नारियल फोड़ने की प्रथा का इतिहास बेहद बर्बर है। पुष्यमित्र शुंग ने बौद्धों का सिर काट कर लाने वाले के लिए 100 स्वर्ण मुद्रा का इनाम रखा था। परिणामस्वरूप बौद्धों का बेरहमी से कत्ल किया गया और इनाम पाने के लिए उनका सिर काट कर दरबार में दिखाया जाने लगा। कई बार इनाम के लालच में एक ही सिर को दो-दो और तीन-तीन बार भी दिखाया जाने लगा। जब पुष्यमित्र शुंग को यह मालूम हुआ तो उसने नियम बनाया कि जिस बौद्ध का सिर दिखाया जाएगा, उसे पत्थर पर पटक कर फोड़ना भी होगा, जिससे इनाम के लालच में दूसरा उसका उपयोग न कर सके। आगे चल कर पुष्यमित्र शुंग ने प्रत्येक शुभ कार्य के अवसर पर बौद्धों का सिर काट कर पत्थर पर पटकने का नियम बना दिया।
बौद्धों के खत्म हो जाने और बाकी के पलायन कर जाने के बाद भी यह प्रथा समाज में दहशत फैलाए रखने के लिए जारी रखी गई और बौद्धों के सिर के स्थान पर नारियल को फोड़ने का रिवाज़ शुरू किया गया। आज भी ब्राह्मण अपने शुभकार्य शुरूकरने से पहले नारियल फोड़ते हैं।
अयोध्या में राम मंदिर की नीव खोदते समय बुद्ध की मूर्तियाँ मिली थीं। नीव रखते समय बौद्धों का सिर काट कर फोड़ने की प्रथा के रूप में नारियल फोड़ा गया। जब अयोध्या ही नहीं था तो राम कहाँ पैदा हुआ था? अयोध्या का ऐतिहासिक नाम साकेत था जिसके बहुत से सबूत मौजूद हैं।
घाघरा नदी के अयोध्या के किनारे के कुछ हिस्से को ही सरयू नदी कहा जाता है। बौद्धो का कत्लेआम कराया गया और सिरों को घाघरा नदी में डाल दिया गया था नदी में जहां भी कोई घुसता सिर ही सिर नजर आ रहा था इसलिए सिर +युक्त से सरयू नदी कहा जाने लगा। नारियल इंसान के सिर का प्रतीक है।
लेखक: बौद्ध आचार्य डॉ एस एन बौद्ध
0 Comments so far
Jump into a conversationNo comments found. Be a first comment here!
Your data will be safe! Your e-mail address will not be published. Also other data will not be shared with third person.
All fields are required.