Shoe Police story

मानवता और आपसी सहयोग की एक शानदार कहानी

By Ritu Bhiva January 3, 2023 06:31 0 comments

एक सज्जन रेलवे स्टेशन पर बैठे रेलगाड़ी की प्रतीक्षा कर रहे थे। तभी  वहां  पर जूते पॉलिश करने वाला एक लड़का आकर उनसे बोला ‘‘साहब! बूट पॉलिश?’’ उसकी दयनीय सूरत को देखकर उनसे रहा नहीं गया और उन्होंने अपने जूते आगे बढ़ा दिये, बोले ‘‘लो, पर ठीक से चमकाना। अच्छे से पालिश कर देना।’’

लड़के ने काम तो शुरू किया परंतु अन्य पॉलिशवालों की तरह उसमें स्फूर्ति नहीं थी। वे बोले ‘‘कैसे ढीले-ढीले काम करते हो? जल्दी-जल्दी हाथ चलाओ!’’

वह लड़का मौन रहा। इतने में दूसरा लड़का आया। उसने इस लड़के को तुरंत अलग कर दिया और स्वयं फटाफट काम में जुट गया। पहले वाला लड़का गूँगे की तरह एक ओर खड़ा रहा और दूसरे वाले लड़के ने साहेब के जूते चमका दिये।

‘पैसे किसे देने हैं?’ इस पर विचार करते हुए उन्होंने जेब में हाथ डाला। उन्हें लगा कि ‘अब इन दोनों में पैसों के लिए झगड़ा या मारपीट होगी।’ फिर उन्होंने सोचा, ‘जिसने काम किया, उसे ही दाम मिलना चाहिए।’ इसलिए उन्होंने बाद में आनेवाले लड़के को पैसे दे दिये। उस लड़के ने पैसे ले तो लिये परंतु पहले वाले लड़के की हथेली पर रख दिये। प्रेम से उसकी पीठ थपथपायी और चल दिया।

वह आदमी विस्मित नेत्रों से देखता रहा। उसने लड़के को तुरंत वापस बुलाया और पूछा ‘‘यह क्या चक्कर है?’’

लड़का बोला ‘‘साहब! यह तीन महीने पहले चलती ट्रेन से गिर गया था। हाथ और पैर में बहुत सारी चोटें आयी थीं। ईश्वर की कृपा से बेचारा बच गया नहीं तो इसकी वृद्धा माँ और बहनों का क्या होता, बहुत स्वाभिमानी है वो भीख नहीं मांग सकता....!’’

फिर थोड़ी देर रुककर वह बोला ‘‘साहब! यहाँ जूते पॉलिश करनेवालों का हमारा समूह है और उसमें एक देवता जैसे हम सबके प्यारे चाचाजी हैं जिन्हें सब ‘सत्संगी चाचाजी’ कहकर पुकारते हैं। वे सत्संग में जाते हैं और हमें भी सत्संग की बातें बताते रहते हैं। उन्होंने ही ये सुझाव रखा कि ‘साथियो! अब यह पहले की तरह स्फूर्ति से काम नहीं कर सकता तो क्या हुआ???

ईश्वर ने हम सबको अपने साथी के प्रति सक्रिय हित, त्याग-भावना, स्नेह, सहानुभूति और एकत्व का भाव प्रकट करने का एक अवसर दिया है। जैसे पीठ, पेट, चेहरा, हाथ, पैर भिन्न-भिन्न दिखते हुए भी हैं एक ही शरीर के अंग, ऐसे ही हम सभी शरीर से भिन्न-भिन्न दिखाई देते हुए भी हैं एक ही आत्मा! हम सब एक हैं।

स्टेशन पर रहने वाले हम सब साथियों ने मिलकर तय किया कि हम अपनी एक जोड़ी जूते पॉलिश करने की आय प्रतिदिन इसे दिया करेंगे और जरूरत पड़ने पर इसके काम में सहायता भी करेंगे।’’  जूते पॉलिश करनेवालों के दल में आपसी प्रेम, सहयोग, एकता तथा मानवता की ऐसी ऊँचाई देखकर वे सज्जन चकित रह गये औऱ खुशी से उसकी पीठ थपथपाई औऱ सोंचने लगे शायद इंसानियत अभी तक जिंदा है।

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