माननीय कांशीराम की नीति, नियम, रणनीति एवं नियत में फर्क के कारण अवसरवाद का जन्म हुआ, अवसरवादी सोच के लोग अंबेडकरवादी कैसे हो सकते हैं। यह चिंतन का विषय है। कांशीराम जी की सोच एक अवसरवादी नेता के रूप में सामने है। यह बात लेख से आपको पता लग जायेगी। कांशीराम जी ने सबसे पहले रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया में काम शुरू किया। काशीराम ने RPI को छोड़कर उसके बाद बामसेफ का गठन किया, जिसका मतलब धनोपार्जन के साधन के लिए सरकारी सेवकों में एससी, एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यक कार्यकारियों का संगठन बामसेफ बनायी थी। उन्हें समझाया, कि कर्मचारियों पर अत्याचारों को लेकर आवाज उठाने का काम करेगी। धीरे धीरे लोग जुड़े और संगठन बड़ा हुआ, उसके बाद कर्मचारियों को समझाया, कि यदि अपना चन्दा हमें दो तो समाज पर हो रहे अत्याचार से लडने के लिए एक संगठन बनाकर लोगों को जोड़कर समाज को मजबूत किया जा सकता है। लोगों ने बिचारोपरांत स्वीकृति दे दी। यह समझना चाहिए।
बामसेफ की स्वीकृति के बाद डीएस-4 (DS-4) एक सामाजिक संगठन बनाया। जिससे लोग को जोड़ने का प्रयास शुरू हुआ, लेकिन लोग तेजी से नहीं जुड़े। तभी काशीराम ने एक नारा दिया। जो इस प्रकार था।
बाबा तेरा मिशन अधूरा, कांशीराम करेंगे पूरा
कांशीराम जी का नारा सुनकर जो अंबेडकरवादी लोग रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया की टूटने और नीतियों से असंतुष्ट होकर शांति से घर पर पार्टी छोड़कर बैठ गये थे। वह नारा सुनकर एक उम्मीद लेकर डीएस-4 से जुड़ने लगे। यह काशीरामबादी अंबेडकरबादियों को समझने की जरूरत है। जो कहते हैं कि काशीराम ने अंबेडकरवाद को आगे बढ़ाया है। काशीराम ने अंबेडकरवादियों को यह नहीं बताया कि बाबासाहब का बह कौनसा मिशन है जिसे काशीराम पूरा करेगें, जो अधूरा रह गया, उसे काशीराम कैसे पूरा करेंगे। आइए हम आपको बह मिशन बताते हैं जो बोधिसत्व बाबा साहब डॉ. अंबेडकर का मिशन अधूरा रह गया था। आईए हम आपको डॉ. अंबेडकर अधूरा मिशन बताते हैं।
बोधिसत्व बाबा साहब डॉ. अंबेडकर ने सबसे पहले नारा दिया था कि हम वर्ग विहीन और जाति विहीन समाज का निर्माण करेंगे। यह अधूरा मिशन रह गया था। यह लोगों को समझना और समझाने की जरूरत है। बोधिसत्व डॉ. अंबेडकर का दूसरा अधूरा काम रेलवे कामगार यूनियन की सभा में भाषण देते हुए कहा था कि भारत में शोषित समाज के दो बड़े दुश्मन हैं, जिनसे हमेशा सावधान रहना होगा, और लड़ाई जारी रखनी होगी। वह दो दुश्मन है, ब्राह्मणवाद बनाम पूंजीवाद।
दूसरा अधूरा मिशन के लिए बोधिसत्व बाबा साहब डॉ. अंबेडकर ने आगरा की जनसभा में बताया। आगरा की जनसभा दि. 18 मार्च 1956 को थी। आगरा की जनसभा में कहा था कि शोषितों को हमेशा एकजुट होकर निरंतर संघर्ष जारी रखना होगा, जब तक सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक और समानता का अधिकार पूरी तरह से न मिल जाएं। इस गैरबराबरी को मिटाने के लिए हर प्रकार की कुर्बानी देने के लिए तैयार होकर संघर्ष जारी रखना चाहिए। यहां तक कि अपना खून बहाने के लिए भी तैयार रहना है। चिंता और चिंतन करो। बोधिसत्व बाबा साहब का मिशन ब्राह्मणवाद बनाम पूंजीवाद तथा सामाजिक समानता, आर्थिक बराबरी, राजनैतिक भागीदारी के खिलाफ था। लेकिन कांशीराम जी ने ब्राह्मणवाद को मजबूत करने का काम किया था। क्योंकि ब्राह्मणबाद बनाम पूंजीवाद और बिषमता की मूल जड़ में जातिवाद, जो शोषित वर्ग के शोषण की जड़ है।
कांशीराम जी ने 1984 में राजनैतिक दल का गठन किया, जिसका नाम बहुजन समाज पार्टी रखा। जिसकी शुरुआत ही जातिवाद पर रखी गई थी। बहुजन समाज पार्टी में डीएस-4 सामाजिक संगठन को काशीराम ने राजनैतिक रूप दिया था। बसपा का राजनैतिक संघर्ष जातिवाद पर आधारित है। बसपा की बुनियाद में जातिवाद साफ साफ दिख रहा है। बहुजन समाज कहीं नहीं दिख रहा है। काशीराम ने जातिवाद को कमजोर नहीं? बल्कि मजबूत किया।
काशीराम और बसपा की सोशल इंजीनियरिंग जातिवाद पर टिकी हुई है। जिसके कारण बहुजन समाज जातियों में बिभाजित हुआ है। काशीराम ने एससी, एसटी, ओबीसी की राजनीतिक रणनीति कभी नहीं बनाई। जिसके कारण बसपा में नेतृत्व और नेता पैदा हुए, लेकिन सभी को बाहर का रास्ता दिखाया जाता रहा। इसलिए आज तक बहुजन समाज 6743 जातियों में बिखरा हुए, बहुजन शोषित समाज को इकट्ठा करके सत्ता की चाबी उनके हाथ में नहीं सौंपी गयी। जिसके कारण शोषित-शोषित ही रहा, वह सत्तारूढ़ कभी नहीं बन सका। इसे समझना होगा। कांशीराम ने कुछ नारे दिये थे।
ब्राह्मण ठाकुर बनिया छोड़, बाकी सब डीएस-4
तिलक, तराजू और तलवार, इनके जूते मारो चार
काशीराम का शुरुआती दौर में उनका मिशन 15 बनाम 85 का सीधा सीधा दिखाई दिया। कांशीराम सार्वजनिक मंचों से कहते थे कि हजारों लीटर दूध में यदि नींबू की एक बूंद डाल दो तो वह एक बूंद नींबू की हजारों लीटर दूध को बर्बाद देती है। ठीक इसी तरह से यदि हमने अपने संगठन में ब्राह्मण, ठाकुर,बनियों के हाथों में नेतृत्व सौंपा तो तो वह हमारे संगठन और मिशन को खत्म कर देंगे। इसलिए हम ब्राह्मण, ठाकुर और बनियों को अपने संगठन में भूलकर भी प्रवेश नहीं देंगे। यह बसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कांशीराम शुरू में कहते थे। यह समझना होगा। काशीराम जनसमूह को संबोधित करते हुए अक्सर कहते थे, कि हमें बिकने वाले समाज का निर्माण नहीं करना है। मैं भी बिक सकता हूं, मैं मिशन से भटक सकता हूं, यदि ऐसा हो तो तुम मेरे पीछे मत आना। ऐसा कहने वाले कांशीराम जी ने सबसे पहले 1993 में अपनी पार्टी से जयंत मल्होत्रा जो टोपाज कंपनी का मालिक को राज्यसभा का सांसद बनाकर भेजा। यह समझना चाहिए। कांशीराम जी ने उसके बाद ठा. जगबीर सिंह, अलीगढ़ और बृजेश पाठक, रामवीर उपाध्याय जैसे लोगों को अपनी पार्टी से टिकट दिया, और वह विधायक और फिर उन्हें मंत्री भी बनाया गया, यह समझने की जरूरत है।
बोधिसत्व बाबा साहब डॉ. अंबेडकर के वॉल्यूम जो भारत सरकार ने छपवाए हैं। इंग्लिश के वॉल्यूम नंबर 5 चैप्टर नंबर 27 (A warning to the untouchables : अछूतों को चेतावनी) पेज नंबर 399 पर बाबा साहेब डॉ अंबेडकर ने अछूतों के लिए चेतावनी दी है, "अछूतों को याद रखना चाहिए कि उनकी राजनैतिक सत्ता चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हो, यदि वह विधान मंडलों में सवर्ण हिंदुओं के सहारे और इशारे पर टिकी हुई है, तो वह किसी भी काम की नहीं होगी, क्योंकि सर्वण हिंदुओं का सामाजिक और आर्थिक न्याय का पैमाना अलग और शोषितों के हित में नहीं हो सकता, खिलाफ रहेगा। बोधिसत्व बाबा साहेब डॉ. अंबेडकर की चेतावनी का उल्लंघन करते हुए कांशीराम जी ने भाजपा से गठबंधन करके उत्तर प्रदेश में सरकार बनाई। यहां विचारणीय और चिंतनीय भी है। यह बहुजन शोषित समाज ओबीसी एससी-एसटी अल्पसंख्यकों को समझने की जरूरत है जो महत्वपूर्ण है।
बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद भाजपा से सभी दल दूरी बनाने लगे हैं जब भाजपा को अछूत समझकर, भाजपा से कोई दल गठबंधन करने के लिए तैयार नहीं था। उस समय भाजपा से कांशीराम जी ने गठबंधन किया। मायावती को मुख्यमंत्री बनवाया और भाजपा को सछूत पार्टी भी बनाया। मुलायम सिंह यादव जी कांशी राम जी की हर बात को मानकर सरकार चला रहे थे। फिर भी कांशीराम जी ने सपा गठबंधन तोड़ा और सपा बसपा गठबंधन की सरकार गिरा दी। यह महत्वपूर्ण बिषय समझना और चिंतन करने का है।
1996 में लोकसभा चुनाव हुआ, जिसमें 44 सीटों वाले नेता प्रधानमंत्री बने। यदि मुलायम सिंह और कांशी राम जी का गठबंधन कायम रहता, तो 1996 में कांशी राम जी भारत के प्रधानमंत्री बन सकते थे। लेकिन काशीराम यह त्याग की भावना न होने के कारण यह सब हुआ। यदि गठबंधन कांशीराम जी नहीं छोड़ते तो सत्तर सीटें सपा बसपा गठबंधन की होती, तब प्रधानमंत्री बसपा का ही बनता। क्योंकि सबसे ज्यादा सीटें होती। अटलबिहारी बाजपेई भाजपा की सरकार बनी, उस समय बहुजन समाज पार्टी का एक सांसद था। बसपा के एक सांसद का वोट देकर के भाजपा अटल बिहारी बाजपेई को बसपा ने प्रधानमंत्री बनवाया, और बाद में यह यह कहकर जनता के बीच में प्रचारित किया, कि हमने अटल बिहारी की एक वोट से सरकार बसपा ने गिरा दी है। यह चिंतन करना चाहिए।
कांशीराम जी ने राजनीति से अनभिज्ञ न समझ, अनपढ़, भोले भाले लोगों को यह नहीं बताया, कि अटल बिहारी को एक बोट देकर प्रधानमंत्री बसपा ने ही बनवाया है। आज मायावती के चारों ओर बसपा के उन चापलूस एससी के नेताओं का जमावड़ा है। जो काम नहीं करते, बल्कि काम करने वाले मेहनती लोगों के खिलाफ मायावती को भड़काते हैं। जिसके कारण मायावती लोगों को निकाल देती है। लेकिन इसका दोष लोग सतीश चंद्र मिश्रा को देखते हैं। बसपा अंधभक्त काशीरामबादी अंबेडकरवादी लोग दिन रात सतीश मिश्रा को कोसते रहते हैं। जबकि कांशी राम जी ने ही सतीश मिश्रा को बसपा का महासचिव बनाया था। कांशीराम जी के होशो हवास में बहुजन पॉलिसी को बदलकर सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय कर दिया गया। इतना ही नहीं? बल्कि 2002 में गुजरात में गोधरा कांड के बाद विधानसभा का चुनाव गुजरात में हुआ। उस चुनाव में कांशीराम जी ने मायावती को नरेंद्र मोदी का प्रचार प्रसार करने के लिए गुजरात भेजा था। कांशीराम जी ने भाजपा से गठबंधन करके नरेंद्र मोदी को गुजरात में मुख्यमंत्री बनवाया था। पूरी दुनिया की मीडिया जब नरेंद्र मोदी को कातिल खूनी और हत्यारा कह रही थी, तब मायावती ने नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट देकर गुजरात के लोगों से अपील की थी कि आप नरेंद्र मोदी भाई को वोट देकर मुख्य मंत्री बनाएं।
आज मायावती कांशीराम जी के बताए हुए रास्ते पर चल रही है। उन्हीं के नक्शे कदम पर मिशन को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रही हैं। मिशन आगे बढ़ता ही नहीं है? बल्कि पीछे खिसकता चला जा रहा है। मिशन के पीछे जाने का कारण दो हैं, जो इस प्रकार है।
(1) ~ चापलूसी से सावधान और लोकतांत्रिक व्यवस्था दल में बनाकर रखना चाहिए, और दुश्मन से दोस्ती कभी दोस्ती नहीं करना चाहिए।
(2) ~ सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं करना चाहिए।
कांशीराम जी का कैडर दम तोड़ चुका है। कांशीराम जी के मिशन को तो कांशीराम जी ने ही खत्म कर दिया था। जो बचा हुआ, उसको मायावती जी ने जान ले ली है। यह समझने की जरूरत है। इस पूरे लेख में बसपा कहीं ज़मीन पर दिखी। तो वह समय था, जब काशीराम के साथ अंबेडकरवादी लोग खड़े थे। अब बसपा के साथ अंबेडकरवादी नहीं है। बसपा के साथ अब काशीरामवादी अंबेडकरवादी लोग हैं। जो मेहनत नहीं जानते हैं, वह जिंदाबाद और मुर्दाबाद जानते हैं। सरकार में बसपा आने के बाद कभी जमीन पर नहीं गयी, कोई जमीनी संघर्ष नहीं किया, दलाली चर्म सीमा पर बसपा में है। यह सभी भलीभांति जानते हैं। बसपा के अलावा कुछ और काशीरामवादी कुछ और अंबेडकरवादी पैदा हो रहें हैं। वह भी बहुत जल्द समाज से बाहर निकालकर फेंक दिए जायेंगे। उनका भविष्य भी कोई बहुत अच्छा नहीं है। झूठ और बिना नीति रणनीति और नियत लोगों के सामने आने लगी है। इसलिए अवसरवाद का अंत निश्चित होता है।
बहुजन शोषित वर्ग और अंबेडकरवादियों के सामने बहुत बड़ी चुनौती है कि लोगों को कैसे एकजुट किया जाए। जिससे भारतीय लोकतंत्र और संविधान को भाजपा से बचाया जा सके। आज सामाजिक न्याय, समानता, धर्मनिरपेक्षता, हक और अधिकार तथा आर्थिक बराबरी एवं शैक्षणिक गुणवत्ता के साथ साथ गैर बराबरी, सत्ता की चाबी और हिस्सेदारी को हासिल किया जा सके। यह व्यवस्था अंबेडकरबादियों के सामने चुनौती बनकर खड़ी हो गई है। जातिवाद को चुनौती देने के लिए डॉ. अम्बेडकर के मिशन को समझना और समझाने के लिए दिन-रात प्रयास करना होगा। इसके लिए हमें संबिधान को ही आगे रखकर नीति और रणनीति तथा योजनाएं बनानी होगी। जो लेबर पार्टी आफ इंडिया के पास है। अब स्थानीय नेतृत्व पैदा करने पर जोर देना होगा। आओ मिलकर नेतृत्व और संगठन समाज को मजबूत बनाये। हमें आपके सतयबादी नेतृत्व की जरूरत हैं। मैं आपके सहयोग की प्रतीक्षा कर रहा हूं। जागरूक बनो तभी निराकरण होगा।
लेखक : राम सिंह, राष्ट्रीय अध्यक्ष, लेबर पार्टी ऑफ इंडिया
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