Kashmir Files

कश्मीर फाइल्स के नाम पर बनी फ़िल्म और जमीनी हकीकत

By Ritu Bhiva March 17, 2022 03:52 1 comments

कश्मीर फाइल्स के नाम पर बनी फिल्म आजकल चर्चाओं में है। मेरे आज तक यह समझ नहीं आया कि कोई बिना संघर्ष के कैसे अपनी विरासत छोड़कर भाग सकता है। किसानों की जमीनों पर आंच आई तो 13 महीने तक सब कुछ त्यागकर दिल्ली के बॉर्डर पर पड़े रहे। कश्मीर घाटी में आज भी जाट-गुर्जर खेती कर रहे है। पीड़ित होने का रोना-धोना आजतक दिल्ली जंतर,मंतर आकर नहीं किया है।

1967 के बाद देश के बारह राज्यों में आदिवासियों को चुन-चुनकर मारा जा रहा है और कारण इतना ही बताया जाता है कि विकास के रास्ते में रोड़ा बनने वाले नक्सली लोगों को निपटाया जा रहा है। आदिवासियों का नरसंहार कभी चर्चा का विषय नहीं बनता है। उनके विस्थापन का दर्द, पुनर्वास की योजनाओं पर कोई विमर्श नहीं होता। सुविधा के लिए बता दूँ कि 1989 तक कश्मीरी पंडित बहुत खुश थे और हर क्षेत्र में महाजन बने हुए थे। अचानक दिल्ली में बीजेपी समर्थित सरकार आती है और राज्य सरकार को बर्खास्त करके जगमोहन को राज्यपाल बना दिया जाता है।

कश्मीरी पंडितों पर जुल्म हुए और दिल्ली की तरफ प्रस्थान किया गया। उसके बाद बीजेपी ने कश्मीरी पंडितों का मुद्दा मुसलमानों को विलेन साबित करने के लिए राष्ट्रीय मुद्दा बना लिया। कांग्रेस सरकार ने जमकर इस मुद्दे को निपटाने के लिए सालाना खरबों के पैकेज दिए और जितने भी कश्मीरी पंडित पलायन करके आये उनको एलीट क्लास में स्थापित कर दिया। साल में एक बार जंतर-मंतर पर आते, बीजेपी के सहयोग से ब्लैकमेल करते और हफ्ता वसूली लेकर निकल लेते थे।

8 साल से केंद्र में बीजेपी की प्रचंड बहुमत की सरकार है व कश्मीर से धारा 370 हटा चुके है लेकिन कश्मीरी पंडित वापिस कश्मीर में स्थापित नहीं हो पा रहे है। धरने-प्रदर्शन से निकलकर हफ्तावसूली की गैंग फिल्में बनाकर पूरे देश को इमोशनल ब्लैकमेल करके वसूली का नया तरीका ईजाद कर चुकी है। आदिवासी रोज अपनी विरासत को बचाने के लिए चूहों की तरह मारे जा रहे है लेकिन कभी संज्ञान नहीं लिया जाता। आज किसान कौमों को विभिन्न तरीकों से मारा जा रहा है लेकिन कोई चर्चा नहीं होती।

1995 के बाद आज तक तकरीबन 4लाख किसान व्यवस्था की दरिंदगी से तंग आकर आत्महत्या कर चुके है लेकिन पिछले 25 सालों में एक भी बार जंतर-मंतर पर कोई धरना नहीं हुआ। राष्ट्रीय मीडिया में विमर्श का विषय नहीं बना और केंद्र सरकार की तरफ से चवन्नी भी राहत पैकेज के रूप में नहीं मिली। भागलपुर, पूर्णिया, गोदरा के दंगों से भी पलायन हुआ व देश के सैंकड़ों नागरिक मारे गए। मुजफरनगर नगर फाइल्स या हरियाणा जाट आरक्षण पर हरियाणा फाइल्स भी बननी चाहिए।

हर नागरिक की मौत का संज्ञान लिया जाना चाहिए। एक नागरिक की जान अडानी-अंबानी की संपदा से 100 गुणा कीमती है। हफ्ता-वसूली की यह मंडी अब खत्म होनी चाहिए। भावुक अत्याचारों का धंधा कब तक चलाया जाएगा? किसान कौम के बच्चे बंदूक लेकर इनके घरों की सुरक्षा के लिए खड़े हो तब ये लोग बंगलों में जाएंगे। क्यों देश इनका नहीं है क्या? ये नागरिक के बजाय राष्ट्रीय दामाद क्यों बनना चाहते है?

भारत सरकार संसाधन दे रही है, आर्मी तैनात है, तो डर किससे है? जिससे खतरा है, उनके खिलाफ लड़ो।, जाट-गुज्जर कश्मीर घाटी में आज भी रह रहे है, उन्होंने कभी असुरक्षा को लेकर रोना-धोना नहीं किया है।

लेखक:  प्रेमसिंह सियाग

1 Comments so far

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    #1 A R Arya Comment 7th February 2023 10:58 AM

    बहुत ज्ञानवर्धक लेखन सामग्री उपलब्ध कराई जा रही है । धन्यवाद।

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