छत्रपति शिवाजी भोसले का जन्म 19 फ़रवरी, 1630 को हुआ था। इनके पिता का नाम शाहजी भोसले था और इनकी माता का नाम जीजाबाई था। इनकी सन्तानो के नाम संभाजी, राजाराम, रमाईबाई आदि थे। इनकी मृत्यु 3 अप्रैल, 1680 को हुई थी और इनकी समाधि रायगढ़ में स्थित हैं। छत्रपति शिवाजी भोसले (1630-1680 ई.) भारत के एक महान राजा एवं रणनीतिकार थे जिन्होंने 1674 ई. में पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी। इसके लिए उन्होंने मुगल साम्राज्य के शासक औरंगज़ेब से संघर्ष किया। सन् 1674 में रायगढ़ में उनका राज्याभिषेक हुआ और वह "छत्रपति" बने। छत्रपती शिवाजी महाराज ने अपनी अनुशासित सेना एवं सुसंगठित प्रशासनिक इकाइयों कि सहायता से एक योग्य एवं प्रगतिशील प्रशासन प्रदान किया। उन्होंने समर-विद्या में अनेक नवाचार किए तथा छापामार युद्ध (guerilla warfare) की नयी शैली (शिवसूत्र) विकसित की। उन्होंने प्राचीन हिन्दू राजनीतिक प्रथाओं तथा दरबारी शिष्टाचारों को पुनर्जीवित किया और मराठी एवं संस्कृत को राजकाज की भाषा बनाया। वे भारतीय स्वाधीनता संग्राम में नायक के रूप में स्मरण किए जाने लगे। बाल गंगाधर तिलक ने राष्ट्रीयता की भावना के विकास के लिए शिवाजी जन्मोत्सव की शुरुआत की।
सिख धर्म के उद्भव के काल में दक्षिण- पश्चिम भारत के सह्याद्री पहाडियों की गोद में शुद्र शाहजी भोसले के तरुण तनय शिवाजी एक भयंकर उग्रता के साथ अपने उच्चाशा के स्वप्न शिखर पर पहुँचने के लिए परिश्रमी शुद्र मावली मराठा- महार किसानों के हल के अग्रभाग को सैनिकों के तलवार के रूप में तब्दील एक शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापित किये। पहले से ही महाराष्ट्र प्रदेश में सन्यासी रामदास, तुकाराम आदि के निरंतर सक्रियता से बहुजन समाज में नवजागरण का भाव विद्यमान था। उन दिनों मुसलमान शासन के अग्रग्रासी नीति के फलस्वरूप ब्राहमणों के शास्त्रों द्वारा परिचालित हिन्दू समाज संकटग्रस्त हो गया था। मुस्लिम प्रभुत्व के उस दौर में ब्राह्मणवादी समाज के अस्तित्व रक्षा के लिए एक नायक के अविर्भाव की जरुरत थी। ऐसी स्थिति में शिवाजी का अविर्भाव हुआ। सर्वप्रथम उन्होंने मावली किसानों को लेकर छोटी-छोटी सेनाएं बनायीं और फिर छापामार युद्ध पढ़ती को अपनाया। इस युद्ध पद्धति के जरिये उन्होंने आदिल शाह के कब्जे से कई दुर्ग मुक्त करा लिए। उनके इन दुसाहसिक कार्यों से कुपित होकर आदिल शाह ने उनके पिता को गिरफ्तार कर लिया। इससे कुछ सालों तक शिवाजी खामोश रहकर धीरे-धीरे विशाल सेना संगठित करने में लग गए। बाद में इसी सेना के जरिये उन्होंने विशाल मराठा साम्राज्य का विस्तार किया। हिन्दू समाज में हिन्दू धर्मशास्त्रों द्वारा शुद्रातिशूद्रों के लिए हथियार स्पर्श निषिद्ध था। किन्तु हिन्दू धर्म के निषेधाज्ञायों की उपेक्षा कर शिवाजी अपने असाधारण शौर्य और रणकौशल से मुसलमानी सत्ता के खिलाफ संग्राम चलाकर महाराष्ट्र में मराठा साम्राज्य कायम कर लिए।
साम्राज्य विस्तार के बाद महानायक का विजय मुकुट धारण किये वही शिवाजी जब सन 1673 में विधिवत अपने राज्याभिषेक की तैयारी में जुटे, महाराष्ट्र में तहलका मच गया काँप उठा महारष्ट्र का ब्राह्मण समाज एक शूद्र के राज्याभिषेक की बात सुनकर। ऐसे में ब्राह्मणों का प्रभावशाली तबका उनके राज्याभिषेक के खिलाफ उठ खड़ा हुआ। ब्राह्मणों के प्रबल विरोध के समक्ष मुगलों के शिराओं में आतंक का संचार करने वाले महानायक शिवाजी को समझौते के लिए बाध्य होना पड़ा। समझौता स्वरुप करोड़ों रूपये के घूस के विनिमय में काशी के पंडित गंगा भट्ट को राजी कराया गया। भट्ट ने उदयपुर के राणाओं की वंश तालिका से उनका नाम जोड़कर क्षत्रिय के रूप में उत्तोलित करने का सफल उपक्रम चलाया। क्योंकि हिन्दू धर्म शास्त्रों के मुताबिक सिर्फ क्षत्रिय ही राजा बनने का अधिकारी हो सकता है. क्षत्रिय के रूप में उत्तोलित होने के लिए शिवाजी ब्राह्मणों के मध्य प्रचुर स्वर्ण मुद्रा वितरित कर धूमधाम से 8 दिन व्यापी 'व्रात्योष्टम यज्ञ' कराये। यज्ञ शुद्धिकरण द्वारा शूद्र से उन्हें क्षत्रिय के रूप उत्तोलित किया गया। इसके बाद विशाल अर्थदान के विनिमय में ब्राह्मणों को उनके राज्याभिषेक के लिए आशीर्वाद देने को तैयार किया गया। किन्तु करोड़ों की नकदी और प्रचुर स्वर्ण पाने के बावजूद ब्राह्मणों ने मुगलिया सलतन के त्रास और इतिहास स्रष्टा शिवाजी का राज्याभिषेक हाथ से नहीं, बाएं पैर के अंगूठे से किया। राज्याभिषेक के बाद राजा बने, रायगढ़ दुर्ग के छत्रपति शिवाजी। लेकिन शूद्र से नकली क्षत्रिय बने शिवाजी का शासन ब्राह्मणों ने लम्बे समय तक कायम नहीं रहने दिया।
शूद्र शक्ति के नौका पर सवार होकर विपद-वैतरणी पार करते ही ब्राह्मण उनको शेष करने में जुट गए और जल्द ही कर भी दिये। शिवाजी राजा बनें 1674 में और उनकी मृत्यु हुई 3 अप्रैल 1680 को। थोड़े ही अन्तराल में उनके दोनों पुत्र संभाजी (1680- 1689 ) और राजाराम ( 1689- 1700) भी काल कवलित हुए। थोड़े से अन्तराल के मध्य शिवाजी और उनके दोनों पुत्रों का कालकवलित होना निश्चय ही एक बड़ा षडयत्र था, जिसे उद्घाटित करने के लिए इतिहासकारों ने अपेक्षित मेहनत नहीं की। बहरहाल शिवाजी के दोनों पुत्रों के मृत्यु के बाद सत्ता शिवाजी के पौत्र व संभाजी के पुत्र छत्रपति शाहू जी के हाथ में आई, जिन्होंने 1713 में प्रधानमंत्री या पेशवा पद पर नियुक्त किया चित्तपावन ब्राह्मण बालाजी विश्वनाथ को 1720 में शाहू जी ने बालाजी के मृत्युपरांत उनके सुयोग्य पुत्र बाजीराव प्रथम को उनके स्थान पर नियुक्त किया। 28 अप्रैल , 1740 को बाजीराव के आकस्मिक निधन के बाद शाहूजी ने उनके ज्येष्ठ पुत्र नाना साहेब को पेशवा नियुक्त किया। किन्तु 15 दिसंबर, 1749 को शाहू महाराज की मृत्यु के बाद मराठा साम्राज्य की राजसत्ता पेशवाओं के हाथ में केन्द्रित हो गयी और पूना बन गया पेशवाई सत्ता का केंद्र।
'पेशवा' फारसी शब्द है जिसका अर्थ होता है 'अग्रणी'। मराठा साम्राज्य के प्रधानमन्त्रियों को पेशवा (मराठी में पेशवे ) कहा जाता था। ये राजा के सलाहकार परिषद अष्टप्रधान के सबसे प्रमुख होते थे। राजा के बाद इन्हीं का स्थान आता था। यह छत्रपति शिवाजी महाराज के अष्टप्रधान मन्त्रिमण्डल में प्रधानमन्त्री अथवा वजीर का पर्यायवाची पद था। पेशवा का पद वंशानुगत नहीं था। पेशवाई सत्ता के वास्तविक संस्थापन का, तथा पेशवा पद को वंशपरम्परागत रूप देने का श्रेय ऐतिहासिक क्रम से सातवें पेशवा, बालाजी विश्वनाथ को है। बालाजी विश्वनाथ के समय से ही पेशवा लोग महाराष्ट्र के महज मंत्री नहीं, एकछत्र शासक रहे।
एक स्वाभाविक परिणति स्वरुप पेशवाई ब्राहमणों की हुई अर्थात बाजीराव लोग उत्तराधिकार सूत्र से पेशवाई करने लगे। इन पेशवाओं के ज़माने में मूल भारतीय बहुजन समाज पर जो जघन्य अत्याचार, उत्पीड़न हुए उसे देखकर नरक के राजा यमराज भी शर्मिंदा हुए होंगे। शुद्रातिशूद्रों पर अत्यचार के जरिये मानों वे शुद्र शिवाजी के राज्याभिषेक का प्रयाचित किये थे। पेशवाओं का ज़माना बहुजनों से सूद के साथ मूल चुकाने का इतिहास था। अंततः अंग्रेजों के नेतृत्व में 1818 के पहले दिन 500 महारों ने पेशवाओं की विशाल फ़ौज का सफाया कर बहुजनों को पेशवाओं से निजात दिलाया। पेशवाओं ने मानवता को जिस तरह कलंकित किया, उसकी कालिमा धोने में अंग्रेजों के भी पसीने छूट गए।
अंत में! छत्रपति शिवाजी एक ऐसे महान योद्धा के रूप में याद किये जायेंगे, जिन्हें बहुजनों के राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले ने शुद्रातिशूद्रों का नायक करार दिया। इस महानायक ने विश्व इतिहास में शौर्य का विरल इतिहास रचने के लिए हिन्दू धर्म शास्त्रों की अवहेलना करने का साहस जुटाया, किन्तु अंततः राज्याभिषेक के लिए ब्राह्मणों से समझौता करने के लिए विवश हुए और उनके राज्याभिषेक की कीमत बहुजनों को पेशवा ब्राह्मणों का अमापनीय अत्याचार सहकर अदा करनी पड़ी।
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