जुल्मी जातियों की आर्थिक, धार्मिक व राजनीतिक शक्ति को मजबूत कौन कर रहा हैं?
By Ritu Bhiva April 16, 2022 07:41 0 commentsदेश में आए दिन दलितों पर जुल्मी सवर्ण जातियों द्वारा हर क्षेत्र में तरह तरह के अन्यान्य अत्याचार हो रहे हैं। ऐसी घटनाओं के समय दलित समाज में आक्रोश फूटता है, प्रभावशाली आंदोलित भी होते है लेकिन आर्थिक कमजोरी के कारण वंचित समाज मुकाबला नहीं कर पाता है। और मजबूरी में जुल्म करने वालों की शरण जाना पड़ता है, रोजगार के कारण समाज अपने हक व स्वाभिमान को भूल जाता है। इसलिए वंचित समाज को यह समझना होगा कि आखिर सवर्ण अत्याचारी जातियों की शक्ति के स्त्रोत क्या हैं और इनको मजबूत करने में वंचित समाज का कितना बड़ा योगदान है? ये है आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक इनको कमजोर करके ही दलित समाज जुल्म की जड़ों को सूखा सकता है। पत्तों को झाड़ने की बजाय जड़ों को खाद पानी देना बंद करना जरूरी है।
आर्थिक - इन जातियों के छोटे बड़े व्यापार के आर्थिक संसाधनों, प्रतिष्ठानों से सामान खरीदना बंद करें, अनावश्यक खरीद न करें, इन पर निर्भरता कम करें। और विकल्प में दलित बहुजन समाज खुद दैनिक जीवन के उपयोग की चीजों का छोटा मार्केट तैयार करें, और ऐसा करना संभव है, हम तो मेहनतकश हुनरमंद कौम है, लघु उद्योग, प्रोडक्शन, सप्लाई आदि बिजनेस में कूदें ताकि हमारे धन से मजबूत होने वाली जातियां कमजोर पड़े और हमारा धन हमारे बीच में ही रहें। हमारा आर्थिक आधार मजबूत हो सकें, धन की कमी से सारे आंदोलन व मिशन धराशायी हो जाते है, समाज के विकास और जाति व जुल्म के मुकाबले के लिए धन बड़ा हथियार है।
धार्मिक - दलित बहुजन आदिवासी समाज में संतों, महापुरुषों के विचारों का अथाह भंडार है, गौरवशाली संस्कृति है, इसलिए दूसरों के अंधविश्वास के मार्ग ओर नहीं भटकें, विडम्बना यह है कि दलित समाज उन अत्याचारी जातियों द्वारा थोपे गए काल्पनिक पात्रों की मूर्तियों की पूजा, पूजा स्थलों की तीर्थ यात्राएं करता है, मेलों की भीड़ बनता है। मेहनतकश दलित आदिवासी अपनी गाढ़ी कमाई के धन, समय व ऊर्जा को जीवन भर उनके धार्मिक कर्मकांडो में बर्बाद करता रहता है। इस लूट से पूजा स्थलों के ट्रस्ट पर कब्जा की हुई अत्याचारी जातियां मालोमाल होती हैं, हर तरह से मजबूत होती हैं, जुल्म के हाथ मजबूत होते हैं और शोषित समाज कमजोर होता है, और गुलामी की बेड़ियां और अधिक मजबूत हो जाती है। दलित बहुजन आदिवासी को चाहिए कि वह अपने गौरवशाली इतिहास को पहचाने, हम अब तक बहुत भटके अब तो अपने घर की ओर लौटे, अपने समाज में ही संतो महापुरुषों, देवी देवताओं, साहित्य का अथाह सागर है। अब अत्याचारियों के झूठे इतिहास, काल्पनिक पात्रों का गुणगान, पूजा बंद करें, खुद के गौरवशाली इतिहास को संजोए, संतों की वाणी को गाएं। इसी में हमारी खुशहाली हैं समृद्धि है, और इससे जुल्मी शोषक कमजोर होगा।
राजनीतिक - दलित बहुजन समाज ने सांस्कृतिक व आर्थिक समृद्धि की बजाए राजनीतिक ताकत को ही सब कुछ समझ लिया, इससे समाज में भारी फूट पड़ गई, फिर विरोधी भी यही चाहता है। इसमें भी दलित समाज हर पार्टी में स्वयं ताकतवर बनने के बजाय सवर्ण जुल्मी जातियों को सह जातिवादी राजनेताओं का गुलाम बन जाता है। और वह अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को भूल कर रात दिन उसी के गुणगान करता है, उसी के लिए भागदौड़ करता है। इन राजनीतिक पार्टियों व राजनेताओं ने बहुजन समाज की एकता का भारी नुक़सान किया है, राजनीतिक महत्वाकांक्षा के अंधे स्वार्थ के खातिर बहुजन समाज के लोग, कार्यकर्ता व राजनेता गांव से लेकर शहर तक हर पार्टी में जुल्मी जातियों के नेताओं का समर्थन व गुलामी करते नजर आते हैं, इन्हें नहीं पता कि वे वंचित समाज को कितना बड़ा धोखा दे रहे हैं, अहित कर रहे हैं। आखिर में ऐसे लोगों को निराशा ही हासिल होती हैं, लेकिन तब तक वे स्वयं व समाज का भारी नुकसान कर चुके होते हैं जिसकी भरपाई कतई संभव नहीं होती है।
दलित आदिवासी समाज के वोट से इन जातियों के नेता ताकतवर बनते है, पर्दे के पीछे से नियमों के खिलाफ जाकर भी स्वयं की जाति का साथ देते है और वंचितों शोषितों का हर तरह से विरोध व नुकसान करते हैं। माना कि हर जुल्मी जाति में कुछ ठीक लोग होते हैं लेकिन समय आने पर वे भी अपनी जाति के अपराधी के साथ खड़े नजर आते हैं या अपनी जाति को ही आगे बढ़ाने की बात करते हैं।
अत: वंचितों को चाहिए कि वे जुल्मी जातियों के आर्थिक, धार्मिक व राजनीतिक शक्ति के स्रोतों को पहचाने और चिंतन मनन करें कि इनको मजबूत कर वंचित समाज खुद के वर्तमान और आने वाली पीढ़ियों का कितना नुक़सान कर रहे है? यदि वंचित समाज तय कर लें तो शोषण, अत्याचार व अन्याय की जड़ों को सूखा सकता हैं, इसके लिए सामाजिक, धार्मिक कुरीतियों व अंधविश्वासों को छोड़कर स्वयं को सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक और वैचारिक रूप से मजबूत करना होगा। यही बुद्ध, कबीर, रैदास, फुले व बाबासाहेब का मार्ग है, यही हमारी खुशहाली का मार्ग है।
0 Comments so far
Jump into a conversationNo comments found. Be a first comment here!
Your data will be safe! Your e-mail address will not be published. Also other data will not be shared with third person.
All fields are required.