अगर हम धर्म परिवर्तन करते हैं तो हमारे आरक्षण का क्या होगा? कार्यकर्ताओं द्वारा उठाए गए इस सवाल के जवाब में बाबासाहेब डॉ.अम्बेडकर ने कहा था कि "चिंता मत करो, तुम्हारा आरक्षण मेरे कोट की जेब में है"। हमारे समाज के प्रत्येक व्यक्ति को ज्ञात बाबासाहेब के इस कथन को समझने के लिए, हमें संविधान के अनुच्छेद 25 और अनुच्छेद 341 के लिए जारी अनुसूचित जाति आदेश 1950 के बीच के संबंध को समझने की आवश्यकता है। संविधान अनुच्छेद 25 खंड (1) के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार है और खंड (2) उपखंड (बी) के अनुसार धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार के प्रयोग के कारण व्यक्ति के सामाजिक कल्याण और सुधार के संबंध में, जो की हिंदुओं के सभी वर्गों एवं उप-विभाजनों को खोलने का प्रावधान करता है, किसी भी मौजूदा कानून के कार्यान्वयन को प्रभावित नहीं करेगा। और स्पष्टीकरण दो खंड (2) उपखंड (बी) में कहा गया है कि 'हिंदू' शब्द में वे व्यक्ति भी शामिल हैं जो की, सिख धर्म, जैन धर्म या बौद्ध धर्म को माननेवाले हैं।
यहाँ, 'हिंदू' शब्दार्थ मे उन लोगों को भी शामिल किया गया है जो सिख धर्म, जैन धर्म या बौद्ध धर्म को माननेवाले हैं, लेकिन उसका अर्थ यह नहीं है कि, सिख धर्म, जैन धर्म या बौद्ध धर्म को माननेवाले भी हिंदू धर्मी हैं, बल्कि उसका मतलब यही है कि, हिंदुओं के सभी वर्गों और उप-जातियों के सामाजिक कल्याण और सुधार के संबंध में मौजूदा कानून में किए गए प्रावधान उन जातियों और उपजातियों पर भी लागू होंगे जिन्होंने हिंदू धर्म छोड़कर के सिख धर्म, जैन धर्म या बौद्ध धर्म में परिवर्तित हो गए हैं।
आइए अब घटना (एस सी) आदेश-1950 पर नजर डालते हैं।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 341 (1) के तहत भारत के राष्ट्रपति के आदेश के अनुसार अनुसूचित जातियों की एक नई सूची का सर्वेक्षण और संकलन किए जाने का प्रावधान है। लेकिन ऐसा किए बिना, कुछ संशोधनों के साथ, ब्रिटिश भारत सरकार अनुसूचित जाति आदेश-1936 को जिसमें 429 अनुसूचित जातियों की आधिकारिक सूची के साथ अपनाया गया।
यहां दो प्रश्न प्रस्तुत किए जा सकते हैं।
(1) अनुसूचित जाति आदेश-1936 में कुछ सुधार किए गए, मतलब वास्तव में क्या किया?
(2) सुधार किए बिना ही अनुसूचित जाति आदेश-1936 को जैसे थे रूप में स्वीकार कर लिया गया होता तो अनुसूचित जाति के आरक्षण पर क्या परिणाम होता?
पहले प्रश्न का उत्तर है, मुल रूप से अनुसूचित जाति आदेश - 1936 के पैरा 3 में किसी भी धर्म का उल्लेख नहीं था। लेकिन जब संविधान की धारा 341 के लिए वही आदेश फिर से लाया गया तो उसमें 'हिन्दू धर्म' Hinduism शब्द डालकर यह प्रावधान किया गया कि, "कोई भी व्यक्ति जो हिंदू धर्म के अलावा किसी अन्य धर्म को मानता है, उसे अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जाएगा।" आदि प्रावधान करके एक नए रूप में संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश दिनांक 10 अगस्त 1950 भारत के राष्ट्रपति द्वारा पारित किया गया।
दूसरे प्रश्न का उत्तर यह है कि, अनुसूचित जाति आदेश - 1936 यदि बिना किसी सुधार के जैसे थे रूप में स्वीकार किया गया होता तो हमें संविधान की धारा 341 के तहत बिना धर्म बताए केवल अपनी अनुसूचित जाति के आधार पर आरक्षण मिल सकता था। (जैसे आज अनुसूचित जनजातियों को मिलता है) लेकिन संविधान की धारा 25 खंड (2) उपखंड (बी) हम पर लागू नहीं होता था। मतलब संविधान की धारा 25 खंड (1) के अनुसार हमें धार्मिक स्वतंत्रता तो मिल जाती थी लेकिन खंड (2) उपखंड (बी) हमें लागू नहीं होता था और आज हम अपनी अनुसूचित जाति को साथ लेकर धर्मांतरण कर सकते हैं वह स्वतंत्रता खो देते थे। मतलब सन 1950 के पहले हमारे नाम पर जो भी धर्म धर्म रजिस्टर हो चूका हैं उस में बदलाव करते ही हमारी अनुसूचित जाति की सदस्यता समाप्त हो जाती थी। यानि धर्म बदल करने के साथ ही हमारा अनुसूचित जाति का आरक्षण समाप्त हो जाता था।
संक्षेप में, धर्म का अधिकार अधिनियम की धारा 25 और अनुसूचित जाति का आरक्षण अधिनियम की धारा 341 के अनुसार अनुसूचित जाति आदेश 1950 के साथ कानूनी संबंध स्थापित करने के उद्देश्य से भारत के कानून मंत्री रहते बाबासाहेब डॉ.अम्बेडकर ने संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 10 अगस्त 1950 के पैरा 3 में 'हिंदू धर्म' Hinduism शब्द शामिल करके भविष्य में सिख धर्म, जैन धर्म या बौद्ध धर्म के प्रवेश का मार्ग प्रशस्त किया हैं। निःसंदेह यही बाबासाहेब डॉ.अम्बेडकर के कोट की जेब का अर्थ है और दिनांक 25 सितंबर 1956 सिख धर्म से संबंधित और 03 जून 1990 को बौद्ध धर्म से संबंधित संविधान संशोधन इसका दृश्य परिणाम हैं।
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