भंगी से वाल्मीकि क्यों? आखिर किस कारण ये बदलाव किए गए?
By Ritu Bhiva February 6, 2022 07:22 0 commentsबात तब की हैं जब रिपोर्ट ब्रिटिश प्रधान मंत्री को 1930 में होने वाली Round Table Conference के लिए सौंपनी थी।
अछूतों की हमदर्दी का नाटक हिन्दूवादी शक्तियां व कांग्रेस कर रही थी, यानी उनका कहना था कि हम तो डॉ. अंबेडकर से पहले अछूतोद्धार के लिए काम कर रहे है, इस सबके बावजूद भी अछूत बाबासाहेब के आंदोलन में लामबंद हो रहे थे।
आपने देखा होगा या सुना होगा कि गांव देहात में भंगी और चमारों की बस्तियां सटी हुई होती है। भंगी कौम मार्शल आर्ट की जन्मदाता है, दूसरे नंबर पर चमार आते हैं।
यह भी लोगों का कहना है व मैंने भी बचपन में सुना था , शायद आपने भी सुना होगा कि भंगी का लठ पहले तो निकलता नहीं और अगर निकल गया तो मकसद पूरा करके ही वापस आता है नहीं तो आता ही नहीं है। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि भंगी जाति के लोग चमारों से भी ज्यादा हौंसला बुलंद लोग हैं।
हिन्दूवादी ताकतों व कांग्रेस ने चिंतन शुरू किया कि डा अंबेडकर के आंदोलन को कैसे कमजोर किया जायें? यह सोचकर हिन्दू महासभा ने लाहौर अब पाकिस्तान में हिन्दूवादी शक्तियों व कांग्रेस की कॉन्फ्रेंस आयोजित की थी। Conference में मोतीलाल नेहरू, मोहन दास करमचंद गांधी, पंडित मदन मोहन मालवीय, पंडित अमीचंद आदि ने भाग लिया था, सम्मेलन में चर्चा हुई कि अछूतो में दो जातियां शारीरिक रूप से ताकतवर है और संख्या में भी ज्यादा है, भंगीयों व चमारों को अपनी ओर मिला लिया जाये, तो डॉ. अंबेडकर का आंदोलन असफल व कमजोर हो सकता है। सम्मेलन में प्रस्ताव पारित किया गया कि भंगीयों को वाल्मीकि नाम से संबोधित किया जाये और बताया जाये कि आप उस महर्षि वाल्मीकि के वंशज हो जिसने राम के जन्म से हजारों वर्ष पूर्व रामायण जैसा ग्रन्थ लिख दिया था, इसलिए आप हमारे भाई हो जो हमसे बिछड गये थे। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए पंडित अमीचंद शर्मा ने "वाल्मिकी प्रकाश" नामक एक किताब लिखी और उसकी चौपाइयों तथा महर्षि वाल्मीकि का पूरे देश में योजना वद्ध तरीके से हारमोनियम, ढोलक, चिमटा बजाकर भंगीयों की बस्तियों में प्रचार प्रसार करना आरम्भ कर दिया , इस समाज के लोग महर्षि वाल्मीकि को अपना वंशज व गुरु मान कर आसमान में उडने लगे क्योंकि नामकरण पंडितों के द्वारा हुआ था। बाद में भंगी समाज के लोग खुश होकर स्वंय ही वाल्मीकि प्रकाश व महर्षि वाल्मीकि का प्रचार प्रसार करने लगे। बस फिर क्या था अमीचंद शर्मा का तीर ठीक निशाने पर लगा, वही हुआ जो वो चाहता था।
उसी सम्मेलन में चमारों को जाटव नाम से पुकारने की योजना बनाई गई और बताया कि आप उसी जटायु के वंशज हो, जिन्होनें हमारी सीता माता की रक्षा के लिए रावण से युद्ध करते करते वीरगति प्राप्त की थी, आप भी हमारे भाई हो।
यह प्रमाणिकता बाबा साहेब के साहित्य में उपलब्ध है।
चमारों पर हिन्दूओं की इस काल्पनिक कहानी का असर न के बराबर रहा, इसलिए आज वह बाल्मिकीयों के मुकाबले अधिक उन्नतिशील है। लेकिन भंगीयों पर वाल्मीकि प्रकाश व महर्षि वाल्मीकि का ऐसा जादू चढा कि वह बाबासाहेब के आंदोलन से भटक गए। आज भी 90 % वाल्मिकी भटके हुये ही है। काश यह समाज वाल्मीकि प्रकाश व महर्षि वाल्मीकि नाम के चक्कर न पडकर बाबासाहेब के सिद्धांतों पर चलता तो आज समाज, चमारों से ज्यादा उन्नतिशील होता।
हमारी ओर से यह विशेष आग्रह है बस अपने समाज पर एक एहसान कीजिए यह लेख पसंद आये तो आगे फारवर्ड जरुर कर दीजियेगा ताकि अपने समाज के सभी बंधु , खासतौर पर बाल्मीकि और चमार, जाटव, मेघवाल, बैरवा कहे जाने वाले लोगों को तो अवश्य पहुँचे।
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