four fears by Tathagata Buddha

तथागत बुद्ध के अनुसार चार भय कौन से हैं?

By Ritu Bhiva February 7, 2022 05:10 0 comments

तथागत बुद्ध के अनुसार चार भय का वर्णन सुनाने को मिलता हैं और इन चारो भय के बारे में स्वयं ही उन्होंने अपने भिक्षुओं को कहा था, जो की इस प्रकार से हैं :  1. आत्म-निन्दा का भय   2. दूसरों द्वारा निन्दित होने का भय  3. दण्ड मिलने का भय  4. दुर्गति का भय।

आत्म-निन्दा का भय कौन सा होता है?


कोई व्यक्ति विचार करता है यदि मैं शरीर से दुश्चरित्रता करूंगा, वाणी से दुश्चरित्रता करूंगा, मनसे दुश्चरित्रता करूंगा तो हो सकता है कि मेरा अपना-आप शील की दृष्टि से मेरी घृणा करे। वह आत्म-निन्दा के भय से भयभीत होकर शारीरिक दुश्चरित्रता छोड़, शारीरिक सुचरित्रता का अभ्यास करता है, वाणी की दुश्चरित्रता छोड़, वाणी की सच्चरित्रता का अभ्यास करता है, मन की दुश्चरित्रता छोड़, मन की सच्चरित्रता का अभ्यास करता है, वह अपने आपको परिशुद्ध बनाये रखता है, यह आत्म-निन्दा का भय कहलाता है।

दूसरों द्वारा निन्दित होने का भय कौन सा होता है ?


कोई व्यक्ति विचार करता है यदि मैं शरीर से दुश्चरित्रता करूंगा, वाणी से दुश्चरित्रता करूंगा, मन से दुश्चरित्रता करूंगा तो हो सकता है कि दूसरे शील की दृष्टि से मुझसे घृणा करें। वह परनिन्दा के भय से भयभीत होकर शारीरिक दुश्चरित्रता छोड़ शारीरिक सुचरित्रता को अभ्यास करता है, वाणी की दुश्चरित्रता छोड़ वाणी की सच्चरित्रता का अभ्यास करता है, मन की दुश्चरित्रता छोड़, मन की सच्चरित्रता का अभ्यास करता है, वह अपने भाव को परिशुद्ध बनाये रखता है, यह, परनिन्दा का भय कहलाता है।

दण्ड-भय कौन सा होता है ?


कोई देखता है कि जो चोर होता है, जो अपराधी होता है उसे राजा के लोग नाना प्रकार के दण्डों से दण्डित करते हैं, चाबुक से भी पीटते हैं, बेत से भी पीटते हैं, मुग्दर से भी पीटते हैं, हाथ भी छेद देते हैं, पाँव भी छेद देते हैं, हाथ-पाँव भी छेद देते हैं, कान भी छेद देते हैं, नाक भी छेद देते हैं, कान-नाक भी छेद देते हैं, खोपड़ी निकालकर उसमें गर्म लोहा भी डाल देते हैं, बालों सहित सिर की चमड़ी उखाड़कर खोपड़ी से कंकरों को भी रगड़ते हैं, संडासी से मुंह खोलकर उसमें दीपक भी जला देते हैं, सारे शरीर पर तेल-बत्ती लपेटकर उसमें आग भी लगा देते हैं, हाथ पर तेल-बत्ती लपेटकर उसमें आग भी लगा देते हैं, गले से गिट्टे तक की चमड़ी भी उतार देते हैं, गले से कटि-प्रदेश तक की चमड़ी और कटि-प्रदेश से गिट्टे तक की चमड़ी भी उतार देते हैं, दोनों को हँनियों तथा दोनों घुटनों में मेंखें ठोककर जमीन पर भी लिटा देते हैं, उभय-मुख काँटे गाड़-गाड़कर चमड़ी, माँस तथा नसें भी नचोट लेते हैं, सारे शरीर की चमड़ी को कार्षापण कार्षापण भर काट डालते हैं, शरीर को जहाँ-तहाँ शस्त्रों से पीटकर उसपर कंधी भी फेरते हैं, एक करवट लिटाकर कान में से मेख भी गाड़ देते हैं, चमड़ी को बिना हानि पहुँचाये अन्दर-अन्दर हड्डी भी पीस डालते हैं, उबलता-उबलता तेल भी डाल देते हैं, कुत्तों से भी कटवाते हैं, जीते जी सूली पर भी लटकाते हैं तथा तलवार से सिर भी काट डालते हैं।

उसके मन में ऐसा होता है कि जिस तरहके पाप कर्म के करने से चोर को, अपराधी को, राजा के लोग नाना प्रकार के दण्ड देते हैं, चाबुक से भी पीटते हैं, बेत से भी पीटते हैं, मुग्दर से भी पीटते हैं, हाथ भी छेद देते हैं, पाँव भी छेद देते हैं, हाथ-पाँव भी छेद देते हैं, कान भी छेद देते हैं, नाक भी छेद देते हैं, कान-नाक भी छेद देते हैं, खोपड़ी निकालकर उसमें गर्म लोहा भी डाल देते हैं, बालों सहित सिर की चमड़ी उखाड़कर खोपड़ी से कंकरों को भी रगड़ते हैं, संडासी से मुंह खोलकर उसमें दीपक भी जला देते हैं, सारे शरीर पर तेल-बत्ती लपेटकर उसमें आग भी लगा देते हैं, हाथ पर तेल-बत्ती लपेटकर उसमें आग भी लगा देते हैं, गले से गिट्टे तक की चमड़ी भी उतार देते हैं, गले से कटि-प्रदेश तक की चमड़ी और कटि-प्रदेश से गिट्टे तक की चमड़ी भी उतार देते हैं, दोनों कोहँनियों तथा दोनों घुटनों में मेंखें ठोककर जमीन पर भी लिटा देते हैं, उभय-मुख काँटे गाड़-गाड़कर चमड़ी, माँस तथा नसें भी नचोट लेते हैं, सारे शरीर की चमड़ी को कार्षापण कार्षापण भर काट डालते हैं, शरीर को जहाँ-तहाँ शस्त्रों से पीटकर उसपर कंधी भी फेरते हैं, एक करवट लिटाकर कान में से मेख भी गाड़ देते हैं, चमड़ी को बिना हानि पहुँचाये अन्दर-अन्दर हड्डी भी पीस डालते हैं, उबलता-उबलता तेल भी डाल देते हैं, कुत्तों से भी कटवाते हैं, जीते जी सूली पर भी लटकाते हैं तथा तलवार से सिर भी काट डालते हैं। यदि मैं ऐसा पाप कर्म करूंगा तो मुझे भी राजा के आदमी पकड़कर इसी प्रकार के नाना तरह के दण्ड देंगे, चाबुक से भी पीटेंगे, बेत से भी पीटेंगे, मुग्दर से भी पीटेंगे, हाथ भी छेद देंगे, पाँव भी छेद देंगे, हाथ-पाँव भी छेद देंगे, कान भी छेद देंगे, नाक भी छेद देंगे, कान-नाक भी छेद देंगे, खोपड़ी निकालकर उसमें गर्म लोहा भी डाल देंगे, बालों सहित सिरकी चमड़ी उखाड़कर खोपड़ीको कंकड़ों से भी रगड़ेंगे, सण्डासी से मुंह खोलकर उसमें दीपक भी जला देंगे, सारे शरीर पर तेल-बत्ती लपेटकर उसमें आग भी लगा देंगे, हाथ पर तेल-बत्ती लपेटकर उसमें आग भी लगा देंगे, गलेसे गिट्टे तककी चमड़ी भी उतार देंगे, दोनों कोहनियों तथा दोनों घुटनों में मेखें ठोककर जमीन पर भी लिटा देंगे, उभय-मुख कांटे गाड़-गाड़ कर चमड़ी, मांस तथा नसें भी नचोट लेंगे, सारे शरीरकी चमड़ी को कार्षापण कार्षापण भर काट डालेंगे, शरीरको जहाँ तहाँ से पीटकर उसपर कंघी भी करेंगे, एक करवट लिटाकर कान में मेख भी गाड़ देंगे, चमड़ी को बिना हानि पहुँचाये अन्दर अन्दर हड्डी भी पीस डालेंगे, उबलता उबलता तेल भी डाल देंगे, कुत्तों से भी कटवा देंगे, जीते जी सूली पर लटकाएँगे तथा तलवार से सिर भी काट डालेंगे। वह दण्ड-भय से दूसरों की चीजें लूटता हुआ नहीं घूमता हैं। इसे दण्ड-भय कहते हैं।

दुर्गति-भय कौन सा होता है ?


कोई व्यक्ति विचार करता है कि शारीरिक दुष्कर्म का परलोक में बुरा दुष्परिणाम होता है, वाणी के दुष्कर्म का परलोक में।  बड़ा दुष्परिणाम होता है, मन के दुष्कर्म का परलोक में बड़ा दुष्परिणाम होता है। यदि मैं शरीर, वाणी तथा मन से दुष्कर्म करूंगा तो यह होगा कि मैं शरीर छुटने पर, मरने के अनन्तर नरक में उत्पन्न होऊ, दुर्गति को प्राप्त होऊँ। वह दुर्गति के भय से शारीरिक दुश्चरित्रता को छोड़ शारीरिक सुचरित्रता का अभ्यास करता है, वाणी की दुश्चरित्रता को छोड़ वाणी की सुचरित्रता का अभ्यास करता है, मन की दुश्चरित्रता को छोड़ मन की सुचरित्रता का अभ्यास करता है, वह अपने आपको परिशुद्ध बनाये ‘रखता है। , इसे दुर्गति-भय कहते हैं।  तथागत बुद्ध ने ये ही चार भय के बारे में स्वयं ही कहा था। 

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