाबा साहब से भी यही प्रश्न किया था कि इस महान समारोह के लिए नागपुर ही क्यों चुना गया, कोई और स्थान क्यों नहीं ? देखने वाली बात यह है कि कुछ लोगों का कहना था कि शहर में राष्ट्रीय स्वयं संघ का केंद्र होने के कारण उन्हीं की आंखों के सामने कुछ करके दिखाने के लिए बाबा सामने इस स्थान को चुना था लेकिन यह बात बिल्कुल भी सच नहीं थी ऐसा करना डॉ. आंबेडकर का उद्देश्य बिल्कुल नहीं था और ना ही उनके पास ऐसी निरर्थक बातों के लिए समय था। जो महान कार्य बाबा सामने अपने कंधों पर लिया था, वह इतना महत्वपूर्ण है की इसके  संबंध में एक-एक मिनट भी बाबा साहब के लिए बहुत कीमती था।

इस स्थान को चुनते समय कभी भूल से भी आर एस एस का विचार बाबा साहब के मन में कभी नहीं आया जिन लोगों ने बौद्ध धम्म के संबंध में इस देश के प्राचीन काल के इतिहास का अध्ययन किया है उन्हें मालूम है कि बौद्ध धम्म को फैलाने का महान कार्य नाग वंश के लोगो का था। नाग वंश के लोग आर्यो के कट्टर दुशमन थे, आपस में कई बार बड़ी-बड़ी लड़ाइयां हुई। आर्य लोग नाग वंश के लोगो का पूर्ण नाश चाहते थे।

इतिहास में  ये भी बताया है की अर्जुन ने नाग वंश के लोगो को जलाया था अगस्त मुन्नी ने नागो की रक्षा की थी जो आगे चल कर नाग वंश के पूर्वज कहलाये। जिन नाग वंश के लोगो को छल से पतीत बनाया गया उनको उठाने के लिए एक महापुरुष की आवश्यकता थी और वे उन्हें बुध के रूप में मिले। नाग वंश के लोगों ने सारे भारत में बौद्ध धर्म का प्रचार किया। वीरों की प्रमुख आबादी नागपुर में थी इसी के कारण इस नगर को नागपुर कहा गया है इस नागपुर से 27 मील की दूरी पर बहने वाली नदी का नाम भी नाग पड़ा हुआ है। ऐसा लगता है कि इसी नदी के आसपास नागों की आबादी थी। यही कारण है बाबा साहब ने नागपुर को दीक्षा भूमि चुना। इसलिए इसे कोई भी गलत ना समझें समझे किसी और बात पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ विरोध हो सकता है लेकिन इस स्थान को किसी ने भी उन को चिढ़ाने के लिए पसंद नहीं किया ना कोई नागपुर की दीक्षाभूमि चुनने का कारण नहीं है।  बाबा साहब डॉ. बी. आर. अंबेडकर के के हमारी धरोहर को और आगे बढ़ाने का काम किया है और एक सम्मानजनक जीवन जीने की एक नई दिशा देने का प्रयास किया है।

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