Ambedkar Jayanti 2022: अगर डॉ. अम्बेडकर संविधान सभा मे न होते तो?
By Ritu Bhiva April 14, 2022 12:22 0 commentsये तो सब जानते हैं, अगर डॉ. अंबेडकर ना होते तो आज दलितों का अधिकार नहीं होता। बाबा साहब ने अपना पूरा जीवन, दलितों के अधिकार, समाज की कुरुतियों और दलितों के हक की लड़ाई लड़ने में लगा दिया और सबसे महत्वपूर्ण कि भारत देश को संविधान दिया जिससे सबको बराबरी का हक मिला। दोस्तों बाबा साहब के महान कार्यों का जितना में उल्लेख किया जाए, उतना ही काम है।
बाबा साहब डॉ. अंबेडकर पहली बार उन्हें 19 दिसंबर 1946 को बंगाल से जीतकर संविधान सभा में आए। लेकिन इसके तुरंत बाद भारत का बंटवारा हो गया। जिसका विधान परिषद की सीट का डॉ. अंबेडकर प्रतिनिधित्व करते थे उसे पाकिस्तान को दे दिया गया। इससे अंबेडकर का निर्वाचन खत्म हो गया। भारत बंटवारे के समय जिस तरह बंगाल वाले हिस्से को पूर्व पाकिस्तान को दे दिया, यह एक साजिश के तहत दिया गया था ताकि अंबेडकर संविधानसभा में ना रह पाएं। लेकिन इस साजिश से विफल करते हुए अम्बेडकर वापस 14 जुलाई 1947 को बम्बई से जीतकर आ गए। इस जीत के संबंध में भी यह कहा जाता है कि दोबारा बम्बई से चुनने में कांग्रेस ने साथ दिया था। जबकि सत्य यह है कि डॉ. अंबेडकर संविधान सभा में नहीं आती तो भारत का संविधान नहीं बन पाता।
दोबारा जीतकर आने के बाद यह घोषणा हुई थी कि 15 अगस्त को अंग्रेज भारत को सौंप देंगे। जब बंगाल से जीत के बाद देश के बंटवारे से अंबेडकर से विधानसभा के सदस्य नहीं रहे थे तो ब्रिटेन की संसद ने भारतीय संविधान सभा का कडा विरोध किया। आखिर अंग्रेज को राजी करने और विरोध को दबाने के लिए खुद नेहरू को ब्रिटेन जाना पडा। उस समय ब्रिटेन के प्रतिष्ठित नेता चर्चिल ने ये कह दिया था कि भारतीय लोग संविधान बनाने के लायक नहीं इसलिए उनको आजादी देना ठीक नहीं होगा।
डॉ. अंबेडकर का कहना था की अनुसूचित जाति और जनजाति हिंदू नहीं हैं। इस बात पर ब्रिटेन के सांसद में खूब बहस हुई। बाद में हालात ऐसे बने की ली अल्पसंख्यकों के अधिकार का सेटलमेंट नहीं होगा तो भारत का संविधान नहीं बन पाएगा और इसके मान्यता भी नहीं मिलेगी। ऐसे संकट में डॉ. अंबेडकर को मुंबई से जीतकर लाना कांग्रेस और पूरे देश की मजबूरी हो गई थी। ये भी कहा जाता है किबैरिस्टर जयकर ने अम्बेडकर के लिए अपना इस्तीफा दिया था जबकि सत्य यह है की कांग्रेस की कुछ बडे नेताओं के साथ मतभेद होने के कारण जयकर ने पहले मैं इस्तीफा दे लिया था। ऐसे में यदि डॉ. अंबेडकर को दोबारा नहीं जिताया जाता तो संविधान नहीं बन पाता। पुरे देश को आजादी मिलने में और समय लग सकता था इसलिए कांग्रेस और उनके घोर विरोधी नेताओं ने भी बम्बई से उनकी उम्मीदवारी की सिफारिश की और संविधानसभा में लाने की व्यवस्था की।
ऐसा भी नहीं है कि देश में उस समय कांग्रेस के पास संविधान लिखने वाला कोई दूसरा व्यक्ति नहीं था लेकिन महत्वपूर्ण डॉ. अंबेडकर थे क्योंकि यदि वह संविधानसभा में नहीं होते तो भारत के अछूतों के अधिकारों का संवैधानिक रिटायरमेंट होने की बात नहीं मानी जाती और इससे भारत के संविधान को मान्यता भी नहीं मिलती। भारत को बडे लोकतंत्र के रूप में दर्जा भी नहीं मिल पता क्योंकि यह तभी माना जाता कि भारत के एक बडे वर्ग एसटी और एससी की स्वतंत्रता और अधिकारों की बात संविधान में नहीं होती दोस्तों बाबा साहेब का संविधान सभा में होना बहुत ही जरूरी था। दलितों के अधिकार और लोकतंत्र व्यवस्था को लाने में बाबा साहेब का बहुत बडा हाथ है।
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