BAMCEF INSIDE EXIT

बामसेफ में अंदर आने और बाहर निकलने तक का सफर

By Ritu Bhiva March 26, 2022 01:03 0 comments

भूली-बिसरी यादें, 1982 दिसंबर महीने में,  मैं सरकारी काम से ITI नैनी इलाहाबाद गया हुआ था।  एक दिन नैनी से इलाहाबाद बस से जाते समय अचानक देखा कि, नैनी सेंट्रल जेल की लम्बी चौड़ी दीवार पर लिखा था। "ब्राह्मण,  क्षत्रिय, बनिया छोर' और बाकी सब डी-यस-फोर।" बस में सफर करते समय ही यह शब्द डी-यस-फोर क्या है,  दिमाग में क्लिक कर गया। दूसरे दिन ठीक उसके सामने एक गांव था, वहां भी जाकर पता लगाने की कोशिश किया,  लोगों ने मुझे खुफिया विभाग का आदमी समझते हुए,  कुछ भी बताने से मना कर दिया और कहा कि, हमलोगों को कुछ भी नहीं मालूम है,  अभी अभी कोई रातों-रात इस श्लोगन को लिख दिया है। पढ़ाई के समय से ही हमारे गांव में ठाकुरों और यादवों के बीच टकराव होते देखते आया था,  डी-यस-फोर के बारे में जानने की जिज्ञासा का यह भी एक मुख्य कारण हो सकता था,  लौटकर मुम्बई आने के बाद भी उसकी तलाश में लगा रहा।

उसी समय प्रभादेवी टेलकॉम बिल्डिंग में,  हमारे बास श्री राम आधार राम, जिनकी केबिन हमारे केबिन के जस्ट बगल में हुआ करती थी,  उनके पास लन्च टाइम में कुछ लोग मिलने के लिए आते,  और जब कभी उसी समय मैं अन्दर जाता तो वे लोग सहम जाते और बातचीत बन्द हो जाती थी,  इसलिए वहां रुकना अच्छा नहीं समझता था,  बाद में बास से एक दो बार पूछा भी कि,  साहब ए कौन लोग हैं?  जबाव था,  अरे फालतू लोग है,  गड़े मूर्दे उखाड़ रहे हैं,  हमारे बास थे तो,  ज्यादा इस पर बातचीत करना उचित नहीं समझा।

एक दिन अचानक देखा कि वही आदमी जो हमारे बास से मिलने आता था,  पी&टी कालोनी सहार अंधेरी के कम्पस में मार्निंग वाक कर रहा था।  एक दिन ड्यूटी जाते समय कालोनी से ही पीछा किया।  सेम बस से सफर किया,  अंधेरी से दादर तक लोकल ट्रेन में भी पीछा किया।  दादर उतरने के बाद पीछा करते हुए कबूतर खाना के पास,  मैंने जानबूझ कर उन्हें टोकते हुए नमस्ते किया और हालचाल पूछा,  उन्होंने जबाव देते हुए कहा सब ठीक है,  तब मैंने जबाव दिया,  कि क्या ठीक है साहब पांच प्रतिशत ब्राह्मण पूरे देश पर कब्जा किया हुआ है। यह सुनकर चौक गये और कहे कि आप तो हमारी बात बोल रहे हो,  परिचय के साथ अपने आफिस ले गए,  हमारे ही आफिस की बिल्डिंग में वे इग्यारवें महले पर और मैं ग्राउंड फ्लोर पर था। वह भला मानुष है,  यस यम सुर्वसे और उनके साथ जो आते थे उनका नाम है, 'डब्लू डी थोरात' जिसके लिए वे लोग हमारी आफिस में आते थे,  वह कभी भी कन्विंस नहीं हुआ।

बामसेफ ज्वाइन करते ही,  बाबा साहब के साहित्य से कुछ ज्ञान हासिल करने तथा मान्यवर कांशीराम के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर, अपने आप को मिशन के लिए समर्पित कर दिया। महाराष्ट्र में बामसेफ का अच्छा कैडर प्रशिक्षक होने के साथ-साथ मंथली या किसी कार्यक्रम के लिए डोनेशन में भी अग्रणी भूमिका निभाता था,  उत्तर भारतीयों को भी मिशन में भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए एक सामाजिक संस्था  "उत्तर भारतीय बहुजन परिषद"  बनाया था।  इसी के माध्यम से  "बहुजन का प्रहार"  एक मंथली मैगजीन भी प्रकाशित हो रही थी,  इसका विचार दिमाग में उस दिन आया था,  जिस दिन कांशीराम साहब ने दिल्ली में सवर्ण पत्रकारों को खदेड़ते हुए हाथ उठाया था। 1989 में लोगों को प्रशिक्षित करने के उद्देश्य से एक बुक "बहुजन चेतना"  भी लिखी और खुद प्रकाशित किया था।  इसी बैनर तले 2001में, कांशीराम साहब की अध्यक्षता में उत्तर भारतीयों की एक सफल संगोष्ठी आयोजित की गई थी।

'एक बार 1998 के पूना के बामसेफ के अधिवेशन के लिए,  मैंने डिक्लेयर किया था,  कि जितना मुम्बई के लिए मनी डोनेशन का टारगेट दिया जाएगा, उसका आधा हिस्सा मैं अकेले देने की कोशिश करूंगा।'

उस अधिवेशन के लिए 10 नये बामसेफ के सदस्यों को फ़ार्म और 1000 रूपये प्रति सदस्यता शुल्क के साथ,  टाटा सुमो से आठ लोगों को लेकर, 25,000 रूपए डोनेशन के साथ गया हुआ था,  आठ लोगों को एकत्र करने में मुम्बई से पूना जाने में,  मैं थोड़ी देर से पहुंचा था,  मुम्बई का डोनेशन देने का नम्बर आकर निकल चुका था,  मेरा लोग बेसब्री से इंतजार कर रहे थे, पहुंचते ही तुरंत सिर्फ मेरा पैसा लेकर मुम्बई के तरफ़ से 50000/- रूपए कांशीराम जी को डोनेशन देते हुए लोगों ने खुशियां मनाई और उनके साथ फोटो खिंचवाए।  उस मीटिंग में मेरे नाम का जिक्र तक नहीं हुआ,  मुझे इसका दुःख नहीं हुआ,  लेकिन दुःख ज्यादा यह हुआ कि,  जो मैं नये सदस्यों को लेकर वहां गया था,  उनका जिक्र या उनके फार्म तक नहीं लिए गए तथा मान्यवर जी से नये सदस्यों का परिचय तक नहीं कराया गया,  उनके पैसे लिए गए,  लेकिन बामसेफ के सदस्य नहीं बनाए गए,  खैर मैं बिना प्रतिक्रिया जताए, मीटिंग समाप्त होने के बाद दोस्तों के साथ वापस लौट आया।

एक घटना और जिसका जिक्र करना उचित समझता हूं,  दिन और महीना याद नहीं है,  महाराष्ट्र के प्रभारी श्री राम अचल राजभर की मीटिंग कन्नमवार नगर बिक्रोली में चल रही थी,  उसी समय यह खबर आई कि,  मान्यवर कांशीराम जी की मेडिकल बिल देने के लिए जो 5 लाख रुपए रखे गए थे वह भी,  सी बी आई  सीज कर ले गयी,  इस पर राम अचल राजभर के सामने मेरी पहली प्रतिक्रिया थी,  कि अरे पांच लाख क्या?  सालों के मुंह पर पांच करोड़ फेक दो।  कुछ दिन बाद ही मुख्यालय से फरमान जारी हुआ कि कोई भी सदस्य कम से कम पांच हजार रुपए का डोनेशन चेक या कैश कोर्ट स्टैम्प पेपर पर यह लिखकर दान दे कि यह दान राशि मैं अपनी स्वेच्छा से , बिना दबाव के बहन कुमारी मायावती को दे रहा हूं।  वह जैसे चाहें, अपनी इच्छा अनुसार खर्च कर सकती हैं,  इसके लिए मेरा कोई आब्जेक्शन नहीं है।

मैं अपना खुद और तीन लोगों का एफिडेविट लेकर  20,000/- रूपए उस समय श्री राम अचल राजभर को दिए थे,  पता चला करोड़ों रूपए बहन मायावती जी के एकाउंट में उस समय जमा हो गए थे,  जो सी बी आई के लिए मुश्किलें खड़ी कर दिया था,  और जांच में काफी फायदा हुआ था।  सन् 2006 में तामिलनाडु में विधानसभा चुनाव था।  'डा० सुरेश माने जी' महासचिव तथा उस समय तमिलनाडु और केरल के प्रभारी भी थे,  उन्हीं के आग्रह पर 15 दिन की छुट्टी लेकर, दिनेश राजभर, राम खंडागले और माने साहब के साथ बाई रोड मुम्बई से चेन्नई गये थे।

बहन मायावती जी की मीटिंग होने वाली थी,  दो चार दिन पहले करुणानिधि की मीटिंग जिस मैदान में हुई थी,  उसी स्टेज को ठेकेदार से ले लिया गया था,  उसी को बहन मायावती जी के सुविधानुसार मोडिफाई करना था,  इंग्लिश बाथरूम को तोडकर इन्डियन बनाया गया,  करुणानिधि के लिए ह्वीलचेयर से स्टेज पर जाने के लिए रैम्प बना हुआ था,   उसे तोडकर सीढ़ी बनाईं गई,  दो स्टेप के बीच को  हमलोगों ने लकड़ी से कभर न करते हुए कार्पेट बिछा कर ढक दिया था,  एक पुलिस वाला आया और कहा की,  कभी चढ़ते समय पैर फंस गया तो बहन जी गिर सकती है,  फिर से तोड़कर एक दम स्मूथ बनाना पड़ा,  स्टेज की आउटसाइडर रैलिंग एक फीट ऊंची बनाई गई थी , उसको भी आब्जेक्शन करते हुए कि,  लोगों का अभिवादन करते समय कहीं आगे फिसल गई तो,  इसको भी तोड़कर फिर से दो फीट ऊंचा किया गया,  स्टेज इतना साफ-सुथरा होना चाहिए कि कहीं कोई दाग न दिखाई दे,  बीच में एक फरमान आया कि 7 सफेद कलर की बड़ी साइज और अच्छी क्वालिटी की तौलिया होटल के कमरे में और मीटिंग स्थल पर मुहैया कराई जाये,  मैंने सुना था करीब करीब दस लाख रुपए खर्च हो चुके थे,  पैसे की तंगी,  क्यों कि मैंने होटल में एक दिन पहले मुस्किल से पैसे का जुगाड़ करते हुए कार्यकर्ताओं को देखा था,  यह देखते हुए हमलोगों ने सिर्फ 6 तौलिया होटल में भेजा और सुझाव दे दिया,  कि वही तावेल फिर उनके साथ यहां पर भी प्रयोग कर ली जाएगी,  इस पर दो बातें सेक्योरिटी वालों से मुझे सुनने को मिली और अलग से 6 तौलियों का सभा स्थल पर भी प्रबंध किया गया।
 
भाषण स्थल पर,  प्रेस रूम,  वेटिंग रूम,  बाथ रूम और स्टेज सभी फाइनल हो गया,  तीन बजे मीटिंग का टाइम रखा गया था,  दो बजे के आसपास फिर तिवारी पुलिस वाला स्टेज पर आया और हमसे ही कहने लगा कि,  इन दो कैबिनेट एसी में से एक अच्छी नहीं दिख रही है,  इसे बदल दो।  मैं फिजूलखर्ची सुना तो था,  विश्वास नहीं करता था,  लेकिन पहली बार अपनी नजरों से देख रहा था,  सो यह सब खुशी से नहीं कर पा रहा था,  उस पुलिस वाले को जबाब दे दिया कि अब  समय बहुत कम है,  बदलना पासिबुल नहीं है,  इसे सर्फ लगाकर कपड़े से साफ करवा देंगे,  लेकिन बदलेंगे नहीं,  इस पर उससे हाट डिस्कसन हो गया और जोर देकर कहने लगा कि यह कैसा कार्यकर्ता है कि?  बहन जी के आर्डर का बिरोध कर रहा है। यह सुनकर प्रमोद कुरील राज्य सभा सांसद दौड़कर स्टेज पर आए और मुझे पकड़कर स्टेज से नीचे ले गये और बड़े भाउक होते हुए हमसे कहने लगे कि,  मैं आप के पुराने 20/- महीने डोनेशन देने वाले बामसेफी जज्बात को समझता हूं,  लेकिन मैं भी मजबूर हूं,  इनके हर फरमान को आंख बन्द कर मानना है,  अगर इनसे ज्यादा बहस करोंगे तो आप को ही सुरक्षा के लिए खतरा बताकर इस पंडाल से बाहर कर देंगे और मैं कुछ भी आप की हेल्प नहीं कर सकता हूं,  वहां पर डा० सुरेश माने, दिनेश राजभर के साथ और भी बहुत से लोग मौजूद थे।

पैसा तो मेरे पाकिट से नहीं जा रहा था,  फिर भी पता नहीं क्यों,  हालातों को देखते हुए काफी आहत हो रहा था,  सिर्फ अपने स्वभाव में दोष निकालते हुए,  उसी समय मैं वहां से बिना भाषण सुने होटल आ गया और दूसरे दिन मुम्बई के लिए अकेले रवाना हो लिया।

सीट पर आराम से बैठने के बाद,  अब मिशन के अतीत की बातें याद आने लगी थी,  कम्पेयर करने लगा था,  उस समय ऐसा लग रहा था कि, कोई मेरे मकान को आग के हवाले कर दिया है,  यह भी सोच रहा था कि सिर्फ पुलिस वाले पर इतना भरोसा क्यों?  एक बार जो डिजाइन बन गई और पुलिस वाले के दिमाग में बैठा दी गई,  उसी पर अडिग क्यों?  कोई, क्यों नहीं सुझाव दे सकता था कि,  जब सिर्फ इमरजेंसी में ही कभी कभार  बाथ रूम यूज करना है तो, इंग्लिश बाथरूम से भी काम चल सकता है,  रैम्प से भी आप स्टेज पर जा सकती है,  एक फीट की बैरिकेडिंग या थोड़ी पुरानी एसी भी चल सकती है,  हो सकता है बहन जी मान जाये,  नेताओं में आपसी सम्वाद की कमी दिख रही थी,  बाद में मैंने अनुभव किया कि, यही कारण था कि बहन जी की मीटिंग कराने के लिए लोग आगे नहीं आ रहे थे, मेरी जानकारी में आज श्री प्रमोद कुरील,  डा० सुरेश माने,  दिनेश राजभर और खंडागले जी भी बसपा में नहीं है।

मांफी चाहता हूं, किसी को आहत करने की भावना से नहीं, बल्कि इससे सबक लेने की अनुषंसा से यह लेख प्रस्तुत कर रहा हूं।

लेखक:  शूद्र शिवशंकर सिंह यादव

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