भारत के विकास में बाधा ये द्रोणाचार्य और उनकी जातिवादी मीडिया
By Site Admin January 11, 2023 08:22 1 commentsगुरु द्रोणाचार्य ने भविष्यवाणी कर दी कि उनके प्रिय शिष्य अर्जुन जैसा निशानेबाज धनुर्धर दूसरा कोई नहीं होगा। ठीक उसी तरह आधुनिक भारत के द्रोणाचार्यों और उनकी जातिवादी मीडिया ने भी भविष्यवाणी कर दी थी कि सचिन तेंदुलकर क्रिकेट के भगवान हैं और कोई उनका रिकॉर्ड नहीं तोड़ सकता। उनके जैसा महान पैदा नहीं हो सकता। गुरू के भविष्यवाणी पर लोग आंख मूंदकर विश्वास भी कर लिये। और समाज ने यह मान लिया कि अब अर्जुन जैसा 'धनुर्धर न कभी हुआ और न कभी होगा।' यह वाक्य सिद्धांत बना दिया गया। सचिन तेंदुलकर के बारे में भी कुछ साल पहले लोग ऐसा ही कहा करते थे।
एक बार गुरु द्रोणाचार्य अपने प्रिय शिष्य अर्जुन सहित जंगल मे भ्रमण कर रहे थे। जिसमें आगे आगे गुरु के स्वागत की गर्जना(भौंकते) करते हुए उनका वफादार कुत्ता चल रहा था। कुछ समय बाद कुत्ते के मुंह से आवाज आनी बंद हो गई। जब गुरु अपने शिष्यों सहित कुत्ते के पास पहुंचे तो उन्होंने अकल्पनीय दृश्य देखा कि किसी अद्भुत धनुर्धर ने बाणों से कुत्ते को मुह को भर दिया है। और कुत्ते को कोई खरोच भी नहीं आयी है। कुत्ता जीवित है सकुशल है। यह अद्भुत धनुर्विद्या की कला की कल्पना कभी गुरु द्रोणाचार्य ने नहीं की थी। वे इस कला से अनभिज्ञ थे।
सभी शिष्य अंदर अंदर अपने गुरु के बारे मे सोचने लगे कि गुरु जी कभी इस तरह की धनुर्विद्या का जिक्र क्यों नहीं किया? लगता है कि गुरू जी को भी इस कला का ज्ञान नहीं है। गुरु ने जब आगे देखा तो उसे एक जंगली/आदिवासी वेषभूषा मे धनुष बाण लिये एक छरहरे कद का फुर्तीला लड़का दिखा। जो आकर गुरू द्रोण को दण्डवत प्रणाम किया। लड़के ने अपना नाम एकलव्य बताया, और कहा कि एक बार वह गुरू के पास धनुर्विद्या सीखने के लिए आवेदन लेकर गया था। लेकिन गुरू ने यह कहते हुए कि "मैं केवल क्षत्रियों को ही अस्त्र शस्त्र की शिक्षा देता हूँ", और ठुकरा दिया था। तब से वह बालक गुरु की मूर्ति बनाकर धनुर्विद्या का अभ्यास करता है।
चूंकि एकलव्य मानसिक रूप से द्रोणाचार्य को अपना गुरु मानने की बात कह दिया था। बस यहीं से गुरु द्रोणाचार्य ने अपने छल रूपी विद्या का प्रयोग कर दिया। और गुरू दक्षिणा मे एकलव्य का अंगूठा मांग लिया। नेक, सहृदय और कृतज्ञ बालक एकलव्य बिना कोई देरी किये कुल्हाड़ी से अपना अंगुठा काटकर पंडित गुरु द्रोणाचार्य के चरणों में अर्पित कर दिया। अब जाकर गुरु द्रोणाचार्य ने राहत की सांस ली। क्योंकि अब उनके शिष्य के महान बनने के रास्ते में आने वाली एक बड़ी बाधा टल चुकी थी।
ये तो रही प्राचीन भारत की कथा। अब इसी कथा की पुनरावृत्ति आधुनिक भारत में भी साफ साफ दिखाई पड़ रहा है। पहले धनुर्विद्या लोकप्रिय खेल थी और आज क्रिकेट लोकप्रिय खेल है। दोनों में निशाना सही लगाकर लक्ष्य भेदने की कलाबाजी होती है। भारत के पंडित द्रोणाचार्यों ने और उनकी दरबारी जातिवादी मीडिया ने सचिन तेंदुलकर को क्रिकेट का भगवान, देवता, महान सबकुछ घोषित कर दिया। लेकिन जब भी इस अर्जुन(सचिन) को कोई एकलव्य चुनौती देने आता, तुरन्त BCCI जैसे द्रोणाचार्य उसका अंगूठा काट लेते।
इस समय सूर्य कुमार यादव जिस अंदाज़ में बल्लेबाजी कर रहे हैं। यदि उन्हें लगातार मैंचों मे खेलने के मौके मिले तो वह सचिन तेंदुलकर और रोहित शर्मा के रीकार्ड जो उन्होंने 15 या 20 सालों मे बनाये थे तोड़ देंगे। गेंदबाजी मे यही गति कुलदीप यादव की भी है। लेकिन तेंदुलकरों, शर्माओं के भगवान की मिथकीय छवि को बचाने के लिए और समस्त भारतीय समाज पर अपनी जाति की प्रतिभा का डर कायम रखने के लिए सूर्य कुमार यादव जैसे एकलव्यों का अंगुठा काटना द्रोणाचार्यों की मजबूरी है। ताकि तेंदुलकरों, शर्माओं का रिकॉर्ड बचा रहे और उन्हें लोग क्रिकेट का भगवान मानते रहें।
लेखक : शिवा नन्द यादव, शोधछात्र, गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर
1 Comments so far
Jump into a conversationvov nice yadaw ji
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