shudra name reality

शूद्र नाम पर प्रश्न और उसकी वास्तविकता

By Ritu Bhiva March 26, 2022 04:34 0 comments

बहुत से बुजदिल लोगो के दिमाग मे यह प्रश्न उठता है,  कि किसी की दी हुई गाली,  शूद्र पर हम गर्व क्यों करे?  साथियो, मेरा दृणविश्वास है कि नाम से नहीं,  बुरे और अच्छे काम से किसी की महानता नापी जाती है,  नाम अच्छा,  बुरा बनाना इन्सान की खुराफाती मानसिकता की उपज होती है,  जो भी नाम शूद्र रख ले,  उसे ब्राह्मणी मानसिकता नींच बनाने की कोशिश करती है और हम लोगो की मानसिक गुलामी के कारण हमलोग भी उसे स्वीकार कर लेते हैं।  "ऐसे सैकड़ो उदाहरण है,"  राम सर नेम जब शूद्रो ने अपनाया तो भगवान् का नाम भी कलंकित बना दिया गया,  अब जिनके सर नेम पहले से है,  वे भी क्यों बदल ले रहे है?  कभी आप ने सोचा,  ऐसा क्यों?  "शुरू मे बहुजन नाम को भी,  चमार के नाम से कलंकित किया गया,  जब ब्राह्मण अपनाया तो पवित्र हो गया"  दल  (समूह ) से  "दलित"  कितना सुन्दर नाम,  हजारो की जाती की गालियों को मिटाकर,  स्वाभिमानी एकजुट करने वाला,  लेकिन शूद्र अपनाया,  कलंकित हो गया।  "नाम कोई कलंकित नही होता है,  उसे बनाया जाता है,  क्या आप ने कभी विश्व मे कोई ऐसे कलंकित या नींच नाम सुने है?  विश्व में कहीं भी कोई नाम नींच या कलंकित नही होता है।"

1980 से पहले जब अम्बेडकरवादियो ने फुले,  शाहू,  और पेरियार जी और यहां तक ललई सिह यादव को भी अपनाया तो,  उन्ही के समाज ने उन्हें मान सम्मान देना  छोड़ दिया था,  यह तो मान्यवर कांशीराम जी की देन है,  की सभी जातियां आज उनकी जयंती मना रही हैं,  आप किसी ब्राह्मण के सामने अपने को मूलनिवासी,  आदिवासी या बौद्ध बताकर उसके माइन्ड को परखिए,  आप को पता चल जाएगा,  कि उनके दिमाग से आप कितने नींच है,  छिपाने से नहीं,  मिटाने से कलंक मिटेगा।

फुले,  शाहूजी,  पेरियार,  बाबा साहेब आंबेडकर और कांशीराम जी पूरी ज़िन्दगी शूद्र रहकर ही,  हिन्दू धर्म की बुराइयों से लड़ते हुए शूद्रों का ब्रेन वाश करतें रहें,  लेकिन अफशोस मानसिक गुलामी के कारण उस समय भी हमने नहीं चेता और आज़ भी बदलने को तैयार नहीं हो रहे हैं। "आप बारीकी से अध्ययन करें,  दिमाग से ब्राह्मणवादी मानसिकता की गुलामी का पर्दा हट जाएगा।"  स्वतंत्रता से पहले ब्राह्मणवादी व्यवस्था मे शूद्र समाज के बाप को अपने बच्चो के अच्छे नाम रखने का अधिकार तक नहीं था।  यदि विश्वास नहीं है,  तो अपने पुरखो का नाम जांच कर देख ले, आज भी कितने लोगो के नाम यदि फूहड़ है,  यदि वह IAS, IPS बन जाता है तो नाम मायने नहीं रखता है।  "इसी तरह शूद्र,  हर तरह के कर्म करने वालो को, परिश्रमी,  समस्त प्राणी जाति की सेवा करते हुए आत्मनिर्भर,  देश व समाज को सब कुछ देने वाला है,  लेकिन अफसोस परजीवी,  ढोगी,  पाखंडी लोगो ने ही इस नाम को कलंकित कर दिया और दुर्भाग्य कि हमने अज्ञानता में स्वीकार कर लिया और उलटकर उनसे सवाल-जबाव नहीं किया, आज भी शूद्र नाम का विरोध करने वालों की यही हीन मानसिकता है",
 
 साथियो, कुछ झिझक के कारण,  शूद्र के महत्व को समझने मे देर हो गई।  "शूद्र" करीब करीब  6000  जातियों को एक वर्ण मे समाहित करने वाला, 15 & 85 की लड़ाई को आसान बनाने वाला,  शासन प्रशासन लेने  वाला तथा खोए हुए मान-सम्मान को वापस दिलाने वाला तथा बौद्ध काल के अपने पूराने घर वापसी लौटने का एक रास्ता है।  सही जानकारी होने पर जब काम अच्छा है,  तो उस नाम पर गौरवान्वित होने मे झिझक क्यों?  "परिस्थितियो को देखते हुए,  मैं दावे के साथ कह सकता हूं,  कि जिस दिन शूद्रो का शासन,  प्रशासन हो जाएगा,  उसी दिन शूद्र नाम गौरवान्वित और ब्राह्मण नाम कलंकित हो जाएगा।"
 

शूद्र नाम की वास्तविकता

शूद्र नाम पर अभी भी कुछ लोगो को जानकारी के अभाव मे असमंजस बना हुआ है,  हिन्दू धर्म का मूल तत्व ज्ञान ही सीढ़ी नुमा ऊंच-नीच की मान्यता के अनुसार हैं,  ब्राह्मण में भी कर्म के अनुसार ऊंच-नीच बना हुआ था,  उपाध्याय या उच्च कोटि की पूजा करने वाला ब्राह्मण निम्न कोटि के क्रिया कर्म जैसे मृत्यु बाद दाह संस्कार करने वाले ब्राह्मण को अछूत की तरह ही ब्यवहार पहले करता था,  आज परिस्थिति के अनुसार ब्राह्मण अपने आप में  काफी बदलाव लाया है।

लेकिन वही शूद्र अभी तक बदलने को तैयार नही है

सिर्फ सोच और नजरिया बदलने की जरूरत है,  यदि विश्व की सबसे बड़ी तकनीकी कम्पनी मे हजारों तरह के इन्जीनियर या टेक्नीशिन काम करते हो तो वह कम्पनी अपना सौभाग्य समझती और अपने आप पर सभी गर्व करते हैं।  ठीक इसी तरह शूद्र परिवार भी एक बहुत बड़ी कंपनी के समान है,  जब किसी से पूछा जाता है,  कि आप क्या करते हो तो सामने वाला पहले कहता है,  मै डाक्टर हूं,  इन्जीनियर हूं,  प्रोफेसर हूं,  प्राध्यापक हूं,  आदि यह एक वर्ग  या समूह है,  जब यदि फिर खुरेद कर कैटिगरी पूछी जाति है,  तब सामने वाला अलग अलग सैकड़ो कैडर बताता है,  "अब जरा गौर करे,  ठीक इसी तरह सभी प्राणी जातियो के जीवनोपयोगी जरूरतों को पूरा करने के लिए कर्म के द्वारा कुशल कारीगर,  इन्जीनियर,  टेक्नीशियन आदि का जो बर्ग समूह था,  वही आज  "शूद्र " है।"
 
यह सभी कारीगरी बेटा,  मां-बाप के कुशल नेतृत्व मे बचपन से ही सीख लेता था,  आज भी पुरातत्व विभाग के कारीगरी देखकर सभी को आश्चर्य होता है,  क्या  400-500 साल पहले कोई डिग्री लेता था,  नाई,  धोबी,  दर्जी,  कुम्हार,  लोहार,  बढई,  मिस्त्री,  मोची आदि तरह-तरह की कारीगरी पुश्तैनी बिना स्कूल कालेज के ही प्राप्त हो जाया करती थी,  यह  सभी शूद्र  (तकनीकी ) के अलग अलग कैटेगरी है।  लेकिन यही दुर्भाग्य है, कि कोई हमसे पूछता है,  कि आप कौन हैं?   तो हम लोग अपने अपने कैटिगरी को ही बिना पूछे बता देते है, जब कि सभी को पहले शूद्र ही बताना चाहिए।

साथियो सोचने का सिर्फ नजरिया बदलो,  फिर खुद परिणाम का आकलन करो,  यहां आज राजशाही नही,  बहुमत का लोकतंत्र है,  किसी को रात-दिन एक करके, अपने ही शूद्र भाइयों को आपस में लड़ाकर,  बेवकूफ बनाकर,  हिन्दू-मुस्लिम नफरत फैलाकर बहुमत बनाना पड़ रहा है,  जबकि आप का बना हुआ है,  जिस सोच से बाबा साहेब ने संविधान में बहुमत का प्रावधान कर खुश होकर कृपलानी को जबाब दिया था,  कि जिस दिन शूद्र समाज जागृति हो जाएगा और अपने वोट की कीमत को समझ लेगा उसी दिन तुम्हारे जैसे लोग उनके जूते के फीते बांधते हुए फक्र महसूस करेंगे,  सिर्फ उसी सोच व एहसास को बदलने की जरूरत है,  आप भी पंडित उपाधि की तरह,  अपने नाम के पहले शूद्र उपाधि लगाकर गर्व महसूस करिए,  फिर देखिएगा,  बिना हथियार उठाए,  बिना आन्दोलन,  सत्याग्रह,  धरना -प्रदर्शन के पूरा भारत आप  का होगा।

लेखक:  शूद्र शिवशंकर सिंह यादव

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