उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल और बिहार में, यादव समाज द्वारा काशीदास की पूजा सार्वजनिक रूप से बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। अभी तक तो यही जान पड़ता है कि अहीर या गड़ेरिया समाज का ही कोई आदमी इस पूजा को सम्पन्न कराता है। इस पूजा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि समाज के द्वारा बहुत मात्रा में आस्था के नाम पर दान के माध्यम से दूध इकठ्ठा हो जाता है और उसी से चावल की खीर बनाई जाती है, जो प्रसाद के रूप में अंधभक्तों को दी जाती है। बहुत सी महिलाएं इस खीर को भी वरदानी, वही खीर मानकर लेने के लिए टूट पड़ती है, जिस खीर को खाने से दशरथ की तीनों रानियों को पुत्र पैदा हुए थे।
इस पूजा में ब्राह्मण पुरोहित वर्जित था, लेकिन अब पूजा के नाम पर, कराह कराने वाले दम्पत्ति को गुरुमुख कराने के नाम पर या फिर हवन, हूंम या सत्यनारायण कथा के नाम पर घुसपैठ कर लिए हैं। हैसियत के अनुसार दस हजार से लेकर एक लाख तक लोग खर्च कर देते हैं। मान्यता है कि एक बार पूजा या कराह करा दिया तो साल अच्छा गुजरेगा। इस पूजा की समाज में पाखंडी, अंधविश्वासी मान्यता भर दी गई है कि, पूजा कराने वाले व्यक्ति (पतिवाह) के ऊपर उस समय एक देवी या माता जी का वास रहता है। इसी कारण से उस समय वह जो भी करेगा, बोलेगा, कहेगा, देखेगा, आशिर्वाद देगा, वह सब देवी माता चमत्कार कराती हैं और पुजारी भी ऐसा ही ढोंग (एक्टिंग) करने की कोशिश करता है। पाखंड देखिए, होती है श्रीकृष्ण (काशीदास) की पूजा, लेकिन पूजारी के सर पर आती है, माता जी। जय माता जी जय माता जी का उद्घोष हर समय होता रहता है।
नवम्बर 2021 में ऐसी ही एक पूजा सोनभद्र में मुझे शरीक होने का मौका मिला। एक सम्मानित डॉ साहब इस पूजा में पूरा विश्वास रखते थे, उनको मैंने अपने साथ पूजा के ठीक सामने बैठाया और वह जो भी करने वाला है या करने जा रहा है, सभी कारगुजारियां उनको समझाते और बताते गया, तब उनकी भी आंख खुल गई। पूजा के नाम पर अहिरों के द्वारा ही खूब खर्च करके अहिरों को ही बेवकूफ बनाकर, अपने ही बच्चों को मंदबुद्धि का बनाते है और दोष देते हैं कि बच्चा पढ़ने में कमजोर है, या आवारागर्दी करता है। समाज में अंधविश्वास और पाखंड जैसे मंत्र से आग मंगा देते हैं, (मंत्र से नहीं पावडर से पैदा करते हैं) भविष्य वाणी करके मौसम के बारे में झूठा भविष्य बता देते हैं, उबलते खीर में हाथ डाल देता है, आदि सब ढकोसला है। मैंने कयी जगहों पर इस तरह के पाखंड का भंडाफोड़ किया है, जैसे मैंने कह दिया आग तो यहां है, मिठाई मंगा दो, नहीं पासिवल। फिर कहा आग मंगा दो लेकिन मेरे हाथ पर नहीं पासिवल। मैं जब कहूं तब खीर में हाथ डालना, भाग खड़ा हुआ। एक जगह मैंने ज्योंही वह खीर में हाथ डाला त्योंही हाथ सिर्फ पांच सेकंड के लिए पकड़ लिया, चिल्ला उठा, फोड़ा पड़ गया, डाक्टर बुलाना पड़ा। यही नहीं, जिस लाठी को भांजते रहता है, जमीन पर रखते रहता है, उसी लाठी से खीर को भी चलाता रहता है, अपना गंदा हांथ भी डालता है, उसका ढक्कन भी नहीं होता है, खुले आसमान में पकता है। और उसी को पवित्र प्रसाद समझते और खाते भी हैं। ऐसे प्रसाद से मुझे घृणा होती है और मैं कभी भी नहीं खाया है। (यदि इस तरह बारात का रसोइया खाना बना दे तो हंगामा मच जाएगा।)
करीब करीब एक हजार लीटर ठंढे पानी से थोड़े थोड़े समय पर स्नान करता रहता है। जब दूध खौलना बंद होता है तो पहले अपने हाथ को ठंढे पानी भरे मटके में डालकर फिर तुरंत गर्म दूध में हाथ डाल कर झट से निकाल लेता है। सिर्फ इसी को बेवकूफ लोग चमत्कार समझ लेते हैं। हो सकता है इस तरह करते करते उसके हाथ में गर्मी सहने की छमता बढ़ गई हो। कुछ कारीगरों को देखा है जहां हम खड़े नहीं हो सकतें, वहां वे बैठकर दहकती भट्टी से कांच के ग्लास निकालते रहते हैं। ए सब बेवकूफ बना कर जनमानस को अंधविश्वासी और पाखंडी बनाने का षणयंत्र चलाया जाता है। यही कारण है कि हम जैसे तर्कवादी और विज्ञानवादियों की बात आज समाज सुनने को तैयार नहीं होता है।
एक जगह मैंने पूजा होने के बाद, पुजारी से बड़े इत्मीनान से प्यार से तर्क देकर अकेले में बातचीत किया, उसने स्वीकार किया कि, कोई चमत्कार मेरे पास नहीं है। फिर उसे समझाया कि पुजारी जी, मैं यदि अपनी बात को कितना भी सही कहूं, यह मूर्ख समाज नहीं मानेगा, लेकिन आप में श्रद्धा देखकर आप की बातों को आंख मूंदकर मान लेगा। मैंने सुझाव दिया कि,अंधश्रद्धा ही सही, लेकिन आप आसमान में अपने इस्ट देवता की ओर इशारा करते हुए, भविष्य देखते हुए, यह भविष्यवाणी करिए और कहिए कि मैं देख रहा हूं, चारों तरफ परिवार में एक दूसरे के प्रति नफरत, धोखा, बेइमानी, कलह, आपसी द्वेष फैल रहा है। बड़े छोटो में आपस में मान सम्मान घट रहा है। इस तरह चारों तरफ अनर्थ और पाप हो रहा है। इसकी वजह से हर परिवार या गांव में अनोखा संकट आने वाला है, इस दुष्परिणाम से कोई नहीं बचेगा, सभी को भोगना पड़ेगा। ऐसी भविष्य वाणी कीजिए, हो सकता है आप की बातों को देवी देवता की बात मानकर सुधार हो जाय। सही में कुछ बदलाव आ भी सकता है। पुजारी हमारी बातों को स्वीकार किया और कहा भी कि, मैं, आगे से ऐसा करने की कोशिश करूंगा।
लेखक: शूद्र शिवशंकर सिंह यादव
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