Valmiki community and Maharishi Valmiki

वाल्मीकि समुदाय का सच और आखिर कौन थे महर्षि वाल्मीकि?

By Ritu Bhiva June 16, 2022 05:10 0 comments

महर्षि बाल्मीकि कौन थे? उनके बारे में विस्तार से रचयिता आदि कवि वाल्मीकि के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए नहीं बल्कि “सफाई कर्मी जाति ” को हिन्दू धर्म की जाति व्यवस्था पर आस्था पक्की करने के तहत दी है। वाल्मीकि का सफाई कर्मचारियों से क्या सम्बन्ध बनता है? छुआछूत और दलित मुक्ति का वाल्मीकि से क्या लेना देना है? क्या वाल्मीकि छूआछूत की जड़ हिन्दू ब्राह्मण जाति धर्म से मुक्ति की बात करते हैं? वाल्मीकि ब्राह्मण थे, यह बात रामायण से ही सिद्ध है। वाल्मीकि ने कठोर तपस्या की, यह भी पता चलता है कि दलित परम्परा में तपस्या कीअवधारणा ही नहीं है। यह वैदिक परम्परा की अवधारणा है। इसी वैदिक परम्परा से वाल्मीकि आते हैं। वाल्मीकि का आश्रम भी वैदिक परम्परा का गुरुकुल है, जिसमें ब्राह्मण और राजपरिवारों के बच्चे विद्या अर्जन करते हैं। ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिलता कि वाल्मीकि ने शूद्रों-अछूतो को शिक्षा दी हो। अछूत जातियों की या सफाईकार्य से जुड़े लोगों की मुक्ति के संबंध में भी उनके किसी आन्दोलन का पता नहीं चलता। फिर वाल्मीकि सफाई कर्मचारयों के भगवान कैसे हो गए?

जब हम इतिहास का अवलोकन करते हें, तो 1925 से पहले हमें वाल्मीकि शब्द नहीं मिलता। सफाई कर्मचारियों और चूह्डों को हिंदू फोल्ड में बनाये रखने के उद्देश्य से उन्हें वाल्मीकि से जोड़ने और वाल्मीकि नाम देने की योजना बीस के दशक में आर्य समाज ने बनाई थी। इस काम को जिस आर्य समाजी पंडित ने अंजाम दिया था, उसका नाम अमीचंद शर्मा था। यह वही समय है, जब पूरे देश में दलित मुक्ति के आन्दोलन चल रहे थे। महाराष्ट्र में डा. आंबेडकर का हिंदू व्यवस्था के खिलाफ सत्याग्रह, उत्तर भारत में स्वामी अछूतानन्द का आदि हिंदू आन्दोलन और पंजाब में मंगूराम मूंगोवालिया का आद-धर्म आन्दोलन उस समय अपने चरम पर थे। पंजाब में दलित जातियां बहुत तेजी से आद-धर्म स्वीकार कर रही थीं। आर्य समाज ने इसी क्रांति को रोकने के लिए अमीचंद शर्मा को काम पर लगाया। योजना के तहत अमीचंद शर्मा ने सफाई कर्मचारियों के महल्लों में आना-जाना शुरू किया। उनकी कुछ समस्याओं को लेकर काम करना शुरू किया। शीघ्र ही वह उनके बीच घुल-मिल गया और उनका नेता बन गया। उसने उन्हें डा. आंबेडकर, अछूतानन्द और मंगूराम के आंदोलनों के खिलाफ भडकाना शुरू किया। वे अनपढ़ और गरीब लोग उसके जाल में फंस गए। 1925 में अमीचंद शर्मा ने ‘श्री वाल्मीकि प्रकाश’ नाम की किताब लिखी, जिसमें उसने वाल्मीकि को उनका गुरु व पुर्वज बताया और उन्हें वाल्मीकि का धर्म अपनाने को कहा।

अमीचन्द-शर्मा ने उनके सामने वाल्मीकि धर्म की रूपरेखा भी रखी। डॉ. आंबेडकर, अछूतानन्द और मंगूराम के आन्दोलन दलित जातियों को गंदे पेशे छोड़ कर स्वाभिमान के साथ साफ-सुथरे पेशे अपनाने को कहते थे। इन आंदोलनों के प्रभाव में आकार तमाम दलित जातियां गंदे पेशे छोड़ रही थीं। इस परिवर्तन से ब्राह्मण बहुत परेशान थे। उनकी चिंता यह थी कि अगर सफाई करने वाले दलितों ने मैला उठाने का काम छोड़ दिया, तो ब्राह्मणो के घर नर्क बन जायेंगे। इसलिए अमीचंदशर्मा ने वाल्मीकि धर्म खड़ा करके सफाई कर्मी समुदाय को ‘वाल्मीकि समुदाय’ बना दिया। उसने उन्हें दो बातें समझायीं। पहली यह कि हमेशा हिन्दू धर्म की जय मनाओ, और दूसरी यह कि यदि वे हिंदुओं की सेवा करना छोड़ देंगे, तो न उनके पास धन आएगाऔर न ज्ञान आ पा पायेगा।

अमीचंद शर्मा का षड्यंत्र कितना सफल हुआ, सबके सामने है। आदिकवि वाल्मीकि के नाम से सफाई कर्मी समाज वाल्मीकि समुदाय के रूप में पूरी तरह स्थापित हो चुका है। ‘वाल्मीकि धर्म‘ के संगठन पंजाब से निकल कर पूरे उत्तर भारत में खड़े हो गए हैं। वाल्मीकि धर्म के अनुयायी वाल्मीकि की माला और ताबीज पहनते हैं। इनके अपने धर्माचार्य हैं, जो बाकायदा प्रवचन देते हैं और कर्मकांड कराते हैं। ये वाल्मीकि जयंती को “प्रगट दिवस” कहते हैं। इनकी मान्यता है कि वाल्मीकि भगवान हैं, उनका जन्म नहीं हुआ था, वे कमल के फूल पर प्रगट हुए थे, वे सृष्टि के रचयिता भी हैं और उन्होने रामायण की रचना राम के जन्म से भी चार हजार साल पहले ही अपनी कल्पना से लिख दी थी।

आज भी जब हम वाल्मीकि समाज के लोगों के बीच जाते है तो सफाईकर्मी वाल्मीकि के खिलाफ सुनना तक पसंद नहीं करते। बाबा साहब जी ने सही कहा है कि धर्म के कारण ही हम लोग आज भी गुलाम बने हुए हैं। जब तक इन काल्पनिक धर्मों को मानते रहोगे, तब तक मूलनिवासी, चाहे वो किसी भी समुदाय से हैं, उसका उद्दार संभव नहीं है। काल्पनिक कहानियों के आधार पर खुद को सर्वोच्च साबित करना ही असली ब्राह्मणवाद है। और यही काम आज हर कोई मूलनिवासी कर रहा है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि आज मूलनिवासी ही अपनी गुलामी के लिए मुख्य रूप से जिमेवार है। धर्म वह व्यवस्था है जिसके अंतर्गत ब्राह्मणवादी लोगों ने मूलनिवासियों को मानसिक गुलाम बनाया है और जब तक मूलनिवासी धर्म को नहीं छोड़ेंगे तब तक ना तो मूलनिवासी समाज एक हो सकता है और ना ब्राह्मणवाद से मुक्त।

हमें इस सच को स्वीकार करना ही पड़ेगा कि वाल्मीकि ने अपने समय में या ब्राह्मणों द्वारा लिखित रामायण जैसी किताबों में कही नहीं लिखा है कि मूलनिवासियों से प्यार करो, मूलनिवासियों को उनके अधिकार दो या मूलनिवासियों को सम्मान दो और मूलनिवासियों को पढने-लिखने दो। यह बात सिर्फ बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर ने ही लिखी है। इसलिए हमारा भला कोई भी काल्पनिक भगवान या कहानियों से नहीं हो सकता। “काल्पनिक और मनघडंत कहानियों के आधार पर, अपने आप को सर्वोच्च साबित करना ही ब्राह्मणवाद है।” जिस दिन आप लोग यह बात समझ जाओगे ठीक उसी दिन मनुवाद से मुक्ति हासिल कर लोगे।

लेखक : रतन लाल गोतरा

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