Why vegetable and fruit carts disappeared

सब्ज़ी और फल बेचने वालों के ठेले क्यों गायब हो गये

By Ritu Bhiva March 24, 2022 10:42 0 comments

पिछले काफी समय से देख रहा हूँ,  हमारे मोहल्ले में सब्ज़ी और फल बेचने वालों के ठेले गायब हो गये हैं,  इक्का-दुक्का ही दिखते हैं,  सब्ज़ी-फल की स्थायी और बड़ी दुकानें अब भी लग रही हैं,  MORE और Easy Day जैसे कुछ बड़े स्टोर्स में भी फल-सब्जियां मिल रही हैं,  शुरू में मैने सोचा कि अच्छी कानून व्यवस्था के नाम पर पुलिस ने इन गरीब ठेले वालों को भगा दिया ताकि मध्यवर्गीय लोगों के मोहल्ले और सड़कें 'सुंदर' दिखें पर आज सुबह-सुबह मेरा भ्रम दूर हुआ और सच पता चला,  पार्क के सामने वाली सड़क पर एक परिचित सब्जी वाले को देखा तो नजदीक चला गया,  उसके ठेले पर सब्जियां नहीं थीं,  सिर्फ कुछ फल थे,  केले, अंगूर और कुछ सूखे-पिचके से संतरे,  उत्सुकतावश  ठेले वाले से मैने एक साथ कई सवाल पूछ डाले  'अरे भाई, सब्जियां क्यों नहीं बेच रहे हो अब?  फल भी बहुत कम रखे हो?  काफी दिन से देख रहा हूं,  अब पहले की तरह ठेले वाले यहां नहीं आ रहे हैं,  आज बहुत दिनों बाद तुम्हारा ठेले दिखा तो यही जानने आ गया,  उसने बड़े प्यार से कहा  'बाबू जी केले ले लो,  बिल्कुल ताजा लाया हूँ,  'मंडी से' मैने उसे निराश नहीं किया, 'अब आ गया हूं तो तुमसे ही कुछ संतरे और केले ले लूंगा,  पहले रेट बताओ?' ठेले वाले ने लगभग रुआंसा होते हुए कहा,  'यह रेट ही तो है आपके सारे सवालों का जवाब,' फिर उसने पूरी कहानी सुना दी कि किस तरह फल और सब्जियां खाना लोगों ने कम कर दिया है,  सिर्फ अच्छे खासे धनी मानी लोग ही अब फल-सब्जियां नियमित ले रहे हैं,  अन्य लोगों ने फल तो लगभग छोड़ ही दिया हैं,  ज्यादातर लोग सब्ज़ी के नाम पर आलू और कुछ इसी तरह की अन्य चीजें रविवार बाजार (हमारे इलाके में सड़क किनारे हर रविवार को सब्ज़ी बाजार लगता है, इसमें सब्जी दुकानदार के अलावा गावों से छोटे किसान या उन किसानों से सीधे खरीदकर कुछ ग्रामीण भी सब्जियां ले आते हैं)  से खरीद रहे हैं,  पहले की तरह सप्ताह के मध्य में ताजा सब्ज़ी और फल खरीदने वाले पहले से काफी कम हो गये हैं,  यही कारण है कि अब फल और सब्जियों के ठेले लगाने वाले कम हो गये हैं,  सब्जियां बिकती नहीं तो ठेले पर पड़े पड़े सूख कर खराब हो जाती हैं,  गर्मियों में ज्यादा नुकसान हो रहा था,  इसलिए लोगों ने अब ठेले लगाना बहुत कम कर दिया है।  

सुनाने लायक एक वाकया और है,  मोहल्ले की एक बड़ी आवासीय सोसाइटी की चारदीवारी के पास आज चाय पान का नया ठेला देखा,  ठेले के मालिक अपने हाव भाव से कुछ अलग नज़र आये,  पूछने पर पता चला,  पहले किसी अन्य धंधे में थे,  अच्छी स्थिति में थे,  पर वह बंद हो गया तो अब चाय पान की दुकान कर ली है।

यह एक या दो व्यक्ति की कहानी नहीं है,  अपने आस पास पूछेगे तो आपको ऐसी अनगिनत कहानियां सुनने को मिलेंगी,  हमारे इलाके के बाजार में बड़ा कमरा लेकर खाने-पीने के सामान की अच्छी खासी दुकान चलाने वाले बिहार के एक नौजवान की दुकान के बंद हुए तकरीबन छह महीने हो गये,  जिस दिन 'मदर डेयरी' नहीं जा पाता था,  मैं उसी की दुकान से दूध दही और ब्रेड आदि खरीदता था,  उसकी पत्नी भी कभी कभी दुकान पर बैठती थी,  वैश्य पृष्ठभूमि का वह नौजवान बहुत खुशनुमा मिज़ाज का था,  अपने को मोदी जी का भक्त भी कहता था,  मेरा अंदाज है, महीने में हजारों की कमाई थी उसकी,  वह मेरा वीडियो भी देखता रहता था पर मुझसे नाराज़ नहीं होता था,  बस मज़ाकिया लहजे में कभी कभी कुछ कह देता था,  'सर कुछ भी कह लो,  आयेंगे तो  जी ही ' एक दिन देखा,  उसकी दुकान बंद है,  अगले दिन भी बंद थी,  सप्ताह भर बंद देखने के बाद उसके पड़ोस की दवा दुकान के मालिक से पूछा तो पता चला कि भारी नुकसान के चलते वह दुकान का सामान किसी तरह बेच बाच कर बिहार लौट गया।  

लोगों के खाने पीने के स्तर में भारी गिरावट है, बेरोजगारी बेतरह बढ़ी है,  रोजगार के अवसर सिकुड़ गये हैं,  निश्चय ही इन सबका असर पोषण,  जन स्वास्थ्य और प्रति व्यक्ति आय के आकड़े पर भी पड़ रहा होगा,  पर मीडिया,  चुनावी सियासत और कुलीन समाज की नज़र से देखें तो देश मज़े में है,  तरक्क़ी हो रही है,  सत्ताधारी दल लगातार चुनाव भी जीत रहा है।

लेखक:  वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश

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