Sant Gadge Baba

सन्त गाडगे बाबा का जीवन परिचय एवं उनके कार्य

By Ritu Bhiva February 27, 2022 07:56 0 comments

सन्त गाडगे बाबा लोकसेवा, स्वच्छता के प्रतीक,बुद्ध की विचारधारा के प्रबल समर्थक,पाखण्ड एवं मूर्ति पूजा के विरोधी, मनुवादियों के कट्टर विरोधी, शिक्षा के प्रचारक श्रमजीवी सन्त, ऐसे महापुरुष के जन्म दिवस पर मानव विकास संस्थान की ओर से शत-शत नमन वंदन एवं श्रद्धा सुमन समर्पित करते हैं। साथ ही मानवतावादी और संविधान प्रेमियों को हार्दिक बधाई व मंगल कामनाएं हैं।

 सन्त गाडगे बाबा जन्म महाराष्ट्र के अकोला जिले की तहसील अंजन गांव सुरजी के शेणपुर गांव में 23फरवरी1876 ई में भारतीय मूलनिवासी बहुजन समाज की धोबी जाति में हुआ था। उनके पिताजी का नाम झिंगरा जी एवं माता जी का नाम सखू बाई था। उनके बचपन का नाम "देवीदास डेबू जी झिंगराजी जाणोकर" था। स्त्री शूद्रोनाधीयताम् के अनुसार  स्त्रियों और शूद्रों को पढ़ने लिखने का अधिकार नहीं था। पढ़ाई तो दूर, साफ़-सुथरे कपड़े पहनना, बड़ा मकान बनाना तक मना था। गाडगे बाबा के बचपन का कार्य जानवर चराना एवं खेती बाड़ी में काम करना था। गांव के पशु चराने वाले दोस्तों के साथ एक भजन मंडली बना ली थी। जो बुद्धवादी या मानवतावादी विचारधारा के सन्तों- गुरूकबीर, गुरूरविदास, गुरूनानक देव, गुरूनामदेव, गुरूदादू, गुरूतुकाराम एवं गुरूचोखा मेला आदि सन्तगुरुओं के भजन गाते थे।

वे भजन मंडली के माध्यम से
दलितों( बहुजनों) को शिक्षा के प्रति जागरूक करना।
अन्धविश्वासों से दूर करना।
 जीव हत्या न करना।
मद्यपान से दूर  रहना।
स्वच्छता पर ध्यान देना।
मूर्ति पूजा न करना।


छुआ-छूत ख़तम करना एवं चरित्र निर्माण पर विशेष जोर देते थे।


 तथागत भगवान बुद्ध की विचारधारा को लेकर चलने वाले डेबूजी अर्थात् गाडगे बाबा ने कहा कि हमें स्वयं ही अपने इस दलित, पीड़ित , वंचित एवं पिछड़े समाज के लिए कुछ करना होगा। यह दर्द हमारा है तो इसका इलाज भी हमें ही करना होगा। समाज सेवा हेतु घर का त्याग कर दिया। गांवों में सफाई करना, उससे सम्बन्धित उपदेश देना। साफ़ सफाई के बदले जो मेहनताना मिलता उससे उन्होंने ने कई विद्यालय, छात्रावास,धर्मशाला, बारातशाला, आश्रमस्कूल, महिला आश्रम, गौशाला, अस्पताल, तालाब व कुएँ बनवाए। बाबा तो अनपढ़ थे लेकिन शिक्षा के महत्व को बखूबी जानते थे। सारी समस्याओं की जड़ ही अशिक्षा है, अज्ञान है। वे ऐसा मानते थे। अतः दलितों व पिछड़ों को एक बार ललकारते हुए कहा कि कहते हो पैसा नहीं है, तो खाने की थाली बेंच डालो, हाथ पर रोटी खाओ, पत्नी के लिए कम कीमत की साड़ी खरीदो, समधी की खातिरदारी मत करो।

गाडगे बाबा की धर्मपत्नी का नाम कुंताबाई था। बाबा की दो बेटियां  जिनकी  शादी हो चुकी थी। एक  पुत्र गोविन्दा था। बाबा के गृह त्याग के बाद परिवार को नाना प्रकार के कष्ट झेलने पड़े। पागल कुत्ते के काटने से गोविन्दा की मृत्यु हो गई ,किन्तु पुत्र की मृत्यु पर जरा भी गाडगे बाबा आहत नहीं हुए और न ही  उन्होंने  मानव कल्याण का मिशन छोड़ा। गाडगे बाबा और डॉ अम्बेडकर संत गाडगे बाबा, बाबा साहेब डॉ. भीम राव अम्बेडकर के समकालीन थे और उम्र में 15वर्ष बड़े थे वैसे तो गाडगे बाबा के लाखों  अनुयायी थे। जिनमें मजदूर से लेकर मंत्री तक थे। लेकिन विश्व के महापुरुषों में से एक बाबा साहेब डॉ भीम राव अम्बेडकर भी उनके प्रशंसक थे। वे गाडगे बाबा से यदा- कदा मिलते भी रहते थे। डॉ अम्बेडकर गाडगे बाबा को बोधिसत्व सा सम्मान देते थे। वे गुरूज्योतिबा राव फूले के बाद सबसे बड़ा त्यागी जन सेवक मानते थे। दोनों ही एक दूसरे के प्रशंसक थे। डॉ अम्बेडकर कभी- कभी गाडगे बाबा के भजन - उपदेश सुनने जाया करते थे। गाडगे बाबा अपने अनुयायियों से डॉ अम्बेडकर की जय के नारे भी लगवाते थे। डॉ अम्बेडकर को शोषितों, पीड़ितों का उद्धारक कहा था। बाबा साहेब डॉ भीम राव अम्बेडकर ने भी कई अवसरों पर गाडगे बाबा को शाल ओढ़ा कर सम्मानित किया था।

 जब बाबा साहेब डॉ भीम राव अम्बेडकर जी का आकस्मिक परिनिर्वाण 06 दिसम्बर 1956 को हुआ तो वे भीतर से टूट गये क्योंकि वे मानते थे कि भारत के अछूतों, पिछड़ों को डॉ भीम राव अम्बेडकर के रूप में एक मसीहा मिल गया है। उन्होंने ने दुखी मन से  कहा कि बाबा साहेब दलित समाज के सात करोड़ बालकों को छोड़ कर चले गए हैं। उनकी मृत्यु से ये बच्चे निराधार हो गये। अभी-अभी ये बाबा साहेब का हाथ पकड़ कर चलने लगे थे।अगर बाबा साहेब कुछ दिन और रहते तो ये बालक चलने फिरने की हिम्मत करने लगे थे। डॉ भीम राव अम्बेडकर के परिनिर्वाण से सन्त गाडगे बाबा बहुत ही दुःखी हुए। उन्होंने दवाइयां लेना छोड़ दी थी।अन्ततः 20 दिसम्बर 1956 को वे भी परिनिर्वाण को प्राप्त हो गए।

1मई1983 में नागपुर विश्वविद्यालय को महाराष्ट्र सरकार ने सन्त गाडगे बाबा अमरावती विश्वविद्यालय की स्थापना की। 20सितम्बर 1998 में उनकी पुण्यतिथि पर भारत सरकार ने उनके नाम पर टिकट जारी किया। 2001में महाराष्ट्र सरकार ने उनकी स्मृति में सन्त गाडगे बाबा ग्राम स्वच्छता अभियान शुरू किया।सन्त गाडगे बाबा सच में एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक संस्था थे। सन्त गाडगे बाबा की बुद्धवादी विचारधारा को अपना कर भावी पीढ़ी की पराधीनता और दुर्दशा को ध्यान में रखते हुए आज की देश व्यापी बौद्धिक क्रांति को सफल बनाने में सहयोग करें।
           

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