A widow became pregnant

एक विधवा स्त्री कैसे हो गयी गर्भवति, क्या ये भी विधि का विधान था?

By Ritu Bhiva May 21, 2022 02:32 0 comments

एक विधवा बहू ने अपनी सास को बताया कि वह तीन माह के गर्भ से है इतना सुनते ही पूरे परिवार में हंगामा मच गया, समाज में भूचाल आ गया लोगो ने पंचायत जुटाई और उस बहू से बच्चे के बाप का नाम जानना चाहा। भरी पंचायत में बहू ने बताया कि तीन  माह पूर्व वह प्रयागराज त्रिवेणी संगम स्नान करने गई थी,  स्नान के समय मैने गंगा का आचवन करते हुए तीन बार गंगा जल पिया था हो सकता है उसी समय किसी ऋषि महात्मा या साधु का वीर्य गंगा में आस्खलन हो गया और वो आचवन के साथ मेरे से पीया गया हो और उसी से मै गर्भवती हो गई। सरपंच जी ने कहा यह असम्भव है ऐसा कभी हो ही नहीं सकता कि किसी के वीर्य पी लेने से कोई गर्भवती हो जाए। उस महिला ने सरपंच को जवाब दिया और कहा हमारे धर्म ग्रंथों में तो यही बात बताई गई है कि :

▶  विभंडक ऋषि के वीर्य अश्खलन हो जाने से श्रृंगी ऋषि पैदा हुए थे।
▶  हनुमान जी का पसीना मछली ने पी लिया वह गर्भवती हुई और मकरध्वज पैदा हुए।
▶  सूर्य के आशीर्वाद से कुंती गर्भवती हो गई और कर्ण पैदा हुए।
▶  मछली के पेट से मत्स्यग्नधा (सत्यवती) पैदा हुई।
▶  खीर खाने से राजा दशरथ की तीनों रानियां गर्भवती हुई और चार पुत्र पैदा हो गए।
▶  जमीन के अंदर गड़े हुए घड़े से सीता माता पैदा हुई थीं।


गांव की भरी पंचायत ने एक स्वर में जोर से कहा, ये असंभव है, ये विधवा कलंकिनी है, इसने सफेद झूठ बोलकर गांव को गुमराह किया है। विधवा बहु ने जवाब दिया, जब हमारा धर्म इन बातों को संभव बताता है तो हम मान लेते हैं और जब मैं भी वही बता रही हूँ तो ये सारी बातें असंभव हैं, धर्म बिल्कुल सही है और मैं कलंकिनी? बहू ने बड़ी शालीनता से कहा कि, मै बताना चाहती हूं कि मै गर्भवती नहीं हूं मैने यह नाटक इसलिए किया था ताकि इस पाखंडी समाज की आंखे खुल जाए।

आप लोग ऐसे धर्म पुस्तकों में दिये गये ज्ञान का अनुसरण करें, उनमें लिखी गईं काल्पनिक कहानियों पर विश्वास ना करें जो उन भगवानों ने नही लिखी हैं बल्कि धर्म को धंधा बनाने वालों ने लिखीं हैं। कोई भी भगवान ये नही कहता कि आप किसी दूसरे भगवान को मानने वाले का खून बहाएं और नाम अपने भगवान का लें।

जब कोई भी इंसान एक नवजात के रूप में इस धरती पर आता है, वह सिर्फ एक इंसान होता है और उसकी मासूमियत ही इंसानियत होती है। ये तो धर्म के नाम पर धंधा करने वाले उस इंसानियत के ऊपर हैवानियत का रंग चढ़ाना शुरू कर देते हैं, ताकि उनका धंधा चलता रहे और धर्म के नाम पर राजनीति होती रहे। क्योंकि मैं भी एक हिन्दू हूँ इसीलिए सिर्फ हिन्दू मान्यताओं के उदाहरण दिये हैं, हो सकता है कि इस प्रकार की "कहानियां" अन्य धर्म की पुस्तकों में भी हों पर मुझे उनकी जानकारी नही है। इसीलिए उस पर कोई उदाहरण नही दिया है।

अन्धविश्वास,  पाखंडवाद, ढकोसला,  भगवान के नाम पर भय दिखाकर अपने व्यापार को चलाने वालों का बहिष्कार करिये। एक बार "जयहिंद" बोलकर देखो, आपका नज़रिया ही बदल जायेगा, सिर्फ "तिरंगा" नज़र आएगा जिसमे केसरिया रंग भी है और हरा रंग भी।

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