Revolutionary Birsa Munda

क्रांतिकारी बिरसा मुंडा जो अल्पायु में ही युगपुरुष बन गए

By Ritu Bhiva June 23, 2022 01:41 0 comments

बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर, 1875 झारखंड के बंबा गांव में हुआ था। बचपन से गंभीर प्रवृत्ति के बिरसा अपने पुरखों के अपमान और आदिवासी दुर्दशा से बेहद दुखी थे। अपनी वेदना को आदिवासी वाद्ययंत्र बांसुरी बजाकर शांत करते थे। पाठशाला जाने की हठ में वह चाईबासा तक कई मिल इतने पैदल चले की उनके पांव में छाले पड़ गए।  पढ़ने हेतु उनकी इस लगन को देख स्कूल प्रबंधन ने उनको प्रवेशावधि समाप्त होने पर भी चाईबासा के जर्मन ईसाई मिशनरी स्कूल में सन 1886 में प्रवेश दे दिया। यहां वह 1890 तक पढ़ाई करते रहे। स्कूल में पादरी के मुंडा जाति को चोर कहने पर बिरसा ने विरोध किया तो उसे स्कूल से निकाल दिया गया। विरोध में मुंडा लोगों ने प्रोस्टेन्ट चर्च को त्याग कर रोमन कैथोलिक चर्च की शरण ली। वहां भी उनका मोहभंग हो गया।  तब उसने आदिवासी समाज सुधार के कई कदम उठाने शुरू कर दिये। चेचक पीड़ितों की चंदन-मलहम पट्टी से इलाज करके जनसेवा भी करने लगा। बिरसा के बुजुर्ग भविष्यवाणी करने लगे कि बिरसा क्रांतिकारी कार्य करके आदिवासीयों का उद्धार करेगा। ये ही बिरसा होगा, धरती का भगवान होगा।

हताश बिरसा ने जमीदारों, ठेकेदारों, साहूकारों और अंग्रेजी शासन के द्वारा जमीन हड़पने से उपजे अन्याय और शोषण के खिलाफ लड़ाई की शुरूआत कर  दी।

उसने नए धर्म की स्थापना करके समाज को कई शिक्षाएं दीं : 1. चोरी करना, झूंठ बोलना, हत्या करना अन्याय है। 2. कोई भीख न मांगे। 3. तुम सब लोग गरीब हो, पुरोहितों और ओझाओं की बातों में आकर बलि देकर पूजा कराना छोड़ दो। 4. अनेक देवी-देवता की पूजा मत करो। 5. भूत, पिशाच, डायन आदि पर विश्वास मत करो। 6. हंडिया, ताड़ी, महुआ आदि नशीली वस्तुओं का सेवन मत करो। 7. चींटियों की तरह सतत परिश्रमी बनो। 8. पशु-पक्षियों की तरह मिल जुलकर जीना सीखो। 9. सभी से प्रेम करो। इस तरह आदिवासियों ने इसाई धर्म छोड़कर नया बिरसा धर्म स्वीकार किया।

उसने स्वाधीन मुंडाराज लाने के लिए पुरजोर व्यापक आंदोलन किया जिसके लिए उसे दो साल 1895-97 में जेल में भी रहना पड़ा। जेल से छूटने के बाद बिरसा ने अंग्रेजी शासन के जोर-जुल्म के खिलाफ आक्रामक विद्रोह करने की योजना बनाई। 25 दिसंबर, 1899 को क्रिसमस के दिन सैलायकोव पहाड़ी के ऊपर से अपने आदिवासी साथियों के साथ चर्च पर पत्थरों से हमला करना शुरू करके मुंडाराज की स्थापना का एलान कर दिया। सैल रकाब के खूनी संघर्ष में 6 जनवरी 1900  को उल गुलान की हुंकार करके वह पीड़ित-शोषित आदिवासियों के स्वाभिमान की हुंकार बन गया। उसपर अंग्रेजी शासन ने कई मुकद्दमें दर्ज किये उसे जेल में डाल दिया और 9 जून 1900 को जेल में उसकी 25 वर्ष की आयु में ही रहस्मय शहादत हो गई।

वह कहता था "जबतक मैं अपनी शहादत नहीं देता तुम सब बच नहीं पाओगे। निराश मत होना, यह कभी भी नहीं सोचना कि मैंने तुम्हें मझदार में छोड़ दिया है, मैंने तुम लोगों को एकता और संगठन के वे औजार और हथियार दे दिये हैं जिससे तुम लोग अपनी रक्षा कर सकते हो। मैं तुम्हारे हाथ मे चांद उतारकर रख दूंगा, उल गुलान ला दूंगा, मैं तुम्हें गोद मे लेकर खिलाऊंगा नहीं, मैं झूंठी  बात कहकर गुमराह भी नहीं करूंगा। जमींदार, हाकिम सभी हमारे शत्रु हैं। साहिबों की सरकार हमारी सबसे बड़ी दुश्मन है। हम उसे उखाड़ फेंकेंगे और स्वंतंत्र मुंडाराज की स्थापना करेंगे। साहबों की सरकार जाने के बाद राजा, जमींदार, ठेकेदार, साहूकार और हाकिमों के शोषण का अंत निश्चित है।"

बिरसा का लहू रंग लाया। अंग्रेजी सरकार ने मुंडाओं की समस्याओं के लिये कई बड़े कदम उठाए। बिरसा आबा हो गया। आदिवासी जननायक बिरसा मुंडा को शत शत नमन।

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