person conversation in Buddhism

व्यक्ति वार्तालाप करने योग्य है या नहीं

By Ritu Bhiva February 25, 2022 05:33 0 comments

शास्ता बुद्ध ने भिक्षुओं को सम्बोधित करते हुए कहा -"भिक्षुओ"तीन कथा-वस्तुएं हैं। कौन-सी तीन? "भिक्षुओ" या तो भूतकाल संबंधी बातचीत हो 'भूतकाल में ऐसा हुआ' या भविष्य काल संबंधी बातचीत हो 'भविष्य में ऐसा होगा' या वर्तमान काल संबंधी बातचीत हो 'इस समय वर्तमान में ऐसा है।

भिक्षुओ ! बातचीत से पता लग जाता है कि, यह व्यक्ति वार्तालाप करने योग्य है या नहीं?

भिक्षुओ  यदि कोई व्यक्ति 'हां या नहीं' में उत्तर दिये जाने वाले प्रश्न का 'हां या नहीं' में उत्तर नहीं देता, विभक्त करके उत्तर देने योग्य प्रश्न का विभक्त करके उत्तर नहीं देता, प्रतिप्रश्न पूछकर उत्तर देने योग्य प्रश्न का प्रतिप्रश्न पूछकर उत्तर नहीं देता, उत्तर न देने योग्य प्रश्न को बिना उत्तर दिये। टाल नहीं देता, तो भिक्षुओ  ऐसा व्यक्ति वार्तालाप करने योग्य नहीं होता।'भिक्षुओ ' यदि कोई व्यक्ति 'हां या नहीं' में उत्तर दिये जाने वाले प्रश्न का 'हां या नही' में उत्तर देता है, विभक्त करके उत्तर देने योग्य प्रश्न का विभक्त करके उत्तर देता है, प्रतिप्रश्न पूछ कर उत्तर देने योग्य प्रश्न का प्रतिप्रश्न पूछकर उत्तर देता है, उत्तर न देने योग्य प्रश्न को बिना उत्तर दिये ही टाल देता है, तो.. भिक्षुओ  ऐसा व्यक्ति वार्तालाप करने योग्य होता है।

भिक्षुओ  बातचीत से पता लग जाता है कि यह व्यक्ति वार्तालाप करने योग्य है या नहीं है?

भिक्षुओ  यदि कोई व्यक्ति प्रश्न पूछने पर किसी एक निष्कर्ष पर स्थिर नहीं रहता, किसी एक मान्यता पर स्थिर नहीं रहता, किसी एक सर्वमान्य तर्क पर स्थिर नहीं रहता, प्रश्नोत्तर की सामान्य प्रक्रिया को नहीं जानता, तो भिक्षुओ  ऐसा व्यक्ति वार्तालाप करने योग्य नहीं होता।  भिक्षुओ  यदि कोई व्यक्ति प्रश्न पूछने पर किसी एक निष्कर्ष पर स्थिर रहता है, किसी एक मान्यता पर स्थिर रहता है, किसी एक सर्वमान्य तर्क पर स्थिर रहता है, प्रश्नोत्तर की सामान्य प्रक्रिया को जानता है, तो भिक्षुओं  ऐसा व्यक्ति वार्तालाप करने योग्य होता है।

भिक्षुओ  बातचीत से पता लग जाता है कि, यह व्यक्ति वार्तालाप करने योग्य है या नहीं?

भिक्षुओ  यदि कोई व्यक्ति प्रश्न पूछने पर दूसरी बात करता है, बाहरी बात लाता है, कोप, द्वेष व असंतोष प्रकट करता है, तो भिक्षुओ  ऐसा व्यक्ति वार्तालाप करने योग्य नहीं होता। भिक्षुओ  यदि कोई व्यक्ति प्रश्न पूछने पर दूसरी-दूसरी बात नहीं करता, बाहरी बात नहीं लाता, कोप, द्वेष वा असंतोष प्रकट नहीं करता, तो भिक्षुओ ऐसा व्यक्ति वार्तालाप करने योग्य होता है।

भिक्षुओ  बातचीत से पता लग जाता है कि यह व्यक्ति वार्तालाप करने योग्य है या नहीं?

भिक्षुओ  यदि कोई व्यक्ति प्रश्न पूछने पर, जहां-तहां से सूत्र उद्धृत करता है, जहां-तहां से सूत्र उद्धृत करके तर्क को काट देता है, हँसकर उपहास करता है और जब तर्क देने में कोई लड़खड़ाता है तब उसे धर दबाता है, तो भिक्षुओ  ऐसा व्यक्ति वार्तालाप करने योग्य नहीं होता। भिक्षुओ  यदि कोई व्यक्ति प्रश्न पूछने पर न जहां-तहां से सूत्र उद्धृत करता है, न जहां-तहां से सूत्र उद्धृत करके तर्क को काटता है, न हँसकर उपहास करता है, न तो तर्क देने में किसी के लड़खड़ाने पर उसे धर दबाता है, तो भिक्षुओ  ऐसा व्यक्ति वार्तालाप करने योग्य होता है।

भिक्षुओ  बातचीत से पता लग जाता है कि इस व्यक्ति में वार्तालाप करने के आवश्यक आधार (प्रत्यय) हैं या नहीं?

भिक्षुओ  जो ध्यान देकर नहीं सुनता वह वार्तालाप करने के आवश्यक आधार से युक्त नहीं होता, जो ध्यान देकर सुनता है वह वैसा होता है। जो वह एक धर्म (आर्य-धर्म) को जानता है, एक धर्म (दुखसत्यधर्म) को अच्छी तरह जानता है, एक धर्म (अकुशल) का त्याग करता है, एक धर्म (अर्हत्व) का साक्षात करता है। वह एक धर्म को जानकर, एक धर्म को अच्छी तरह जानकर, एक धर्म का त्याग कर एक धर्म का साक्षात करता है, इस प्रकार वह एक धर्म अर्थात सम्यक-विमुक्त को पा लेता है। भिक्षुओ  यही कथा का लाभ है, यही मंत्रणा का लाभ है, यही वार्तालाप करने के आवश्यक आधार (प्रत्यय) से युक्त होने का लाभ है और यही ध्यान देने का लाभ है जो कि यह उपादान-रहित चित्त की विमुक्त है।

ये विरुद्धा सल्लपन्ति, विनिविट्ठा समुस्सता। अनरियामासज्ज, अञ्जोज्ञविबसिनो॥
डुभासितं बिक्खलितं सम्पमोहं पराजयं। अञोज्ञस्साभिनन्दन्ति, तदरियो क थनाचरे॥
सचे चस्स क थाक मिो, कालमञ्ञाय पण्डितो। धम्मट्ठपटिस्ता, या अरियचरिता क था॥
तं क वंक वये धीरो, अविरुद्धो अनुस्सतो। अक्ते मनसा, अपळासो असाहसो॥
अमायमानो सो, सम्मदाय भासति। मासितं अमोठेय, दुभट्टे नापसादये॥
उपारम्भं न सिक्खेय, खलितञ्च न गाहये। नाभिहरे नाभिमद्दे न वाचं परं भणे॥
अज्ञातत्वं पसादत्वं सतं वे होति मन्तना। एवं खो अरिया मन्तैन्त, एसा अरियान मन्तना। एतदाय मेघावी, न समुसेय मन्तयेति ॥


जो कथन अभिनिवेश के वशीभूत होकर, अभिमान के कारण विरोधी होता है, जो अनार्य-गुण को प्राप्त कर परस्पर छिद्रान्वेषण युक्त होता है, जो परस्पर एक दूसरे के अयथार्थ-भाषण, स्खलन, प्रमादवश बोले गये शब्दों तथा एक दूसरे की पराजय को लेकर प्रसन्नता से किया गया होता है, आर्य (ज्ञानी) लोग वैसा कथन नहीं करते।

यदि कोई पंडित बात करने का उचित समय जानकर धर्म तथा अर्थ से युक्त, अरिय-चरित- युक्त बातचीत करना चाहे तो धैर्यवान, अविरोधी तथा अभिमानशून्य व्यक्ति को चाहिए कि वह दुग्रह-रहित हो, तुसाहस-रहित हो, ईष्र्या-रहित हो, शांतचित्त से अच्छी तरह सोच-समझकर बातचीत करे । उसे चाहिए कि वह दूसरों के शुभ-कथन का अनुमोदन करे और दुसरों के अनुचित बोलने का बुरा न माने । उलाहना देना न सीखे, स्खलन को लेकर न बैठे, यूं ही सूत्रादि को उद्धृत न करे, न वैसा करके प्रश्न को दबावे, न झूठी बात बोले । सत्पुरुषो की बातचीत ज्ञान के लिए होती है तथा मन में प्रसन्नता पैदा करने के लिए होती है। अरिय-जन इसी प्रकार वार्तालाप करते हैं, यही अरिय-जनों की मंत्रणा है। इस बात को जानकर मेधावी पुरुष को चाहिए कि अभिमानयुक्त होकर बातचीत न करे।


0 Comments so far

Jump into a conversation

    No comments found. Be a first comment here!

Your data will be safe! Your e-mail address will not be published. Also other data will not be shared with third person.
All fields are required.