देश के पहले दलित राष्ट्रपति डॉ० के०आर० नारायणन का जीवन संघर्ष
By Ritu Bhiva March 2, 2022 03:39 0 comments राष्ट्रपति डॉ० के०आर० नारायणन देश के पहले दलित राष्ट्रपति थे। उनका सम्पूर्ण जीवन संघर्ष से भरा हुआ था। वे केरल के एक गांव में फूस की झोपड़ी में 1920 में पैदा हुए। उनके पिता आयुर्वेदिक औषधिओं के ज्ञाता थे, इसी से वे अपना परिवार चलाते थे। गरीबी इतनी भयंकर कि 15 किमी. दूर सरकारी स्कूल में पैदल पढ़ने जाते थे। कभी-कभी फीस न होने पर उन्हें कक्षा से बाहर खड़ा होना पड़ता था। उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में पढ़ाई की। ज़ब वह भारत लौटे तो उनके प्रोफेसर ने एक पत्र भारत के प्रधान मंत्री जवाहर लाल के नाम उन्हें दिया उस पत्र में उनकी प्रतिभा का उल्लेख था। चूंकि उन्होंने तीन वर्ष का कोर्स 2 साल में विशेष योग्यता के साथ पास किया था। ज़ब वह पत्र उन्होंने नेहरू जी को दिया तो नेहरू जी ने उन्हें राजदूत नियुक्त कर दिया। सेवानिवृत होने पर उन्हें जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का कुलपति बनाया गया। एक बार वे उप राष्ट्रपति रहे। उसके बाद वे भारत के दसवें एवं पहले दलित राष्ट्रपति बने।
1. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को बिना हस्ताक्षर किये फाइल यह कहते हुए वापस कर दी कि 10 न्यायाधीशों के इस पैनल में एक भी SC/ST/OBC का जज क्यों नहीं है। उनके तेवर देखकर सरकार में हड़कंम मच गया तब जाकर मुख्य न्यायाधीश के.जी. बालकृष्णन को बनाया गया, जो अनुसूचित जाति के पहले भारत के मुख्य न्यायाधीश बने। इस व्यवस्था को Sc. St. Obc के लोग भूल नहीं सकते। ये भी केरल के ही थे।
2. दूसरा कड़ा कदम तब उठाया जब वाजपेयी सरकार के सावरकर को भारत रत्न देने के प्रस्ताव को वापस कर दिया।
3. तीसरा कड़ा कदम तब उठाया जब वाजपेयी सरकार के उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने का प्रस्ताव ख़ारिज कर दिया।
ऐसे महामहिम की आज जरूरत है।
ऐसे महान पुरुषों को उत्तर भारत के sc. St. Obc. के लोग जानते तक नहीं। लोगों द्वारा समाज में यह भ्रम फैलाया गया है कि दलित लोग शिक्षा के लायक नहीं थे, जबकि संविधान सभा में 14 महिलाएं ग्रेजुऐट थी एक sc. की महिला ग्रेजुएट थी। हजारों लोग ब्रिटिश शासन में उच्च शिक्षित थे। दूसरे महामहिम राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधा कृष्णन जिनके नाम से शिक्षक दिवस मनाया जाता है। वे तथा डॉ केआर नारायणन सभी अंग्रेओं के इंग्लिश माध्यम में पढ़े थे। महामहिम राष्ट्रपति डॉ० केआर नारायणन जी ने सन् 1948 में अंग्रेजी साहित्य में प्रथम श्रेणी से एमए पास किया। एमए पास करने के बाद उन्होंने' महाराजा कालेज में अंग्रेजी प्रवक्ता पद के लिये आवेदन किया। लेकिन त्रावणकोर के दीवान सीपी रामास्वामी अय्यर ने नारायणन जी को प्रवक्ता पद पर काम करने से रोक दिया और कहा कि आपको सिर्फ़ क्लर्क पद पर ही कार्य करना होगा। अय्यर के मन में जातीय भेदभाव इस क़दर भरा हुआ था कि वह कामगार किसान आदिवासी-कबाइली जमात के किसी भी युवक-युवतियों को प्रवक्ता पद पर आसीन होते सहन नहीं कर सकता था।
स्वाभिमानी डॉ० केआर नारायणन जी ने क्लर्क की नौकरी पर काम करने से साफ-साफ इंकार कर दिया और इसके ठीक बाद में विवि के दीक्षांत समारोह में बीए की डिग्री लेने से भी मना कर दिया। इस घटना के 4 दशक बाद सन 1992 में उपराष्ट्रपति बनने पर उनके गृह राज्य केरल विवि के उसी सीनेट में उनका जोरदार स्वागत हुआ। उस वक़्त की तत्कालीन जातिवादियों पर तंज कसते हुए नारायणन जी ने कहा "आज मुझे उन जातिवादियों के दर्शन नहीं हो रहे हैं" जिन्होंने वंचित जमात का सदस्य होने के कारण इसी विवि में मुझे प्रवक्ता बनने से वंचित कर दिया था। 1946 में श्री केआर नारायणन जी दिल्ली में डॉ० बी०आर० अम्बेडकर जी से मिलने आये थे। डॉ० अम्बेडकर जी उस समय के वायसराय की काउंसिल में श्रम विभाग के सदस्य थे। नारायणन जी की योग्यता को देखते हुए डॉ० अम्बेडकर जी ने उन्हें दिल्ली में ही भारत ओवरसीज विभाग (जिसे अब "विदेश विभाग"कहा जाता है) में 250 रुपये प्रतिमाह पर सरकारी नौकरी दिलवा दी।
राजनयिक के तौर पर नारायणन जी टोकियो, लंदन, ऑस्ट्रेलिया, हनोई में स्थित भारतीय उच्चायोग में प्रतिष्टित पदों पर रहे और चीन के राजदूत भी नियुक्त हुए। वहाँ से रिटायर होने के बाद सन 1979 से 1980 तक जेएनयू के कुलपति रहे। सन1980 से 1984 तक अमेरिका के राजदूत भी रहे। श्री के आर नारायणन जी 14 जुलाई 1997 को भारत के दसवें राष्ट्रपति चुने गए। श्री के आर नारायणन जी ही वह व्यक्ति थे जिन्होंने वंचित वर्ग के लोगों के लिये' उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश बनने का रास्ता खोला था।
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