Republican Party of India RPI

RPI का 6 दिसम्बर 1956 के बाद से 1978 तक का इतिहास

By Ritu Bhiva February 14, 2022 01:14 0 comments

आरपीआई ( RPI ) का 6 दिसम्बर 1956 के बाद से 1978 तक का इतिहास हर अम्बेडकरवादी को जानना चाहिए, जिस पर राजनीतिक इतिहासकारों ने धूल फांकने का कार्य किया,क्योंकि राजनीतिक रूप से सभी की आवाज बुलंद करने वाला एकमात्र संघठन RPI हुआ करता था,  जिसे बाबा साहेब ने शेड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन को समाप्त करके उसे बनाया था।

6 दिसम्बर 1956 बाबा साहेब के परिनिर्वाण के पश्चात बाबा साहेब ने जो संघठन बनाये उनमे से एक संघठन RPI भी है, जिसने बाबा साहेब के जाने के बाद भी लोगो के दिलो में सँघर्ष की ज्वाला को जलाए रखा और आज जो ज्योति बाबा साहेब के विचारो की, उनके सँघर्ष की लोगो मे जल रही है, उसमे अहम भूमिका RPI और RPI से जुड़े उन तमाम पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं की है, जिन्होंने इसे अपने खून से सींचा है।  बाबा साहेब के जाने के बाद और भारत की राजनीति 1978 तक जो चली और उस राजनीति में RPI की क्या भूमिका रही, उसका अध्यन राजनीतिक इतिहासकारों ने कभी ठीक से किया नहीं लेकिन आज जिन अधिकारों के लिए RPI ने सँघर्ष किया उसे भुलाया नहीं जा सकता।  लेकिन उसे भुलाया इसलिए जा रहा है, क्योंकि RPI 1978 के बाद कमजोर हुई और कई धड़ों में बंटती चली गईं।  उस पर समीक्षा की जा सकती है, और निचोड़ भी दिया जा सकता है, जब कोई घर टूटता है, तो उस घर को तोड़ने में बाहर वाले से ज्यादा भूमिका अंदर वालो की होती है क्योंकि बाहर वाला तो हमेशा ही तोड़ना चाहता था।  लेकिन जिस घर को हमारे बाबा साहेब ने बनाकर हमे दिया उस घर को हमने तोड़ा तो बाहर वालो से ज्यादा दोषी हम है, की कोई कारण रहे हो हमने अपनी बनाई चीजों को तोड़ा, जिसे फिर हम दुबारा नहीं बना पाए।  लोग कहते है राजनीतिक चेतना तो बाबा साहेब अंबेडकर जी ने लोगो मे पैदा कर दी थी, जिसका परिणाम था कि RPI पूरे भारत के शोषित, पीड़ित, वंचित लोगो की एकमात्र आवाज हुआ करती थी। लेकिन क्या आज उन शोषित पीड़ित, वंचित लोगो की एक आवाज है, दूर तक देखो तो संघठन ही संघठन नजर आते है लेकिन समस्या जहां की तहां खड़ी है, उनकी आवाज बुलंद करने वाला कोई एक नेतृत्व नहीं है, अनेकों संगठन बनाकर नेतृत्व को खंडित किया गया।
 
आज जो भी ज्वाला बाबा साहेब के सँघर्ष की और मिशन की उसका कुछ श्रेय बाबा साहेब द्वारा बनाये एक राजनीतिक संघठन को न देना इतिहास से बेईमानी करने जैसा होगा। क्योंकि RPI उस समय हमारी आवाज को पूरे भारत मे बुलंद करती थी लेकिन आज RPI के नाम पर जो चल रहे है, सोचने का विषय यह है कि कब वो अनेकों हिस्सो में बटी, RPI को फिर एकजुट करेंगे।

RPI के बारे में जानने के लिए आपको आजाद भारत के एक सबसे बड़ा आंदोलन जिसका स्मरण मुझे लगता है, हमारे 90 प्रतिशत भाइयो को उसकी जानकारी नहीं होगी और जिन 10 प्रतिशत को जानकारी है, उन्होंने उसे 90 प्रतिशत तक पहुचाने की अपनी जिम्मेदारी को नहीं निभाया। इसीलिए आज RPI का नाम महाराष्ट्र तक ही सीमित होकर रह गया। आजाद भारत के उस सर्वभारत आंदोलन को में याद करना चाहूंगा, जिसे RPI कर नेतृत्व में किया गया और आजाद भारत के इतिहास में वो पहला सबसे बड़ा आंदोलन है, जिसका इतिहास धूल फांक रहा है।  क्योंकि हमारे 10 प्रतिशत लोगो ने वो जिम्मेदारी नहीं निभाई उन 90 प्रतिशत लोगो तक सत्य को पहुचाने की। आजाद भारत के उस ऐतिहासिक आंदोलन में दो लाख लोगों की गिरफ्तारी हुई और उस समय के RPI के जुझारू कार्यकर्ता और पदाधिकारियों को इसका श्रेय जाता है कि मजबूत सत्ता के सामने उन्होंने आंदोलन किया गिरफ्तारियां दी और शहादत दी। लेकिन उस आजाद भारत के प्रथम उस ऐतिहासिक आंदोलन को करने के क्या कारण रहे उसमे उन्होंने किन मांगों को उठाया और  जिनकी वजह से शोषित, पीड़ित, वंचित लोगो की स्थितियों में सुधार आया। 1978 तक संसद में कोंग्रेस के सामने मजबूती से एक विपक्ष की जिम्मेदारी निभाने वाला दल RPI था। लेकिन 1978 के बाद जब RPI कमजोर हुई तब अन्य राजनीतिक दलों का उदय हुआ जो कि देखा जाए तो उसके बाद उन्होंने जाती धर्म और मजहब की राजनीति को प्रसारित किया। लेकिन 1978 तक जो RPI ने काम किया वो सभी की आवाज बनी और बाबा साहेब के सँघर्ष को जिंदा रखने का कार्य किया, इसे समझने के लिए हर अम्बेडकरवादी और बाबा साहेब के अनुयायी को उस सर्वभारत आंदोलन का इतिहास और उसमे उठाई गई मांगो का अध्यन अवश्य करना चाहिए, जो निम्न प्रकार से थी :

रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया ने प्रधानमंत्री भारत सरकार के सामने निम्नलिखित मांगे पेश की :-

1-जमीन उन लोगो को दी जाए जो सही अर्थों में स्वयं खेती करते है।
2-बंजर और बेकार पड़ी हुई जमीन भूमिहीन खेत- मजदूरों में बांटी जाए।
3-बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया जाए।
4-सरकार अनाज का व्यापार अपने हाथों में ले। सस्ते अनाज के डिपो शहरों और देहातो में खोले जाए। महंगाई पर काबू पाया जाए।
5-झुग्गियों में रहने वाले लोगो को न उजाड़ा जाए। उनको बसाने के लिए मकानों का प्रबंध किया जाए।
6-न्यूनतम उजरत ( वेतन ) कानून पूर्ण रूप से देशभर में लागू किया जाए।
7-अनुसूचित जातीयो में से बुद्ध धर्म मे दीक्षित लोगो को पहले जैसे संवैधानिक-अधिकार व सुविधाएं दी जाए।
8-छुआछूत मूलतः दूर करने के लिए कड़े कानूनी व समाजी उपाय किये जाए।
9-संसद के केंद्रीय हाल में बाबा साहेब अंबेडकर का चित्र लगाया जाए।
10-अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों के लिए सरकारी नौकरियों में रिजर्वेशन-कोटा पूरा किया जाए।
11-दलित वर्गों पर ढाए जा रहे अत्याचारों को बंद किया जाए। इसके लिए कड़े कानून बनाए जाएं।

ये सभी पॉइंट्स "अम्बेडकरी आंदोलन की दास्तान" से लिए गए।  इन मांगो के समर्थन में 32 पृष्ठों का एक स्मरणपत्र भी दिया गया जिसमें सम्बंधित आंकड़े दर्ज किए गए थे।  पार्टी को सर्वभारत कार्यकारणी की बैठक जालंधर में 26 जून 1965 को हुई। दूसरे दिन एक विशाल कॉन्फ्रेंस भी आयोजित की गई जिसमें सरकार को एक बार फिर अपने वायदे पूरे करने के लिए चेतावनी दी गई।

रिपब्लिकन मोर्चे के कारण :


1-सरकार को भूमि सुधार करने पड़े।
2-झुग्गी-झोपड़ी वालो को बसाने के लिए योजना बनानी पड़ी।
3-देर ही से सही 29 बैंकों को राष्ट्रीयकरण हुआ।
4-बाबा साहेब अंबेडकर की मूर्ति संसद परिसर में लगी और केंद्रीय होल में उनका चित्र लगा।
5-दलितों पर अत्याचारियों की रोकथाम के लिए दो कानून बने।
6-अनुसूचित जातियों के प्रतिनिधि भर्ती-बोर्डो में लिए गए। सरकार ने नौकरियों में आरक्षण पूरा करने के लिए कदम उठाए।
7-न्यूनतम वेतन कानून देश भर में सख्ती से लागू किया गया।

ये सभी पॉइंट्स "अम्बेडकरी आंदोलन की दास्तान" से लिए गए।

अब सोचने का विषय RPI की जिम्मेदारी उन लोगो पर है, जो अपने को अम्बेडकरवादी कहते है। लेकिन कई भागों में राजनीतिक रूप से बट चुके है, जिसका परिणाम यह हुआ कि अन्य राजनीतिक दलों का जन्म हुआ और हमने ईमानदारी से बाबा साहेब के विचारो पर कार्य नहीं किया। भारत मे रहने वाले हर अम्बेडकरवादी को इस सत्य को स्वीकार करना होगा। इसमे कुछ तथ्य एल आर बाली साहब की पुस्तक अम्बेडकरी आंदोलन की दास्तान से लिये गए है और बाकी मेरे स्वयं के विचार है। उन बिंदुओं को जो इंगित किये गए है, उन पर बाली साहब की पुस्तक में साफ तौर पर लिखा है। आज हम अपनी स्थिति के स्वयं जिम्मेदार है। अपने घर को तोड़ने के स्वयं जिम्मेदार है।

लेखक : विकाश कुमार

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