भारत की पहली महिला अध्यापिका व शिक्षा की असली देवी सावित्रीबाई फुले
By Ritu Bhiva February 12, 2022 05:13 0 commentsसावित्री बाई फुले: जिन्होंने औरतों को ही नहीं, मर्दों को भी उनकी जड़ता और मूर्खता से आज़ाद किया। दुनिया में लगातार विकसित और मुखर हो रही नारीवादी सोच की ठोस बुनियाद सावित्रीबाई और उनके पति ज्योतिबा ने मिलकर डाली। दोनों ने समाज की कुप्रथाओं को पहचाना, विरोध किया और उनका समाधान पेश किया।
परिचय
सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था। इनके पिता का नाम खन्दोजी नैवेसे और माता का नाम लक्ष्मी था। सावित्रीबाई फुले का विवाह 1840 में ज्योतिबा फुले से हुआ था। सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले (3 जनवरी 1831 – 10 मार्च 1897) भारत की प्रथम महिला शिक्षिका, समाज सुधारिका एवं मराठी कवियत्री थीं। उन्होंने अपने पति ज्योतिराव गोविंदराव फुले के साथ मिलकर स्त्री अधिकारों एवं शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए। वे प्रथम महिला शिक्षिका थीं। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य का अग्रदूत माना जाता है। 1852 में उन्होंने बालिकाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की।
सावित्रीबाई फुले भारत के पहले बालिका विद्यालय की पहली प्रिंसिपल और पहले किसान स्कूल की संस्थापक थीं। महात्मा ज्योतिबा को महाराष्ट्र और भारत में सामाजिक सुधार आंदोलन में एक सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में माना जाता है। उनको महिलाओं और दलित जातियों को शिक्षित करने के प्रयासों के लिए जाना जाता है। ज्योतिराव, जो बाद में ज्योतिबा के नाम से जाने गए सावित्रीबाई के संरक्षक, गुरु और समर्थक थे। सावित्रीबाई ने अपने जीवन को एक मिशन की तरह से जीया जिसका उद्देश्य था विधवा विवाह करवाना, छुआछूत मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना। वे एक कवियत्री भी थीं उन्हें मराठी की आदिकवियत्री के रूप में भी जाना जाता था।
सामाजिक मुश्किलें
वे स्कूल जाती थीं, तो विरोधी लोग उनपर पत्थर मारते थे। उन पर गंदगी फेंक देते थे। आज से 171 साल पहले बालिकाओं के लिये जब स्कूल खोलना पाप का काम माना जाता था तब ऐसा होता था। रास्ते में कुछ लोग उन पर गोबर फेंक देते थे। गोबर फेंकने वाले ब्राह्मणों का मानना था कि शूद्र-अतिशूद्रों को पढ़ने का अधिकार नहीं है। वह दो साड़ी लेकर जाती थीं। घर से जो साड़ी पहनकर निकलती थीं वो दुर्गंध से भर जाती थी। स्कूल पहुंच कर दूसरी साड़ी पहन लेती थीं। फिर लड़कियों को पढ़ाने लगती थीं।
सावित्रीबाई पूरे देश की महानायिका हैं। हर बिरादरी और धर्म के लिये उन्होंने काम किया। जब सावित्रीबाई कन्याओं को पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर, विष्ठा तक फेंका करते थे। सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुँच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं। अपने पथ पर चलते रहने की प्रेरणा बहुत अच्छे से देती हैं।
विद्यालय की स्थापना
यह घटना 1 जनवरी 1848 के आस-पास की है। इसी दिन सावित्री बाई फुले ने पुणे शहर के भिड़ेवाडी में लड़कियों के लिए एक स्कूल खोला था। इस दिन भारत की सभी महिलाओं और पुरुषों को उनके सम्मान में उन्हीं की तरह का टीका लगाना चाहिए क्योंकि इस महिला ने स्त्रियों को ही नहीं मर्दों को भी उनकी जड़ता और मूर्खता से आज़ाद किया है। 3 जनवरी 1848 में पुणे में अपने पति के साथ मिलकर विभिन्न जातियों की नौ छात्राओं के साथ उन्होंने महिलोओ के लिए एक और विद्यालय की स्थापना की। एक वर्ष में सावित्रीबाई और महात्मा फुले पाँच नये विद्यालय खोलने में सफल हुए। तत्कालीन सरकार ने इन्हे सम्मानित भी किया। एक महिला प्रिंसिपल के लिये सन् 1848 में बालिका विद्यालय चलाना कितना मुश्किल रहा होगा, इसकी कल्पना शायद आज भी नहीं की जा सकती। लड़कियों की शिक्षा पर उस समय सामाजिक पाबंदी थी। सावित्रीबाई फुले उस दौर में न सिर्फ खुद पढ़ीं, बल्कि दूसरी लड़कियों के पढ़ने का भी बंदोबस्त किया। इस साल दो जनवरी को केरल में अलग-अलग दावों के अनुसार तीस से पचास लाख औरतें छह सौ किमी रास्ते पर दीवार बन कर खड़ी थीं। 1848 में सावित्री बाई अकेले ही भारत की करोड़ों औरतों के लिए दीवार बन कर खड़ी हो गई थीं। केरल की इस दीवार की नींव सावित्री बाई ने अकेले डाली थी। अपने पति ज्येतिबा फुले और सगुणाबाई से मिलकर।
फुले दम्पत्ति ने 28 जनवरी 1853 में अपने पड़ोसी मित्र और आंदोलन के साथी उस्मान शेख के घर में बाल हत्या प्रतिबंधक गृह की स्थापना की। जिसकी पूरी जिम्मेदारी सावित्रीबाई ने संभाली। वहां सभी बेसहारा गर्भवती स्त्रियों को बगैर किसी सवाल के शामिल कर उनकी देखभाल की जाती उनकी प्रसूति कर बच्चों की परवरिश की जाती जिसके लिए वहीं पालना घर भी बनाया गया। यह समस्या कितनी विकराल थी इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मात्र 4 सालों के अंदर ही 100 से अधिक विधवा स्त्रियों ने इस गृह में बच्चों को जन्म दिया। 1892 में उन्होंने महिला सेवा मंडल के रूप में पुणे की विधवा स्त्रियों के आर्थिक विकास के लिए देश का पहला महिला संगठन बनाया। इस संगठन में हर 15 दिनों में सावित्रीबाई स्वयं सभी गरीब दलित और विधवा स्त्रियों से चर्चा करतीं, उनकी समस्या सुनती और उसे दूर करने का उपाय भी सुझाती।
निधन
10 मार्च 1897 को प्लेग के कारण सावित्रीबाई फुले का निधन हो गया। प्लेग महामारी में सावित्रीबाई प्लेग के मरीजों की सेवा करती थीं। एक प्लेग के छूत से प्रभावित बच्चे की सेवा करने के कारण इनको भी छूत लग गया। और इसी कारण से उनकी मृत्यु हुई।
इनकी जीवनी से गुज़रिए आप गर्व से भर जाएंगे। सावित्री बाई की तस्वीर हर स्कूल में होनी चाहिए चाहे वह सरकारी हो या प्राइवेट। दुनिया के इतिहास में ऐसे महिला नहीं हुई। जिस ब्राह्मणवाद ने उन पर गोबर फेंके, उनके पति ज्योतिबा को पढ़ने से पिता को इतना धमकाया कि पिता ने बेटे को घर से ही निकाल दिया। उस सावित्री बाई ने एक ब्राह्मण की जान बचाई जब उससे एक महिला गर्भवती हो गई। गांव के लोग दोनों को मार रहे थे। सावित्री बाई पहुंच गईं और दोनों को बचा लिया।
सावित्री बाई ने पहला स्कूल नहीं खोला, पहली अध्यापिका नहीं बनीं बल्कि भारत में औरतें अब वैसी नहीं दिखेंगी जैसी दिखती आई हैं, इसका पहला जीता जागता मौलिक चार्टर बन गईं। उन्होंने भारत की मरी हुई और मार दी गई औरतों को दोबारा से जन्म दिया। मर्दों का चोर समाज पुणे की विधवाओं को गर्भवती कर आत्महत्या के लिए छोड़ जाता था। सावित्री बाई ने ऐसी गर्भवती विधवाओं के लिए जो किया है उसकी मिसाल दुनिया में शायद ही हो। दुनिया में लगातार विकसित और मुखर हो रही नारीवादी सोच की ऐसी ठोस बुनियाद सावित्रीबाई और उनके पति ज्योतिबा ने मिलकर डाली। दोनों ऑक्सफोर्ड नहीं गए थे। बल्कि कुप्रथाओं को पहचाना, विरोध किया और समाधान पेश किया।
हम सावित्रीबाई फुले को सिर्फ डाक टिकटों के लिए याद न करें। बल्कि याद करें तो इस बात के लिए कि उस समय का समाज कितना घटिया और निर्दयी था, उस अंधविश्वासी समाज में कोई तार्किक और सह्रदयी एक महिला भी थी जिसका नाम सावित्री बाई फुले था। आज जरूरत है हम सभी महान क्रान्तिकारी समाज-सुधारक जयोतिबाराव फुले और प्रथम महिला साबित्रीबाई फुले और उनके सहयोगियों फातिमा शेख को नमन करते हुए उनके योगदान को सभी को बतायें।
मैंने यह हिस्सा फार्वर्ड प्रेस में सुजाता पारमिता के लेख से लिया है। सुजाता ने सावित्रीबाई फुले का जीवन-वृत विस्तार से लिखा है। आप उसे पढ़िए और शिक्षक हैं तो पढ़ कर सुनाइये। ये हिस्सा ज़ोर-ज़ोर से पढ़िए।
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