भारत में चमड़ा बनाने वाले चमार, तो विदेशो के चर्मकार चमार क्यों नही हो सकते?
By Ritu Bhiva February 6, 2022 01:22 0 commentsभारत में चमड़ा बनाने वाले चमार हैं तो भारत की सीमा के बाहर, यानी चीन, रूस, जापान, अमेरिका और यूरोप के चर्मकार चमार क्यों नही हो सकते?
चमार, धोबी, लोहार या सोनार जाति नही है हुनर और व्यवसाय है यह हम भी जानते हैं. ब्राह्मण धर्म ने मेहनतकश रोजगार को जाति बनाकर जन्मजात कर दिया ताकि अल्पसंख्यक ब्राह्मणों को मेहनत ना करना पड़े।
अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के पिता मोची थे उच्च कोटि के जूते चप्पल बनाते थे। अगर अब्राहम लिंकन का जन्म भारत में हुआ होता तो क्या उन्हें वह मान सम्मान भारत में मिलता जो उन्हें अमेरिका में मिला। भारत में मेहनतकश लोगों को मान सम्मान नही दिया जाता। ब्राह्मण धर्म मान सम्मान उसी का करना सिखाता है जो शासक है, देवता है, धर्म गुरु या ऋषि मुनि है।
आज महान वैज्ञानिक लुई ब्रेल की जयंती है। 4 जनवरी 1809 को ब्रेल का जन्म फ्रांस में हुआ था. उनके पिता चर्मकार थे, यानी चमार। घोड़े की उच्च कोटि की गद्दी और अन्य चमड़ों की वस्तु का निर्माण करते थे। भारत को छोड़कर पूरी दुनिया में चर्मकार लोगों का मान सम्मान है।
लुई ब्रेल के पिता का भी बहुत मान सम्मान था। लुई स्कूल से छूटने के बाद पिता का हाथ बटाने कारखाने में आ जाते। एक रोज खेल खेल में बड़ा सुआ लुई ब्रेल की आंखों में चुभ गया। इंफेक्शन फैलने के कारण लुई ब्रेल की दोनों आंखों की रोशनी चली गयी।
लुई ब्रेल ने हार नही मानी उन्होंने पढ़ना जारी रखा। लुई ब्रेल चर्मकार के बेटे थे, हाथ से श्रम करने का अनुभव था और येही अनुभव पढ़ाई में सोचने के काम आया। लुई ब्रेल ने नेत्रहीनों के लिए ब्रेल लिपि का आविष्कार किया। अपने आविष्कार से चमार के बेटे ने पूरी दुनिया को हैरत में डाल दिया।
भारत में हाथ से काम करने वाले चर्मकार और अन्य मेहनतकश लोगों को पढ़ने और सोचने का अधिकार नही था। जिन्हें सोचने और पढ़ने का अधिकार था उन्हें श्रम उत्पादन या कुछ निर्माण करने का ज्ञान नही था। इसी कारण भारत में कोई आविष्कार नही हो पाया।
चर्मकार पुत्र महान लुई ब्रेल की जयंती पर कोटि कोटि नमन करता हूँ और उन सभी भारतीय चर्मकारों को भी नमन जिनके हुनर, ज्ञान और सोच के कारण हर भारतीयों के पैरों में शानदार आरामदायक जूते चप्पल हैं।
लेखक : क्रांति कुमार
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