जानिए कैसे अंबेडकरवाद को खत्म करने का षणयंत्र चल रहा है?
By Ritu Bhiva March 26, 2022 02:36 0 commentsआज पूरे देश में अंबेडकरवाद को खत्म करने का जाने-अनजाने में षणयंत्र चल रहा हैं। सन् 2000 के शुरुवात में मान्यवर कांशीराम जी के मिशन के जरिए, जो "जय भीम" और "पूरा भारत बौद्धमय बनेगा" का नारा बुलंद हुआ करता था, वह अब धीरे-धीरे ढलान पर जा रहा है। यह बहुत ही विचलित करने वाली बात और भविष्य के लिए संविधान के लिए खतरे की घंटी है। आखिर क्यों, कैसे, कौन कर रहा है? क्यों करवाया जा रहा है? साजिश किसकी है? और क्या इस पर मंथन की जरूरत है, कि नहीं है?
सवर्ण जिस तरह सैकड़ों पहलुओं को त्याग कर एक ही विचारधारा 'ब्राह्मणवाद-मनुवाद' और "जय श्रीराम" पर एकत्र हो रहे हैं, ठीक वैसे ही शूद्रो को भी उनके विपरीत और बराबर प्रतिक्रिया में एक ही विचारधारा, " शूद्रवाद-आंबेडकरवाद और संवोधन में जय भीम" पर ही संगठित होकर उनका मुकाबला करना चाहिए। चाहे शूद्रों की राजनीतिक पार्टी या सामाजिक संस्था कोई भी हो?
हम लोग तथागत गौतम बुद्ध और बाबा साहेब की बात तो खूब रात-दिन करते रहते हैं, लेकिन उनके बताए रास्ते पर चलने को तैयार नहीं है। मैं अनुभव कर रहा हूं और देख भी रहा हूं, कि सवर्ण इन दोनों महापुरुषों के विचारों जैसे- "शिक्षित करो, संघटित रहो और संघर्ष करो" तथा "धम्मम शरणं गच्छामि और संघम शरणं गच्छामि" फार्मूले को ही अमल कर अपने मिशन ब्राह्मणवाद को सफल बनाने में लगा हुआ है। वहीं अवर्ण, (शूद्र, बहुजन, मूलनिवासी, बौद्ध) क्या कर रहा है? सामने है- "खुद, शिक्षित बनो, असंगठित रहो, डर से घर में रहो" तथा बहुत से लोगों को "बुद्धम शरणं गच्छामि और संगम शरणं गच्छामि" का सही अर्थ ही नहीं मालूम है। कुछ लोग इसे बौद्ध धर्म से जोड़कर दूर भागने लगते है। सिर्फ इसका एक ही उद्देश्य है, आप को "बुद्धि की शरण (अप्प दीपो भव:)" और "संगठन की शरण (संगठित)" करना है।
आप को बता दूं कि ये दोनों मंत्र "जय भीम" से "बुद्धि की शरण" और "आंबेडकरवाद" से "संगठन की शरण" में जाने की प्रेरणा देता है। "जय भीम" संबोधन से विद्वत्ता, गरिमा और आत्मसम्मान की अनुभूति होती है।
कुछ दिन पहले मुझे एक फोटो सोशल मीडिया पर देखने को मिली। एक तरफ परशुराम और दूसरी तरफ बहन मायावती जी। बाबा साहेब और मान्यवर कांशीराम दोनों ही गायब। किसी पार्टी के पोलिटिकल एजेंडा पर मैं टिप्पणी नहीं करना चाहता हूं। लेकिन पार्टी के संस्थापक की गरिमा का तो ख्याल करना चाहिए। "दूसरी अन्य बामसेफ समर्थित-मूलनिवासी, तथा मूलनिवासी समर्थित राजनीतिक पार्टियां भी पता नहीं क्यों, धीरे धीरे जय भीम छोड़कर "जय मूलनिवासी " संवोधन, जिसमें निष्कृयता साफ झलकती है। मुझे भी लोग "जय मूलनिवासी" संबोधित करते हैं, मैं तो टोक देता हूं और बदले में जय भीम संबोधन करता हूं। पूछने पर उनका सीधा जबाव रहता है, कि जय भीम संबोधन से ओबीसी जुड़ने से कतराता है, ओबीसी नाराज न हो, इसलिए लोगों ने कंपिटीशन में अपने अपने संगठनों में लोगों को सम्मिलित करने के लिए विचारधारा को ही त्याग दिया है।
यही नहीं, कम्पीटिशन में मेम्बरशिप बढ़ाने के लिए लोगों नें जातियों के भी महापुरुष ढूंढ़कर उनको अपने बैनर में जगह देकर, उन जातियों के नाम का या उनके महापुरुष का भी संबोधन शुरू कर दिया है। इनके बैनर पर या पैम्फलेट पर इतने महापुरुष होते हैं कि उनमें बाबा साहेब को ढूंढ़ना पड़ता है। यही नहीं कभी कभी तो जातिवादी मानसिकता वाले यदि प्रोग्राम करते हैं या बैनर बनाते हैं, तो अपनी जाति के महापुरुष को बाबा साहेब से भी बड़ा बनाने की कोशिश करते दिखाई दिए हैं। आप को बता देना उचित समझता हूं कि बामसेफ की स्थापना शुरुआत में सिर्फ फुले-अंबेडकरी विचारधारा पर ही थी। बाद में कांशीराम जी ने दो और ओबीसी महापुरुषों पेरियार जी और शाहूजी महाराज को बैनर पर जगह दी थी। सभी जाति के महापुरुषों की मैं कद्र करता हूं और सभी को करना भी चाहिए, लेकिन संगठित और मजबूत होकर ब्राह्मणवाद को टक्कर देने के लिए सिर्फ एक ही प्लैटफॉर्म, एक ही महापुरुष और एक ही विचारधारा आंबेडकरवाद पर चलना पड़ेगा।
इस तरह मूलनिवासी वाले भी जानें अनजाने में जातियों की उच्चता का बढ़ावा देते हुए, ब्राह्मणवाद को ही बढ़ाने का काम करते आ रहे हैं। आप के सामने प्रमाण है, महाराष्ट्र में मजबूत आंबेडकरवाद को जातिवादी महत्व के फार्मूले पर ही खत्म किया गया है। यहां करीब-करीब सभी जाति वाले जय भीम के विरोध में अपनी-अपनी जाति के महापुरुषों का आपस में संबोधन पैदा कर लिया हैं और जय भीम को नकारते आ रहे हैं। पुराने बामसेफी इसको जानते हुए भी इस षणयंत्र से अनभिज्ञ क्यों रहना चाहते हैं? अभी कुछ दिन पहले पैगाम PAGAM (Phule Ambedkari Gauravshali Muhim), बिक्रोली, मुम्बई की एक सभा में फुले जी और बाबा साहेब की मूर्ति स्टेज से गायब (पहले के प्रोग्रामों में लगाए जाते रहे हैं), बैनर से "शिक्षित करो, संगठित रहो, संघर्ष करो," और "जय भीम" भी गायब था। मेरे भाषण के माध्यम से प्रश्न उठाने पर अध्यक्ष महोदय वाघ जी का अध्यक्षीय भाषण में जवाब था, कि "हम लोग अब व्यक्ति पूजा के खिलाफ है"। अभी भी 18-19 दिसंबर की पैगाम की अंबेडकर भवन न्यू दिल्ली की सभा में भी यही पैटर्न अपनाया गया है।
दिनांक 28-29 अगस्त को नागपुर के ओबीसी चिन्तन बैठक में, हमारे एक सवाल के जवाब में, आयोजक नें खुद स्वीकार किया कि ओबीसी संगठनों में महापुरुषों को लेकर इतना ज्यादा विवाद है, कि हमने अपने बैनर पर किसी महापुरुष को जगह नहीं दिया है। दूसरी तरफ "बोल पच्चासी, मूलनिवासी, ब्राह्मण विदेशी" विचारधारा पर चलकर, "संविधान और आंबेडकरवाद" की ही धज्जियां उड़ाई जा रही है। इससे ब्राह्मणवाद और मजबूत होता दिखाई दे रहा है। भले ही अपने आप को आसमान में उड़ते देख रहे हैं, लेकिन धरातल पर हकीकत में सामाजिक और राजनीतिक रूप से ब्राह्मणवाद को सीधी टक्कर देते हुए, कहीं भी, कोई भी नहीं दिखाई दे रहा हैं।
इस लेख से किसी को ठेस पहुंचाने या किसी तरह का दुराग्रह नहीं है। सिर्फ आगाह करना ही मेरा मकसद है।
चालीस सालों से अनुभव करने और विफलताओं को देखते हुए, मैं दृढ़प्रतिज्ञ हूं कि, यह आप सभी का मिशन "गर्व से कहो हम शूद्र हैं" सिर्फ और सिर्फ "आंबेडकरवाद और जय भीम" विचारधारा से एक इंच भी विचलित नहीं होगा। किसी से कोई कंपिटीशन नहीं, कोई गलतफहमी नहीं, देर या सबेर, यदि इरादे नेक हैं तो सफलता जरूर मिलेगी। आगे मनुवादियों के हर अस्तर के अत्याचार और अपने बाप-दादाओं के अपमान को सामने रखते हुए, मिशन का साथ देना या न देना, आप के विवेक पर निर्भर करता है।
लेखक: शूद्र शिवशंकर सिंह यादव
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