Bahujan Baman Sarvajan Darshan

बहुजन बामन सर्वजन दर्शन: दुष्प्रचार और यथार्थ

By Ritu Bhiva March 22, 2022 05:13 0 comments

पिछले कुछ दिनों से मैं देख-सुन रहा हूँ।  कि कुछ धूर्त  "सर्वजनवादी" लोग अपने कुतर्क को सत्य साबित करने लिए तथागत सम्यकसंबुद्ध के  "मूल बहुजन दर्शन" को गतल ढंग से प्रचारित करने का कुकृत्य करते समय तनिक भी शर्म महसूस नहीं करते।  वे बेशर्मी की सारी हदें पार कर अपनी गढ़ी-गढ़ाई मनोनुकूल बातों को तथागत सम्यकसंबुद्ध के मुंह में घुसेड़ने का कुत्सित प्रयास करते रहते हैं, और ऊपर से स्वयं के बुद्धिस्ट होने का दावा भी पेश करते हैं,।  इसलिए मैंने सोचा कि इनकी धूर्तता से बहुजन समाज को अवगत कराना जरूरी है। मैंने कई सर्वजनवादी लोगों को यह वक्तव्य देते सुना है,  कि बुद्ध ने ही  "सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय" का दर्शन दिया है (यानी सब लोगों का हित और सब लोगों का सुख)।  वे अपने  इस कुतर्क को सही सिद्ध करने के लिए  "सब सुख गाथा"  नामक उक्त मंगल गाथा को दोहराते हैं।  "सब्बेसत्ता सुखी होन्तु, सब्बे होन्तु च खेमिनो। सब्बे भद्राणि पस्सन्तु मा किञ्चि दुक्खमगमा।" अर्थात: - 'सभी प्राणी सुखी हों, सभी कुशल-क्षेम हों। सभी का मंगल हो,  किसी को भी कोई दुख न हो।'

टिप्पणी: -  इस गाथा में प्राणिमात्र के लिए,  न कि सिर्फ मनुष्यों के लिए,  मंगल कामना की गई है।  यह सम्यकसंबुद्ध का दर्शन नहीं,  बल्कि बौद्ध भिक्खुओं द्वारा धम्म प्रवचन अथवा धम्म पाठ के अंत में तथागत सम्यकसंबुद्ध को साक्षी मानकर प्राणिमात्र के सुख,  कुशल-क्षेम और मंगल के लिए की जाने वाली कामना है।  इसके साथ ही कुछ लोग,  "भवतु सब्बमंगलं" (सबका मंगल हो)  नामक आशीर्वचन को भी सम्यकसंबुद्ध का दर्शन बता देते हैं। यह भी बुद्ध का कोई दर्शन नहीं,  बल्कि एक आशीर्वचन है।

ऐसे में सवाल पैदा होता है।  कि फिर  "बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय"  दर्शन पर आधारित धम्मोपदेश  किसने और क्यों दिया?  तथा एक दर्शन और एक मंगल गाथा अथवा आशीर्वचन में क्या अंतर है?  यहां यह बताना जरूरी है,  कि सिद्धार्थ गौतम ने दुखित मानवता के कल्याणार्थ जब महाभिनिष्क्रमण (गृहत्याग) किया,  तब वे प्रव्रजित होकर बोधिसत्त्व हुए।  इसके बाद बोधिसत्त्व सिद्धार्थ गौतम को जब बुद्धत्व (सद्धम्म) का दर्शन प्राप्त हुआ तो वे तथागत सम्यकसंबुद्ध कहलाए।

तदोपरांत तथागत सम्यकसंबुद्ध ने सारनाथ में पंचवर्गीय भिक्खुओं के समक्ष 'धम्मचक्कप्पवत्तन' (धर्मचक्रप्रवर्तन)  कर भिक्खुसंघ की स्थापना की।  इसके बाद भिक्खुसंघ को अपना प्रथम धम्मोपदेश देते हुए उन्होंने कहा, "चरथ भिक्खवे चारिकं,  बहुजन हिताय बहुजन सुखाय।  लोकानुकम्पाय अत्थाय हिताय सुखाय देवमनुस्नानं।  देसेथ भिक्खवे, धम्मं आदि कल्याणं मज्झे कल्याणं परियोसान कल्याणं।  सात्थं सव्यज्जनं केवल परिपुण्णं परिसुद्धं ब्रम्हचरियं पकासेथं।" अर्थात:  -"भिक्खुओ  बहुजनों के हित के लिए,  बहुजनों के सुख के लिए,  लोक पर अनुकंपा करने के लिए,  श्रेष्ठ मनुष्यों (देवों) और आम जन के प्रयोजन के लिए,  हित और सुख के लिए विचरण करो।  भिक्खुओ  यह धम्म आरंभ में कल्याणकारी,  मध्य में कल्याणकारी और अंत में भी कल्याणकारी है।  इस धम्म का उसके अर्थों और भावों सहित उपदेश करके परिपूर्ण एवं परिशुद्ध ब्रह्मचर्य को प्रकाशित करो।" इसी प्रथम धम्मोपदेश के माध्यम से उन्होंने  "बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय"  नामक दर्शन भिक्खुओं के समझ प्रकट किया।

टिप्पणी: -  इस दर्शन के पीछे यह बात निहित है कि दुनिया में कुछ अमानवीय अथवा शोषक तत्त्व होते हैं,  जो बहुसंख्य मानवता की हानि करते हैं।  यानी बहुजनों का शोषण करते हैं। इसलिए शोषक और शोषितों का एक साथ हित और सुख नहीं साधा जा सकता।  ऐसी स्थिति में बहुसंख्यकों के हित और सुख का प्रयत्न ही मानवता का विकास है।

तत्पश्चात सभी भिक्खु अलग-अलग दिशाओं में लोगों को  'बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय'  दर्शन पर आधारित  'सद्धम्म' का दिग्दर्शन कराने के उद्देश्य से चारिका करने लगे। उपरोक्त बात से बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है,  कि तथागत सम्यकसंबुद्ध ने जब इतने स्पष्ट शब्दों में भिक्खुओं को  'बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय' दर्शन पर आधारित निर्देश दिया है,  तब ये धूर्त सर्वजनवादी लोग सम्यकसंबुद्ध के इस दर्शन को  'सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय'  नामक कुदर्शन बनाने में क्यों तुले हुए हैं?  इसके लिए आपको लगभग 40 वर्ष पुराने भारतीय राजनीतिक घटनाक्रम का अध्ययन करना होगा।

मालूम हो कि मान्यवर कांशीराम साहब ने जब बहुजन राजनीति की स्थापना की तो उन्होंने तथागत बुद्ध के  'बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय'  दर्शन को ही अपनी बहुजन राजनीति का आधार बनाया।  लेकिन यहां तथागत बुद्ध और मान्यवर कांशीराम के बहुजन दर्शन में कुछ मात्रात्मक अंतर है।  वह यह कि तथागत बुद्ध का बहुजन दर्शन जाति की पहचान के आधार पर नहीं,  बल्कि शोषित  (बहुजन) और शोषक  (अल्पजन) के आधार पर खड़ा है।  जबकि मान्यवर कांशीराम जी ने सर्वप्रथम वर्तमान ब्राह्मणी जाति-व्यवस्था का आधार लिए शोषक और शोषित जातियों की पहचान कर शोषक जातियों को अल्पजन और शोषित जातियों को बहुजन के रूप में स्पष्ट तौर पर विभाजित किया।  तत्पश्चात उन्होंने 'बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय' दर्शन पर आधारित राजनीति की स्थापना की।  मान्यवर कांशीराम साहब  के बहुजन दर्शन के पीछे भी यही आधार है,  कि शोषक (सवर्ण समाज) और शोषित (बहुजन समाज) का एक साथ हित और सुख नहीं साधा जा सकता।

टिप्पणी: -  यही यथार्थ सत्य है और दुनिया भर के ज्ञानी-विज्ञानी,  दार्शनिक लोग इसी सिद्धांत को मान्यता प्रदान करते हैं।

इस प्रकार मान्यवर कांशीराम साहब ने भी तथागत बुद्ध के दर्शन की भांति बिल्कुल स्पष्ट तौर पर 'बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय' दर्शन पर आधारित राजनीतिक सिद्धांत की व्याख्या की और इसी आधार पर बहुजन राजनीति को आगे बढ़ाने का काम किया। लेकिन उनकी मृत्यु के बाद बुद्ध और कांशीराम से भी बड़ी एकमात्र विश्व प्रसिद्ध दार्शनिक मायावती ने अपनी तथाकथित बुद्धिमत्ता  और अपने ब्राह्मण सिपहसालार सतीश चंद्र मिश्रा के इशारे पर इन दोनों महापुरुषों के  "बहुजन सिद्धांत"  को तिलांजलि देकर  'सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय'  (यानी शोषक और शोषितों का एक साथ हित और सुख।  सरल शब्दों में कहें तो,  एक बाड़े में कैद भेड़ और भेड़ियों का एक साथ हित और सुख)।  नामक सिद्धांत विहीन राजनीति को आगे बढ़ाने का कार्य किया।

अब चूंकि एकमात्र विश्व प्रसिद्ध महान दार्शनिक मायावती की सर्वजन रूपी इस सिद्धांत विहीन राजनीति के परिणामस्वरूप,  लाखों लोगों के त्याग,  बलिदान से खड़ी की गई  "बहुजन समाज पार्टी" आज रसातल में पहुंच चुकी है।  इसलिए मायावती के कुछ पालतू लोग अथवा भक्तगण अभी भी मायावती की सिद्धांत विहीनता पर पर्दा डालने के उद्देश्य से अपने इस "सर्वजन रूपी कुतर्क"  को सही साबित करने की नाकाम कोशिश में लगे रहते हैं।  इसी चक्कर में वह तथागत बुद्ध के दर्शन को भी तोड़-मरोड़कर पेश करने में बाज नहीं आते। ऐसे सिद्धांत विहीन पालतू  अंधभक्तों को मेरी सलाह है कि आप लोगों को जो और जैसी अंट-संट राजनीति करनी है करो,  लेकिन कम-से-कम तथागत बुद्ध को तो वख़्स दो।  उनके बहुजन दर्शन को तो कम-से-कम अपने सर्वजन रूपी कुतर्क की कालिख मत लगाओ।

अंत में,  लोगों से अपील है कि आप लोग तथागत बुद्ध के "अत्त दीपो भव"  मार्ग का अनुसरण करो।  तथा इन कुतर्कियों के सर्वजन रूपी कुतर्क से सावधान रहते हुए वास्तविक बहुजन दर्शन पर आधारित बहुजन राजनीति को अपनाओ।  इसी में बहुजन समाज का हित और सुख सुरक्षित है।

लेखक:  अशोक कुमार साकेत

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