अब समय आ गया है की हम नाग और नाग पंचमी यानी पंचशील के महत्व को समझे और सदियों से चले आ रहे षड्यंत्र को समाप्त करे। इसी का प्रयास मेरे द्वारा किया गया है पढ़िएगा। आज का यह त्योहार जिसे नाग पंचमी से जाना जाता है, यह नाग वंशियो का बड़ा त्योहार माना जाता है। लेकिन आर्यो की राजनैतिक चालाकी से मूल निवासी इसे साँप सपेरों से जोड़कर देखते है। क्योंकि नाग वंशियो को तोड़कर कर ही आर्यो ने इन्हें पराजित किया और भगवान का डर दिखाकर खुद का संरक्षक भी बना लिया।
नाग का मतलब सिर्फ़ सांप नहीं होता बल्कि नाग वंश भारत में एक प्रमुख वंश था। नाग का मतलब पाली भाषा में हाथी भी होता है। नाग पंचमी का बुद्ध सभ्यता में भी बड़ा महत्व है। बुद्ध सभ्यता में नागपंचमी या नागपंचशील सावन के महीने में गौतम बुद्ध के समय से मनाया जाता है। यह सावन के महीने में इसलिए मनाया जाता है क्योंकि भारत के प्राचीन समय में, साल मापने का पैमाना वर्षा वास से किया जाता था। आज भी जो हम एक साल को एक वर्ष कहते है वह उसी वर्षा वास से आया है। वर्षा वास शुरू होने से लेकर अग़ला वर्षावास शुरू होने तक को एक साल कहते थे। जैसे कि कोई पूछता है की कितने वर्ष के आप हो गए तो उससे आशय होता है कि कितने वर्षावास के आप हो गए। प्राचीन समय में वर्षा वास के समय बुद्ध भिक्खु एक ही जगह रुकते थे और भ्रमण नहीं करते थे। पूरा वर्षावास एक ही जगह रुक कर पूरे सावन में पंचशील का पालन करते थे।
नाग पंचमी या नाग पंचशील प्राचीन समय से ही जब सावन महीना शुरू होता है और चंद्रमा जब बढ़ना शुरू होता है तो उसके पाँचवें दिन यह उत्सव सामूहिक रूप से घर-घर मनाया जाता था। नाग पंच शील का मतलब है, नाग, पंच, शील और उसका उत्सव।
नाग जाति का बुद्ध से गहरा नाता है। नाग जाति के राजाओं ने बुद्ध को सुरक्षा प्रदान की थी। इसलिए बुद्ध की कई मूर्तियाँ मिली है, जिसमें बुद्ध के सिर के ऊपर नाग की क्षत्र छाया के रूप में पाँच या सात मुँह वाले नाग दिखाई देते है। इन नागों को भी आर्यों ने अपनी धार्मिक किताबों में शेष नाग बता कर उसका असली महत्व ही ख़त्म कर दिया। आर्यों ने शेष नाग को बहुत बड़ा और पाँच या सात मुँह वाला सांप दिखा दिया। जबकि शेषनाग का पूरा नाम शेषदात नाग था। उनके पूरे नाम की जानकारी हमें ब्रिटिश म्यूजियम में रखे सिक्कों से मिलती है। शेषनाग ने विदिशा को राजधानी बनाकर 110 ई. पू. में शेषनाग वंश की नींव डाली थी।
शेषनाग की मृत्यु 20 सालों तक शासन करने के बाद 90 ई. पू. में हुई। उसके बाद उनके पुत्र भोगिन राजा हुए, जिनका शासनकाल 90 ई. पू. से 80 ई. पू. तक था। फिर चंद्राशु (80 ई. पू. – 50 ई. पू.), तब धम्मवर्म्मन (50 ई. पू. – 40 ई. पू.) और आखिर में वंगर (40 ई. पू. – 31 ई. पू.) ने शेषनाग वंश की बागडोर संभाली। शेषनाग की चौथी पीढ़ी में वंगर थे। इस प्रकार शेषनाग वंश के कुल मिलाकर पाँच राजाओं ने कुल 80 सालों तक शासन किए। इन्हीं पाँच नाग राजाओं को पंचमुखी नाग के रूप में बतौर बुद्ध के रक्षक मुंबई की कन्हेरी की गुफाओं में दिखाया गया है। शेशनाग दत्त, भोगिन, चंद्रानशु, धम्मवर्मन और वंगर इन्हीं पाँच नाग राजाओं को बुद्ध प्रतिमा में दिखाया गया है।
कुछ बुद्ध की प्रतिमाओं के रक्षक सातमुखी नाग हैं। ओड़िसा के खुर्दा जिले के गोविंदपुर गाँव से बुद्ध की जो प्रतिमा मिली है और जिस प्रतिमा की रक्षा सातमुखी नाग कर रहे हैं, वह सातमुखी नाग वस्तुतः नव नाग वंश के सात राजाओं के प्रतीक हैं।
पर आज जो नाग पंचमी मनाई जाती है, उसे पूरी तरह से साँपो से जोड़ दिया गया है, काल्पनिक कहानियों से जोड़ दिया गया है। इसे इसी बात से समझिए कि वैज्ञानिकों ने यह साबित किया है की कोई भी रेपेटाईल यानी रेंगने वाले प्राणी दूध नहीं पी सकते। उनकी शरीर की बनावट ऐसी है अगर वह दूध पिएँगे तो साँस घुटने से मर जाएँगे। पर हम लोग सदियों से सांप को जबरदस्ती दूध पिलाते आ रहे है जिससे आर्यों द्वारा बनाई गई कहानी को सच मानते है और भारत देश के असली इतिहास को हम भुला देते है।
हक़ीक़त यही है की नाग भारत में एक शक्तिशाली वंश था जिसके वंशज आज के अधिकतर SC/ST और OBC हैं। इतिहास यह है की भारत के बड़े भाग पर नागवंशिय राजाओं का शासन था। कुछ सबूत हमें आज भी मिलते है जगह के नाम से जैसे अनंत नाग, नागालैंड और नागपुर जैसे शहर। यही नाग लोग पंचशील को एक महोत्सव के रूप में मनाते थे जिसे नाग पंच शील महोत्सव कहते थे, जिसे अब नागपंचमी बता कर कई काल्पनिक कहानियों से जोड़ दिया गया है।
सच यही है की नाग शब्द भारत की मूलनिवासी मानव जाति हैं, जिसे आर्यो ने अपने आगमन के बाद इन्हें जीव जंतु बना दिया। ताकि यह सिद्ध किया जा सके कि नाग वंश, साँप जैसे जन्तुओ की वंश परंपरा है। हालांकि कई प्रसंग पौराणिक कथाओं में मिलता है की नाग कन्या का विवाह फला राजा से हुई। इसका मतलब की कन्या लड़की थीं जो मानव जाति से है। लेकिन आर्यों ने पूरी नाग वंश की ऐतिहासिकता को मिटाने का षणयंत्र रचा रखा है। और आज की नाग पंचमी मनाने के तरीक़े से यह षड्यंत्र अभी तक क़ायम है।
लेखक : श्रवण कुमार
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