Brahma Saraswati

ब्रह्मा की उत्पत्ति, सरस्वत्ती तथा ईरानी अर्थात आर्य लोग

By Ritu Bhiva February 20, 2022 04:31 0 comments

धोंडीराव व जोतीराव के बीच में बहुत ही गंभीर रूप से बहस छिड़ी हुई थी। बहस का मुख्य कारण था कि ब्रह्मा की उत्पत्ति, सरस्वती तथा ईरानी अर्थात वह लोग जो आर्य थे, वह कहां से आए और कौन थे। इस बारे में चर्चा का विषय था। यह दोनों लोग अपनी अपनी बातों को बहुत ही सूझबूझ और समझदारी के साथ रख रहे थे। आइए देखते हैं इन दोनों लोगों की बातचीत के कुछ अंश जिसमें हमें यह पता चलता है कि ब्रह्मा की उत्पत्ति कैसे हुई थी, और सरस्वती का ब्रह्मा के साथ क्या संबंध था और आर्य लोग कौन थे और यह कहां से आए थे।

ब्रह्मा की उत्पत्ति के बारे में

धोंडीरावः पश्चिमी देशों में अंग्रेज, फ्रेंच आदि दयालु सरकारों व राजनेताओं ने एकत्रित होकर के दास प्रथा पर कानून रोक लगा दिया है। इसका मतलब तो यही हुआ कि उन्होंने ब्रह्मा के नीति-नियमों को ठुकरा दिया है। कयोंकि मनुसंहिता में लिखा गया है कि ब्रह्मा ने अपने मुँह से ब्राह्मण वर्ण को पैदा किया है और ब्राह्मणों कि सेवा करने के लिए ब्रह्मा ने अपने पाँओं से शूद्रों को पैदा किया है।

जोतीरावः तेरा कहने का मतलब यह है कि अंग्रेज आदि सरकारों ने दास प्रथा (गुलामी प्रथा) पर रोक लगा दी है। इसका मतलब यह हुआ कि उन्होंने ब्रह्मा के नियमों को ठुकरा दिया है ना? औऱ इस दुनिया में अंग्रेज आदि कई प्रकार के लोग रहते हैं। उनको ब्रह्मा ने अपनी कौन-कौन सी इंद्रियों से पैदा किया है और इस बारे में मनुसंहिता में क्या-क्या लिखा गया है?

धोंडीरावः इस बारे में तो समझदार और मुर्ख सभी ब्राह्मण यही जवाब देते हैं कि अंग्रेज आदि लोगों के अधम, दुराचारी होने के कारण इन लोगों के बारे में मनुसंहिता में कुछ नहीं लिखा गया है।

जोतीरावः तो क्या तुम्हारे कहने का मतलब यह है कि ब्राह्मणों में अधम, दुराचारी, नीच, दुष्ट लोग बिलकुल भी नही हैं?

धोंडीरावः नहीं, खोजने पर तो यह पता चलता है कि ब्राह्मणों में अन्य जातियों कि अपेक्षा सबसे ज्यादा नीच, दु़ष्ट, अधम तथा दुराचारी लोग हैं।

जोतीरावः तो फिर यह बताओं कि इस तरह के अधम, दुराचारी, नीच, दुष्ट ब्राह्मणों के बारे में मनुसंहिता में क्या लिखा गया है?

धोंडीरावः इस बात से तो यही सिद्ध होता है। कि मनु ने अपनी संहिता में उत्पत्ति की जो पद्धति लिखी है। वह पुरी तरह से मिथ्या है निराधार है गलत है क्योंकि वह सिद्धांत सभी लोगों पर लागु नहीं होता है।

जोतीरावः यही कारण हे कि अंग्रेज आदि लोगों के जानकारों ने ब्राह्मण ग्रंथकारों की चतुराई को पहचान कर के दास प्रथा पर कानूनन रोक लगा दी है। अगर यह ब्रह्मा तमाम मानव उत्पत्ति का कारण होता तो अंग्रेज आदि लोगों ने गुलामी प्रथा रोक नहीं लगाई होती। मनु ने चार वर्णों की उत्पत्ति का वर्णन किया है। यदी उसका सृष्टि की व्यवस्था से मिलाप करके देखा जाय तो हमें समझ में आ जाता है कि सृष्टि उत्पत्ति की वह व्यवस्था पुरी तरह से गलत है निराधार है झुठ है।

धोंडीरावः वह किस प्रकार से?

जोतीरावः वह इस प्रकार कि ब्राह्मणों का कहना है कि ब्राह्मण ब्रह्मा के मुँह से पैदा हुए लेकिन जो सभी ब्राह्मणों की मुल माता ब्राह्मणी रही होगी वह ब्रह्मा के किस अंग से पैदा हुई होगी। इस बारे में मनु ने अपनी संहिता में कोई भी जानकारी नहीं दी है। आखिर ऐसा क्यों?

धोंडीरावः क्योंकि वह उन विद्वान ब्राह्मणों के कहने के अनुसार मूर्ख दुराचारी होगी। इसीलिए फिलहाल उसे म्लेच्छ या विधर्मियों कि पंक्ति में रख दिया गया है।

जोतीरावः हम भूदेव हैं हम सभी वर्णों में श्रेष्ठ हैं। ऐसा हमेशा बड़े गर्व के साथ कहने वाले ब्राह्मण - उनको जन्म देने वाली आदिमाता ब्राह्मणी ही होगी ना? फिर तुम उसको म्लेच्छों की पंक्ति में किस लिए रखते हो? उसको वहाँ कि शराब और गौमांस की बू कैसे पसंद आएगी? यह तो तुम ने बहुत ही गलत बात कही है।

धोंडीरावः आपने ही तो कई बार सरेआम भरी सभाओं में कहा है । कि ब्राह्मणों के मूल पूर्वज ऋषि-महर्षि थें। वे श्राद्ध के बहाने गांय मारकर के कई प्रकार के पकवान्न बना कर के खाते थें। और अब आप ही कहते हो कि उनकी मूल माता को दुर्गंध आएगी। अब इसका मतलब क्या है? आप थोड़ा सा धैर्य रखिए और अंग्रेजी राज के बने रहने कि कामना कीजिए। तब आपको दिखाई देगा कि आज के अधिकतर ब्राह्मण अपने वस्त्रों और शरीर को भी न छूने देनेवाले पावन पंडित रेजिडेंट गवर्नर आदि अंग्रेज अधिकारियों की कृप्या पाने के लिए उनकी मेज पर पड़े हुए मांस के बचे-खुचे टुकड़े भी खा जाया करेंगे। बैर के हाथ एक टुकड़ा भी नहीं लगने देंगे। क्या आप नही जानते कि आज भी बहुत से ब्राह्मण लोग अन्दर ही अन्दर अंग्रेजो के नाम से झींखने भुनभुनाने लगे है। मनु ने आदि ब्राह्मणी की उत्पत्ति के बारे में कुछ भी नहीं लिखा है। इसीलिए इस दोष की सारी जिम्मेदारी उसी के सिर पर डाल दीजिए। उसके बारे में आप मुझे क्यों दोष दे रहे हो कि मैं गलत बोल रहा हूँ। छोड़ो इन बातों को आगे बताइए।

जोतीरावः चलो ठीक है जैसा तू चाहे वही सही। ब्रह्मा को मुँह से जन्म देने वाला ब्रह्मा के मुख से जब हर महिने मासिक धर्म ( माहवार) आने पर तीन-चार दिन के लिए अपवित्र होता था। या लिंगायत औरतों कि तरह भस्म लगा करके पवित्र होकर के घर के सारे काम-काज करता था। इस बारे में मनु ने कुछ लिखा भी है या नही।

धोंडीरावः नहीं लेकिन ब्रह्मा ही ब्राह्मणों की उत्पत्ति का कारण है। और उसको लिंगायत नारी का उपदेश कैसे उचित लगा होगा। क्योंकि आजकल के ब्राह्मण तो लिंगायत लोगों से इसीलिए घृणा करते है। क्योंकि लिंगायत संप्रदाय के लोग रजोधर्म के दिनों में अस्पृश्यता (छुआछूत) का पालन नहीं करतें।

जोतीरावः इस बात से अब तूम सोच ही सकते हो कि ब्रह्मा के मुँह, बाँहें, जाँघे और पाँव- इन चार स्थानों कि चार योनियों से रज  बहता होगा। तो उसे कुल सोलह दिन अस्पृश्य बनकर दूर बैठना पड़ता होगा। जब उसके साथ ऐसा होता होगा। तो फिर उसके घर का काम काज कौन करता होगा क्या मनु ने अपनी मनुस्मृति में इस बारे में कुछ लिखा है या नही?

धोंडीरावः जी, इस बारे में तो कुछ नही लिखा।

जोतीरावः अच्छा, वह गर्भ ब्रह्मा के मुँह में जिस दिन से ठहरा होगा। उस दिन से ले कर नौ महिने बीतने तक किस जगह पर रह कर बढ़ता रहा। इस बारे में मनु ने कुछ कहा भी है या नहीं?

धोंडीरावः जी, इस बारे में तो कुछ नही कहा।

जोतीरावः अच्छा, उस जनमे ब्राह्मण बालक को ब्रह्मा ने अपने स्तन का दूध पिलाया अथवा बाहर का दूध पिलाकर छोटे से बड़ा किया इस बारे में कुछ लिखा है क्या?

धोंडीरावः जी, नही।

सरस्वत्ती के बारे में

जोतीरावः ब्रह्मा की पत्नी सावित्री थी लेकिन फिर भी ब्रह्मा ने बच्चे का बोझ नौ माह तक अपने मुँह में थामने का उसे जन्म देने का और उसका पालन-पोषण करने का झंझट अपने सिर क्यों ले लिया? यह कितने आश्चर्य की बात है!

धोंडीरावः क्यों जी (सर) उसके बाकी के तीन सर तो उस झझंट से दूर थे या नहीं या फिर उस व्याभिचारी को भी सदा लड़कियों के बीच रमकर घरकुंडी का खेल खेलना ही पसंद था। उस व्याभिचारी को इस तरह से माँ बनने की इच्छा क्यो पैदा हुई होगी।

जोतीरावः अब उसे यदि व्याभिचारी कहें तो उसने सरस्वत्ती नामक अपनी ही कन्या से व्याभिचार किया था। इसीलिए उसका उपनाम कन्यागामी पड़ गया है। उसके इस नीच काम का परिणाम है कि कोई भी उसकी पूजा नहीं करता है।

धोंडीरावः यदि सचमुच ब्रह्मा के चार मुँह होते तो उस हिसाब से तो ब्रह्मा के आठ स्तन, चार नाभि, चार योनियाँ और चार मलद्वार होने चाहिए। लेकिन इस बारे में तो सही जानकारी देने वाला कोई भी लिखित प्रमाण नही मिल पाया है। इसके आगे भी यदि इसी प्रकार विचार किया जाय तो यह भी प्रश्न उपस्थित होगा कि जब लक्ष्मी शेषशायी विष्णु की पत्नी थी और अपनी पत्नी लक्ष्मी के होते हुए भी विष्णु ने अपनी नाभि से इस चार मुँह वाले बच्चे को कैसे पैदा किया। इस बारे में सोचा जाए तो विष्णु की स्थिती भी ब्रह्मा की तरह ही होगी।

ईरानी यानि की आर्य लोगों के बारे में

जोतीरावः वास्तव में सोचने समझने के बाद यही निश्चित होता है। कि ब्राह्मण समुद्र की दुसरी ओर ईरान नामक देश है। उस देश के निवासी हैं। उन्हें पहले ईरानी अथवा आर्य कहते थे। ऐसा कई अंग्रेज ग्रंथकारों आर्यों के ग्रथों से सिद्ध कर दिखाया है। पहले ये आर्य बड़ी-बड़ी टोलियाँ बनाकर के आये। और उन्होंने इस देश पर कई आक्रमण किये और यहाँ के मूल निवासी राजाओं के प्रदेशों पर बार-बार हमले करके बड़ा आतंक फैलाया। आगे चलकर वामन के बाद ब्रह्मा नामक आर्यों का एक नायक हुआ। वह स्वभाव से बहुत हठी ( जिद्दी) था। उसने अपने शासन काल में यहाँ के मूल निवासी हमारे पूर्वजों को रणभूमि में पराजित करके दास ( गुलाम ) बना लिया। और उसके बाद उनके लोगों और हमारे पूर्वजों में हमेशा के लिए भेद-भावना रहे इसलिए आर्यों ने कई तरह के नियम बना दिए। इन सारे कृत्यों का परिणाम यह हुआ कि ब्रह्मा के मृत्यु के बाद आर्यों का मूल नाम "आर्य" अपने-आप लुप्त हो गया और उनको बाद में "ब्राह्मण" कहा जाने लगा। बाद में मनु जैसे "ब्राह्मण" अधिकारी हुए। उनके द्वारा बनाए हुए नियमों का आगे चलकर कहीं कोई उपेक्षा या तिरस्कार न कर दे। इस डर की वजह से उसने ब्रह्मा के बारे में कई तरह कि जुठी कहानियां बना ली। फिर उन कहानियों को बनाए हुए गुलामों के दिलों-दिमाग में ठूँस - ठूँस कर भर दिया कि ये सब बाते ईश्वर की कृप्या से हुई हैं। और फिर यहाँ के मूलनीवासीयों के मन पर और भी गहरा प्रभाव जमाने के लिए शेषशायी के नाम से भी एक दुसरा मायावी कथाजाल (पाखंड) फैलाया और समय पाकर कुछ समय के बाद उन सभी पाखंडों के ग्रंथशास्त्र बनाए गए। उन ग्रंथों के बारे में शूद्र गुलामों को नारद जैसे धूर्त, चतुर, हमेशा औरतों में रहने वाले छ्छोरे के ताली पीट-पीट कर उपदेश करने की वजह से यूँ ही ब्रह्मा का महत्व सहज ही बढ़ता गया। अब यदी हम ब्रह्मा के समान ही उस शेषशायी के बारे में भी चर्चा और सवाल-जवाब करने लगे तो उससे लाभ तो रत्ती भर नहीं होगा  हम दोनों का समय व्यर्थ में नष्ट होगा। इन्होंने पहले ही बिचारे को पीठ के सीधा लिटाकर उसकी नाभि से यह चार मुख वाला विचित्र बालक उत्पन किया है। इसलिए ऐसे सिधे पड़े असहाय पर खूँटा ठोकना कोई पुरूषार्थ का काम है ऐसा मैं नहीं समझता।

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