Valmiki Samaj

क्यो वाल्मीकि समाज अभी भी बहुत पीछे हैं?

By Ritu Bhiva March 19, 2022 06:42 0 comments

आज के इस आधुनिक काल में समाज का हर तबका आगे बढ़ रहा है, किन्तु बाल्मीकि समाज अभी बहुत पीछे है।  इसका मुख्य कारण बाल्मीकि युवाओं की मनोदशाएं विपरीत होना है, समाज के युवाओं पर मोबाइल संसाधनों की कमी नहीं है, सामाजिक ज्ञान की कमी है।  युवाओं को मोबाइल मंहगे लेने की होड़ तो बहुत होती है, मोबाइल बड़ी कम्पनी का ही होना चाहिए।  परन्तु मोबाइल में कीमती समय बर्बाद ही करते हैं, और साथ ही अपना अमुल्य समय नौकरी पेशा कैरियर भी बर्बाद करते हैं। ऐसे युवा सामाजिक कार्य कलापों से अनभिज्ञ रहते हैं, समाज सेवकों की ये प्रतिष्ठा क्या जानें।  ऐसे युवा या समाज में कुछ लोग राजनैतिक पार्टी के गुलाम कार्यकर्त्ताओं के पिछलग्गू बनकर अपने कीमती समय खराब करते रहते हैं।  समाज में अंधविश्वास की जड़ें मजबूत हैं, पढ़ें लिखे युवाओं को  मोबाइल की चैटिंग से ही फुर्सत ही नहीं है। "वैज्ञानिक व संविधान के इस आधुनिक युग में भी लोग जाग्रत नहीं हो रहे अपने को महारथी समझने वालो सभी देवी देवताओं को भगवान मानने वालो जरा ध्यान एकाग्रता में लाओ।" कि "भगवान तो एक है अनेक नहीं"। "वो है प्रकृति"। "प्रकृति ही भगवान प्रकृति ही परमेश्वर है"।  'पांच तत्व से भगवान'। 'अपने अपने धर्मों के देवी देवताओं ईश्वर, अल्लाह,  गौड़, आदि कहा है'। 'इन सबसे ऊपर परम प्रकृति को ही परमेश्वर कहा है'। 'भगवान किसी इंसान का रूप नहीं'। 'जो इंसान परम प्रकृति का अनुसरण करता है उसी को भगवान का दर्जा दिया है'। 'दुनियां के सच्चे समाज सेवकों को भगवान का दर्जा प्राप्त हुआ है'। 'लेकिन भगवान परमेश्वर एक ही हैं'। 'जो करेगा प्रकृति का अनुसरण, दुनियां करेगी उसका अनुकरण'। 'सज्जनों मैनें आज तक जो अनुभव किया है अपने जीवन धारा में'।  जिसने भी  बैर किया है वो आवाद नहीं, 'बर्बाद हो गया है'। ' कपट से कोई जीत नहीं सकता है'। 'सत्य मार्ग ही उज्जवल जीवन का प्रतीक है'। 'सत् मार्गीय इंसान से जो टकराता है वह चूर चूर हो जाता है'। 'ऐसे इंसान को कोई मिटा नहीं सकता वो साकार में भी जीता है और निराकार में भी'। 'मैं युवाओं से अपेक्षा करूंगा कि यह इंसान का रूप बार बार नहीं मिलता चेतना जाग्रत करो और समाज को उठाने का कार्य करो'।  दिखावटी लोग तो बहुत हैं समाज में, करने वाले बनो।  मैंने बहुत ऐसे युवा या लोगों को देखा है उनको राजनैतिक पावर या पैसा का स्तर क्या बड़ जाता है, कि इंसानों की कद्र करना ही भूल जाते हैं।  ऐसे लोग मिट्टी के डेला के समान हैं, आज है तो कल नहीं,  इसी मेरे समाज के युवाओं नींद से जाग जाओ और समाज के लिए काम करो।

लेखक : रमेश कुमार, पूर्व वालदा लिपिक

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