बहुजनों को भूत, भाग्य, भगवान के पचड़े से बाहर निकलना ही होगा
By Ritu Bhiva May 20, 2022 02:21 0 commentsभूत, प्रेत, चुड़ैल की अगर हम बात करें तो ये सब सिर्फ शब्द हैं जो हम बचपन से सुनते आए हैं। इनका वास्तव में कोई अस्तित्व नहीं होता। इनके बारे में ऐसा बताया जाता है कि जिन लोगों की दुर्घटना या हत्या आदि के कारण मृत्यु हो जाती है, उनकी आत्मा भूत, प्रेत, चुड़ैल वगैरह बनकर भटकती रहती है और कुछ डरपोक किस्म के लोगों के सिर पर सवार होकर उन्हें सताती है और तांत्रिकों द्वारा (जो अधिकतर अनपढ़ या थोड़ा ही पढ़े लिखे होते हैं) तंत्र मंत्र कर्मकांड द्वारा उनसे छुटकारा दिलाने का दावा किया जाता है। हमारे देश में बहुत सारे मजार या देवस्थान भी भूतबाधा छुड़ाने के सेंटर के रूप में प्रसिद्ध हैं।
मैं बचपन से ही ढूंढ़ रहा हूं मुझे कहीं कोई भूत चुड़ैल वगैरह आज तक नहीं मिले और न मिलेंगे, क्योंकि इनका कोई अस्तित्व है ही नहीं। सिर्फ पीढ़ी दर पीढ़ी, गरीबी व अशिक्षा के कारण चला आ रहा मनोविकार है जो शिक्षा व जीवन स्तर में सुधार के साथ धीरे धीरे खत्म हो रहा है। भला सोचिए यदि पेड़ से गिरकर, कुंए में गिरकर या हत्या करने से मरने वाला व्यक्ति भूत बनता या बनती तो वही फार्मूला जानवरों पर भी लागू होना चाहिए। फिर तो बूचड़खानों में गाय, भैंस, बकरा-बकरी, मुर्गा-मुर्गी की जो रोज हजारों लाखों की संख्या में काटे जाते हैं उनकी आत्माएं तो उस क्षेत्र में तांडव ही मचा देतीं। लेकिन ऐसा कुछ नहीं होता। यदि जानवरों पर कच्ची मौत के कारण भूत बनने का फार्मूला लागू नहीं होता तो इंसान पर भी लागू नहीं हो सकता क्योंकि इंसान भी एक सामाजिक जानवर ही है।
महराज सिंह भारती जी कहते थे तुम भूत उतारने के लिए मुर्गा काटते हो वह मुर्गा भूत बन गया तो उससे बचने के लिए क्या करोगे? यह निकम्मों द्वारा मेहनतकशों की कमाई लूटने का एक जरिया है इससे ज्यादा कुछ नहीं, जितना जल्दी हो सके बहुजनों को इस भूत प्रेत के मनोविकार से बाहर निकलने की जरूरत है।
भाग्य की अगर हम बात करें तो यह भी बिल्कुल कोरी कल्पना है कि कहीं कोई ईश्वर बैठा है और वह इस दुनिया में इंसान को भेजने के पहले रजिस्टर में उसके नाम के आगे पूरे जीवन में उसे क्या पाना क्या खोना है सब दर्ज कर देता है। बिल्कुल बकवास अवधारणा है न कहीं कोई भगवान है और न ही उसका रजिस्टर, जो कुछ भी घटित हो रहा है सबकुछ प्रकृति के नियमों के तहत हो रहा है। भाग्य की अवधारणा ईश्वर का आविष्कार करने वालों ने बैठे बिठाए अपना पेट पालने के लिए बनाई है जो हाथ की रेखाएं देखकर भाग्य बताने का ढोंग करते हैं। ये हाथ पर ईश्वर द्वारा रेखाओं के रूप में लिखी कोड भाषा पढ़ लेने का दावा करने वाले शतप्रतिशत झूठे होते हैं।
हड़प्पा की खुदाई में मिली लिपि जो हमारे पूर्वजों ने, यानी इंसानों ने लिखी है, अभी तक नहीं पढ़ी जा सकी है। ईश्वर लिखित कोड भाषा पढ़ लेने का दावा करने वाले इन पाखंडियों से हड़प्पा कालीन भाषा पढ़वाने और न पढ़ पाने पर जेल में ठूंसने की जरूरत है। जब आज तक कोई भगवान का ही अस्तित्व सिद्ध नहीं कर पाया तो उसका काम भाग्य लिखना कहां से सिद्ध होगा? पाखंडियों ने लूटने खाने के लिए यह सब बेसिर पैर की बातें फैलाई हैं। भाग्य तकदीर कुछ नहीं होता बहुजनों को इन बकवास अवधारणाओं से बाहर निकलने की जरूरत है।
चलिए अब अगर हम यहाँ भगवान की बात करें तो शोषकों की सबसे खतरनाक खोज इसी से जोड़कर निठल्लों ने शोषण के हजारों तरीके ईजाद कर लिए हैं। उन्हीं में भूत और भाग्य भी हैं। एक बार ये परजीवी किसी व्यक्ति या समाज के दिमाग में भगवान को स्थापित करने में कामयाब हो गए तो वह भूत को भी मानेगा और भाग्य को भी मानेगा और यह सिलसिला पीढ़ी दर पीढ़ी चलता भी रहेगा, चूंकि वह व्यक्ति भगवान के बारे में कुछ जानता नहीं इसलिए उसे भगवान का दलाल भी चाहिए, फिर वह कोई तर्क नहीं करेगा पूरी तरह लुट जायेगा बर्बाद हो जाएगा लेकिन उस काल्पनिक भगवान से पीछा छुड़ाने की हिम्मत नहीं जुटा पायेगा। कभी विद्रोह के अंकुर फूटे भी तो वह दलाल उसे अपने फंदे से बाहर नहीं जाने देगा।
गौतम बुद्ध ने कहा था किसी भगवान के चक्कर में पड़ने की जरूरत ही नहीं है। अपना दीपक स्वयं बनो अपने बुद्धि विवेक का इस्तेमाल करो। पहले जानो फिर मानो। सम्राट अशोक के समय में सारा भारत वैज्ञानिकता वादी, नैतिकता वादी, मानवता वादी बौद्ध धम्म को मानता था। लेकिन कालांतर में ब्राह्मणों ने यहां की अधिकांश जनता को ईश्वर वादी, भाग्यवादी, भूतप्रेतवादी बनाकर अंधविश्वास पाखंडवाद अवैज्ञानिकता के गर्त में धकेल दिया। बहुत सारे समतावादी महापुरुषों ने जनता को इस गर्त से बाहर निकालने का प्रयास किया लेकिन वांछित सफलता नहीं मिली। आज भी जागरूक लोगों द्वारा जनता को भूत, भाग्य, भगवान की निराधार एवं अत्यंत हानिकारक अवधारणा से बाहर निकालने का प्रयास जारी है, जो देश इस मकड़जाल से बाहर निकले वे तरक्की की दौड़ में बहुत आगे निकल चुके हैं।
हमारे देश की स्थिति अत्यंत विकट है। धर्म और भगवान के धंधेबाजों के हाथ में देश की सत्ता है। वे शिक्षाव्यवस्था व संचार माध्यमों के द्वारा भूत, भाग्य, भगवान का ही प्रचार प्रसार करके जनता को अंधविश्वासी बनाने के अभियान में लगे हैं। अब जनता को और खासकर बहुजनों को तय करना है कि भूत, भाग्य, भगवान जैसी निराधार अवधारणाओं के चक्कर में फंसकर देश की बर्बादी का मूकदर्शक बने रहना है या इन अंधविश्वासों से बाहर निकलकर समतावादी महापुरुषों फुले साहू अंबेडकर पेरियार आदि के बताए वैज्ञानिकता वादी, नैतिकता वादी, मानवता वादी पथ पर चलकर देश की सत्ता इन षड्यंत्रकारियों से छीनकर शासक बनकर भारत को समृद्ध एवं प्रबुद्ध भारत बनाना है।
लेखक : चन्द्र भान पाल (बी एस एस)
0 Comments so far
Jump into a conversationNo comments found. Be a first comment here!
Your data will be safe! Your e-mail address will not be published. Also other data will not be shared with third person.
All fields are required.