Laxmanpur Bathe Massacre

लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार एक दिल दहला देने वाला मंजर

By Ritu Bhiva March 17, 2022 08:05 0 comments

लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार 1 दिसम्बंर1997 की दिन था, उत्तर भारत की हड्डी गला देने वाली ठ़ड पड रही थी, रोज कि तरह मल्लाह अपनी जीविका के लिये सोन नदी के किनारे बैठे इतंजार कर रहे थे, तभी शॉल ओढ़े 100 लोग जिनकी सिर्फ आँखे दिखाई दे रहा था, और आये और बोले हमे "लक्ष्मणपुर-बाथे" गॉव में जाना है। मल्लाहों ने अपने नाव पर बैठा लिया सोन के सीने को चीरते हुऐ इस किनारे से उस किनारे पहुचा दिये। लेकिन मल्लाहों उन लोगों के अजीबो हरक्कतो से मल्लाहों डरने लगे थे उन्हें अन्देशा हो गया कि कोई अन्तोनी होने वाला है, इसी डर के वजह से उनसे किराया तक मांगना उचीत नही समझा। लेकिन उन मल्लाहों को क्या पता था कि उनकी जीवन के आखिरी पल है, वो अपनी मौत का भीख मागने लगे, साहेब हम क्या किये है। हमे छोड़ दिजीए हमारे छोटे छोटे बच्चे है, वो जीते जी मर जायेगे, लेकिन शॉल से ढके रणवीर सेना आर्थात "भूमिहार ठाकूर" जाति के लोगो ने एक ना सुनी तरह उन शॉल ओडे लोग जो करणी सेना के लोग बताये जाते है उन तीनों मल्लाहों के वही गले कॉट दिये, ताकि कोई सुबूत ना रहे।

फिर ये 100 लोग दाखिल होते है, लक्ष्मणपुर-बाथे गॉव में जहाँ 60 से अधिक दलितों को जिन्दा जला देते है, जिसे 15-20 गर्भवती महिलाए थी जिसे पहले बालात्कार किये फिर,कूँच कूच कर मार डाले, 11मासूम बच्चो को गाल काट दिये बाकि अन्य लोग गोलीयों से रौद दिये। कहाँ जाता है उन दिन लक्ष्मणपुर-बाथे गाँव के हवाओ से रक्त टपक रहा है पक्षी जानवर तक दलितों के बेरहमी से हत्या पर रो रहे थे।

शायद पुरा कायनात दलितों की हत्या पर रो रहा था, कई दिनों तक दलितों उनकी लाशो को रख कर रोया था, मदद मंदी थी उस समय बिहार के सत्ता पर लालू प्रसाद यादव की पत्नी रावड़ी सीएम थी। उन सैकड़ों लाशों ट्रैक्टर टॉली में भर ले गया था चारो तरह खून ही खून दिखाई दे रहा था, चील कौओ उन लाशो को नोचने की फिराक में थे। कोबरा स्ट्रिंग ऑपरेशन के जरिये कहाँ जाता है, उन रणवीर सेना को चन्द्रशेखर सिहं से ही हथियार मुहैया कराई गई थी, जबकि गृहमंत्री यशवंत सिन्हा ने राजनैतिक और आर्थिक मदद की थी।

आज भी उन नरसंहार से बचे लोगो की बात करो तो अन्दर से सिहर उठते है। वैसे तो उस नरसंहार में 46 लोगो को दोषी पाया गया लेकिन बाद में बरी कर दिया है सिर्फ एक व्यक्ति पर सारा आरोप मढ़ कर फाइले हमेसा के लिये बंद कर दिया है। मैं ये पोस्ट इस लिये लिखा हूँ ताकि ये फेसबुक और WhatsApp University के पैदाइश दलित युवा जो कश्मीर फाइलों पर दया दिखा रहे है कभी अपने अतीत के पन्ने पलट के देख लो, ताकि पता चले की ऐसे कश्मीरी पंडित जैसे हजारो सालो से दंश दलित झेलते आरहे है।

ऐसे हजारो देश में नरसंहार हुआ जिसे के बदले में दलितों को कुछ नही मिला, ना ही उनका जले हुऐ घर मिला, ना ही पैसा, और नाही न्याय, सामाजिक न्याय आज नही मिल रहा है। लेकिन कश्मीर पंडितों से 32 साल से सरकार बैठा के खिला रही है, घर गाड़ी सब कुछ दी है। और आज उसके नाम पर वोट ले रही है। फिर उन दलितों को क्या मिल? जो ऐसे नरसंहार मारे गये, यही नही हर रोज सैकड़े दलितो की हत्या बलात्कार या जाति उत्पीड़न से मार दिये जाते है।" तुम्हें क्या मिला?"

लेखक: विक्रांत कुमार कटारिया

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