क्या मानव शरीर में आत्मा होती है, अगर हाँ तो ये शरीर से निकलती ही क्यों हैं?
By Ritu Bhiva February 14, 2022 12:15 1 commentsआध्यात्मिक लोग कहते है कि मानव शरीर के अन्दर एक आत्मा होती है जो शरीर को संचालित करती है! इनका यह भी कहना है कि आत्मा अजर-अमर होती है और उसके निकलते ही मानव मर जाता है। अब सवाल यह है कि आखिर आत्मा के निकलने से मानव मर जाता है तो आत्मा निकलती ही क्यो है? हमारा शरीर वृद्ध होता है या चोट लगने पर घायल होता है। आत्मा ना तो घायल होती है और ना ही वृद्ध होती है, तो फिर आत्मा क्यो निकलती है?
हमारे शरीर मे आत्मा जैसा कुछ भी नही है। हमारा पूरा शरीर हृदय और मस्तिष्क से चलता है, जब कभी आपको कही चोट लगती है तो दिमाग तुरन्त यह बात हृदय को बताता है और फिर हम उस पर ध्यान देते है। जब दिमाग और हृदय काम करना बन्द कर देते हैं तो शरीर मे रक्त संचार रुक जाता है और ग्लूकोज की सप्लाई भी बन्द हो जाती है। जिससे मांस सड़ने लगता है, बस यही मृत्यु है।
अगर आत्मा के निकलने से मौत होती है तो मृत्यु के बाद भी आँख लगभग छः घण्टे जीवित रहती है, क्या उसके लिये अलग आत्मा होती है। अगर हमारा हाथ-पैर कट जाता है तो आत्मा नही निकलती पर गला कटने पर क्यों निकल जाती है। हमारे शरीर मे करोड़ो जिवाणु भी होते है तो क्या हमारे शरीर मे करोड़ो आत्माऐं है। आध्यात्मिक कहते हैं कि आत्मा गर्भावस्था के दौरान शरीर में प्रवेश कर जाती हैं और मृत्यु के साथ शरीर से निकल जाती है। फिर दुबारा से जन्म, परमात्मा से मिलन या प्रलय के दिन होने वाले फैसले का इंतजार करती है। ( धार्मिक विश्वासों के अनुसार )।
मै कहता हूँ कि कोई आत्मा गर्भ मे नही प्रवेश करती। गर्भधारण अण्डाणु को शुक्राण द्वारा निषेचन का परिणाम है। स्त्री अपने अण्डाशयों में चालीस हजार से भी अधिक अण्डाणुओं को एक साथ जन्म देती है, निश्चित तौर पर इतनी "सुप्त आत्मायें" नारी शरीर में पहले से मौजूद नहीं हो सकती। रही बात पुरूष की, तो वीर्य में स्पर्म काउंट की संख्या लगभग 80 से 120 मिलियन प्रति क्यूबिक मिली० है (एक मिली० में एक हजार क्यूबिक मिली० होते है) और पुरूष के एक बार के वीर्यपात की मात्रा लगभग 3 से 5 मिली० होती है। अब जरा कैल्क्यूलेटर निकालिये और हिसाब लगाइये।
निश्चित तौर पर इतने सारे शुक्राणुओं में भी "सुप्त आत्माऐं" नही होती होगी। असल मे आत्मा की अवधारणा बड़ी चतुराई से बनायी गयी, आत्मा होने का दूसरा पहलू यह भी है कि "परमात्मा" भी है। गरुणपुराण के अनुसार मृतात्मा को कर्मानुसार तरह-तरह के कष्ट झेलने पड़ते है, कभी नर्क पकोड़े की तरह उबाला जाता है तो कभी आरी से काटा जाता है, इस पुराण मे नर्क के कष्ट का पूरा "मेन्यूकार्ड" है। अब इस कष्ट से बचने का उपाय भी इसी पुराण मे है। अगर आप ब्राह्मण को गौदान करोगे तो आपके परिजन की आत्मा "वैतरणी" नदी पार कर जायेगी, अगर आप ब्राह्मण को भोजन और दान-दक्षिणा से तृप्त करोगे तो मृतक की आत्मा को यमदूत कष्ट नही देगे। अर्थात मृत्यु पश्चात भी करोबार चलता रहे इसके लिऐ आत्मा बनायी गयी।
गरुणपुराण मे पाँच प्रकार के नर्को का वर्णन है:
रौरव नर्क!
महारौरव नर्क!
कण्टकावन नर्क!
अग्निकुण्ड नर्क!
पंचकष्ट नर्क!
अब इन कष्टदायी नर्कीय यातना से बचने के लिऐ तमाम प्रकार के दान-दक्षिणा वाले उपाय भी है। असल मे आत्मा का अस्तित्व बनाया ही इसीलिऐ गया कि अपने पित्रो की आत्मा को नर्क से बचाने के लिये परिजन तमाम कर्मकाण्ड और दान-दक्षिणा आसानी से करेगे, बस यही आत्मा का सच है। गीता मे श्रीकृष्ण कहते है कि आत्मा कभी नही मरती। अरे माधव मरेगी तो तब जब वो होगी ना।
इस ब्राह्माण्ड मे आत्मा और परमात्मा का कोई अस्तित्व नही है। आज तक किसी डॉक्टर ने आत्मा के लिए दवा दी ? नही क्योंकि आत्मा होती ही नहीं। मरने के बाद कोई आत्मा नही भाग जाती, बस ये आपका दिमाग है जो काम करना बंद कर देता है। हमारे दिमाग में रसायन होते है, डोपामाइन नाम का रसायन अगर निकाल दिया जाए तो हम कभी खुसी महसूस नही करेंगे, तो क्या आत्मा हँसना भूल जाएगी? बायोलॉजी, केमिस्ट्री और मॉलिक्यूलर फिसिक्स की मदद से हम बहुत करीब खड़े है नया जीवन बनाने में, कुछ शोध बाकी है बस। हम दिल का प्रत्यारोपण कर लेते है, एक का दिल दूसरे में, तो क्या आत्मा दिल मे होती है जो दूसरे शरीर मे चली जाती है? अगर आत्मा दिल मे होती तो दिमाग निकाल लेने से आदमी मरना नही चाहिए क्योंकि दिल है उसमें आत्मा है, पर नही शरीर से कुछ भी कम हुवा और शरीर मृत। तो क्या सब अंगों में अलग अलग आत्मा होती है?
तो मानव अंग तो हम बना चुके है?
स्टेम सेल से कई मानव अंग बना चुके है हम। लिवर, दिल, किडनी जैसी चीज़े जरूरत नही होगी दुसरो से लेने की, लैब में बना रहे। अगर हर अंग में आत्मा होती तो लैब में कैसे बना पाते मानव अंग? पूरे शरीर को खोल चुके है हम, कही भी प्रमाण नही मिला कि यहाँ आत्मा रहती होगी। आपमे जो चेतना है वो दिमाग के कारण है। क्लीनिकल मृत्यु डॉक्टर घोषित करते है जब दिल धड़कना बन्द हो, साँसे रुक जाए, और खून का बहाव न हो, लेकिन किडनी और आंखे जीवित होती है। इसके 4 से 6 मिनट में बायोलॉजिकल डेथ होती है जिसमे ऑक्सीजन न मिलने के कारण दिमाग की कोशिकाएं टूटने लगती है, फिर दूसरे अंग।
अंग दान किये जाते है, मरने के बाद आत्मा तो निकल गयी फिर अंग दान कैसे करते है? अमीबा एक कोशकीय जीव है जो दो भागों में टूट जाता है, एक अमीबा था तो आत्मा भी एक ही होगी, फिर दो भागों में बटने में दोनों भागो में आत्मा कैसे हो गई? इसलिए आत्मा जैसी कोई चीज़ नही। सिर्फ आपका अज्ञान है। स्वर्ग नरक का लालच और डर के कारण आत्मा की रचना की गई थी
आत्मा क्या है?
आत्मा एक ऊर्जा का नाम हैं जो व्यक्ति के दिमाग मे संचालन करता है। हर लिविंग सेल के एनर्जी का सोर्स ATP से होता है। इसलिए आत्मा ऊर्जा का ही नाम होता है। दिमाग के नसों में सभी संदेशों को संचालित करता है। ये ऐसा वायरलेस करेंट है जो व्यक्ति के शरीर का कंप्यूटर चलाता रहता है और DNA से मिल कर ऊर्जा का रूप बदल कर स्पर्म एग भी बनाता है, जो पुनः निगेटिव और पॉज़िटिव एनर्जी मिल के कंप्लीट एनर्जी बन जाती हैं और नया शारीरिक कंप्यूटर बन जाता है जो सेल्फ एनर्जी बनाता है और खर्च करता रहता है। जब ये एनर्जी दिमाग को संचालित कर नही पाता तो व्यक्ति मर जाता है।
लेखक : विकाश कुमार
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Jump into a conversationI am very impressed by your statement
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