माता रमा को डॉ. भीम राव अम्बेडकर का बेहद ही भावुक करने वाला पत्र
By Ritu Bhiva February 22, 2022 03:25 0 commentsरमा! कैसी हो रमा तुम?
तुम्हारी और यशवंत की आज मुझे बहुत याद आई। तुम्हारी यादों से मन बहुत ही उदास हो गया। यहां के अखबारों में मेरे प्रभावी भाषण काफी चर्चा में रहे हैं। जब मैं यहां विदेश में अंग्रेजों के जीवन स्तर को देखता हूं तो मेरी आंखों के सामने अपने देश के सभी पीड़ित जनों का चित्र उभर आता है। पीड़ा के पहाड़ तले ये लोग हजारों सालों से दबे हुए हैं। रमा मैं इनके लिए लड़ रहा हूं।
रमा, यशवंत का ख्याल रखना। उसे सुबह समय से जगा दिया करना, जैसे मेरे बाबा मुझे जगाया करते थे। मुझे यह अनुशासन उन्होंने ही सिखाया। रमा हमारे इकलौते बचे बेटे यशवंत को भी ऐसी ही पढ़ाई की लगन लगाना। किताबों के लिए उसके मन में उत्कृष्ट इच्छा जगानी होगी।
रमा, अमीरी-ऐश्वर्य यह चीजें किसी काम की नहीं। तुम अपने इर्द-गिर्द देखती ही हो। लोग ऐसी ही चीजों के पीछे हमेशा से लगे हुए रहते हैं। इसी कारण उनकी जिंदगी जहां से शुरू होती है वहीं पर ठहर जाती है। इन लोगों की जिंदगी समाज के किसी काम की नही। हमारा काम ऐसी जिंदगी जीने से नहीं चलेगा। मेरे पास तुम्हें देने के लिए दुख के सिवा कुछ भी नहीं है। दरिद्रता गरीबी के सिवाय हमारा कोई साथी नहीं। मुश्किलें और दिक्कतें मेरा पीछा नहीं छोड़ती हैं। उत्कृष्ट शिक्षा लेने के बावजूद अपमान अवहेलना मेरे साथ छांव जैसी बनी हुई है। कभी-कभी तुम्हारी स्थिति को देख कर सिहर उठता हूं। तुम मेरे साथ इस आग में जल रही हो। रमा, मैं निर्दयी नहीं हूं मेरे पास भी हृदय है और मैं यहाँ तड़पता हूं तुम्हारे लिए। इस बार में खत बाएं हाथ से लिख रहा हूं और दाएं हाथ से उमड़ आये आँसू पौंछ रहा हूं।
रमा, तुम यह पत्र पढ़ रही हो और तुम्हारी आंखों में आंसू आ गए हैं, गला भर आया है, तुम्हारा दिल थरथरा रहा है, होंठ काँप रहे हैं, मन में उमड़े हुए शब्द होठों तक चल कर भी नहीं आ सकते, इतनी तुम व्याकुल हो गई हो।
रमा, तुम मेरी जिंदगी में नहीं आती, तुम जीवनसाथी के रूप में न मिली होती तो क्या होता? मात्र सांसारिक सुख को ध्येय समझने वाली स्त्री मुझे छोड़कर कब की चली गई होती।आधे पेट खाना, उपले पाथना, चूल्हे के लिए इंधन जुटाकर लाना, घर के चिथड़े हुए कपड़ों को सींते रहना, एक माचिस में पूरा माह निकालना, इतने ही तेल और अनाज नमक से महीने भर का काम चलाना। किन शब्दों में धन्यवाद करूं तुम्हारा।
रमा, तुम न होती तो मेरा मन टुकड़े-टुकड़े हो गया होता, मेरे हौसले में दरार पड़ गई होती, सब कुछ तोड़ मरोड़ कर रह जाता, सब दुखमय हो जाता। मैं शायद बोना पौधा ही बना रहता, भीमा को डॉ. भीमराव अंबेडकर बनाने का श्रेय तुम्हें जाता है। संभालना खुद को, जैसे संभालती हो मुझे। जल्द ही आने के लिए निकलूंगा, फिक्र नहीं करना सबको कुशल कहना।
तुम्हारा,
भीमराव
30 दिसंबर, 1930
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