Babu Jagjeevan Ram

बाबू जगजीवन राम की ऐसी जानकारी जो आपने कभी नहीं सुनी होगी

By Ritu Bhiva March 20, 2022 11:52 0 comments

देश का सबसे बड़ा दलित नेता, जिसने इंदिरा गाँधी को 1977 को चुनाव हरवा दिया था। बाबू जगजीवन राम देश के सबसे बड़े दलित नेता जो देश की आज़ादी के साथ ही दलित राजनीति का पोस्टर बॉय बन गया था।  इस नेता के नाम पर लगातार 50 साल तक देश की संसद में बैठने का रिकॉर्ड है।  इस नेता के नाम सबसे ज़्यादा बरस तक कैबिनेट मंत्री बने रहने का रिकॉर्ड है।  इस नेता के बारे में ईस्टर्न कमांड के लेफ्टिनेंट जैकब ने अपने मेमोराइट्स में लिखा है कि भारत को इनसे अच्छा रक्षामंत्री कभी नहीं मिला।  ये नेता दो बार प्रधानमंत्री पद की कुर्सी के सबसे करीब पहुंचने के बाद भी उस कुर्सी पर नहीं बैठ पाया

बाबू जगजीवन राम का 6 जुलाई 1986 को देहांत हुआ था,  5 अप्रैल 1908 को बिहार के भोजपुर में जन्मे थे। 1946 की अंतरिम सरकार में पंडित नेहरू ने इन्हें लेबल मिनिस्टर बनाया था, जो उस कैबिनेट के सबसे कम उम्र के सदस्य थे, संसद में बैठने का इनका क्रम 6 जुलाई 1986 को देहांत के साथ ही खत्म हुआ।

(1)  जब स्कूल में दलितों के लिए रखा घड़ा तोड़ दिया - जगजीवन राम जब आरा में रहते हुए हाईस्कूल की पढ़ाई कर रहे थे, तब इन्होंने एक दिन स्कूल के घड़े से पानी पी लिया।  ये वो दिन थे,  जब स्कूलों,  रेलवे स्टेशनों या बाकी सार्वजनिक जगहों पर पानी के दो घड़े (स्रोत) रखे जाते थे।  एक हिंदुओं के लिए और दूसरा मुस्लिमों के लिए, जगजीवन के पानी पीने पर प्रिंसिपल के पास ये शिकायत पहुंची कि एक अछूत लड़के ने हिंदू घड़े से पानी पी लिया है,  प्रिंसिपल साहब भी ऐसे कि उन्होंने स्कूल में तीसरा घड़ा रखवा दिया,  ये तीसरा घड़ा दलितों के लिए था,  जगजीवन राम ने वो घड़ा तोड़ दिया,  नया घड़ा रखवाया गया, तो जगजीवन ने उसे भी तोड़ दिया,  तब जाकर प्रिंसिपल को अक्ल आई और उन्होंने समाज के कथित अछूतों के लिए अलग से घड़ा रखवाना बंद कर दिया।

(2)  BHU में पढ़ने के दौरान गाजीपुर से नाई बाल काटने आता था - इस किस्से की शुरुआत भी आरा के स्कूल से ही होती है, एक बार इनके स्कूल के एक कार्यक्रम में शामिल होने आए, पंडित महामना मदन मोहन मालवीय वही मालवीय,  जिन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की थी,  जगजीवन ने मालवीय के स्वागत में एक भाषण दिया,  मालवीय इस भाषण से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने जगजीवन को BHU में पढ़ने के लिए आमंत्रित किया।  जगजीवन BHU पहुंचे,  तो वहां दो चीज़ों ने उनका स्वागत किया,  पहली बिड़ला स्कॉलरशिप और दूसरा वहां का भारी भेदभाव,  उन्हें कक्षा में दाखिला मिल गया था,  लेकिन समाज में बराबरी नहीं मिली थी,  मेस में बैठने की इजाज़त थी, लेकिन कोई उन्हें खाना परोसने को राजी नहीं था,  पूरे बनारस में कोई नाई उनके बाल काटने को राजी नहीं था,  ऐसे में गाजीपुर से एक नाई उनके बाल काटने बनारस आता था,  BHU में ऐसा भेदभाव देख जगजीवन बनारस छोड़कर कलकत्ता चले गए,  वहां उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की और बिहार लौटकर राजनीति शुरू की,  BHU का उनका ये किस्सा उनकी बेटी मीरा कुमार ने सुनाया था, जो 2009 से 2014 तक लोकसभा की स्पीकर रहीं,  और जगजीवन राम की राजनीति का असर ये था।  कि उस दौर में कांग्रेस और ब्रिटिशर्स दोनों ही इन्हें अपने पाले में करने की कोशिश कर रहे थे, हालांकि सफलता अंतत: कांग्रेस को मिली।

(3)  मुश्किल वक्त में इंदिरा गाँधी के साथ बने रहे, फिर चुनाव हरवा दिया - 25 जून 1975 को इलाहाबाद की हाईकोर्ट बेंच के जस्टिस सिन्हा ने फैसला सुनाया कि रायबरेली से इंदिरा गांधी का निर्वाचन अयोग्य है,  ये राजनारायण की पिटीशन पर सुनाया गया फैसला था,  जिसके बाद अगर इंदिरा गांधी दोषी पाई जातीं,  तो 6 साल तक उनके लोकसभा चुनाव लड़ने पर रोक लग जाती,  ये मुश्किल था पर वो इंदिरा से साथ बने रहे. इंदिरा गाँधी को भी जगजीवन की हैसियत का इलहाम था,  जिसकी वजह से उन्होंने जगजीवन को कांग्रेस (इंदिरा गाँधी) का पहला राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया था,  इससे दलितों में ये संदेश भी गया कि इंदिरा गाँधी को उनकी चिंता है। खैर, निर्वाचन अयोग्य के फैसले के बाद जगजीवन राम को लग रहा था। कि इंदिरा गाँधी उन्हें सत्ता की चाबी सौंपेंगी, क्योंकि वो उनके लिए कोई राजनीतिक चुनौती खड़ी नहीं करेंगे,  लेकिन सिद्धार्थ शंकर रे और संजय गांधी के सुझाव पर इंदिरा गाँधी ने राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को संविधान के एक क्लॉज़ का हवाला देते हुए इमरजेंसी का ऐलान कर दिया,  जगजीवन के हाथ चाबी तो नहीं लगी,  पर वो कैबिनेट में बने रहे,  इमरजेंसी खत्म होने के बाद 23 जनवरी 1977 को चुनाव का ऐलान हुआ,  हालांकि तब तक न तो इंदिरा गाँधी को हारने की आशंका थी और न जनता पार्टी को जीतने की उम्मीद।

लेकिन फरवरी 1977 में जगजीवन राम ने अचानक कांग्रेस छोड़ दी। पहले उन्होंने अपनी पार्टी बनाई 'कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी' और फिर जनता पार्टी के साथ चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया,  जगजीवन राम के इस फैसले से इंदिरा गाँधी को विरोधियों में उत्साह आ गया,  उनके सुर जो अब तक बेदम थे, उनमें जोश आ गया,  जनता पार्टी को भी पता था कि जगजीवन राम के ज़रिए बड़ा दलित वोट उनके पास आ रहा है,  इंदिरा गाँधी को भी कुर्सी जाती हुई दिखाई देने लगी,  चुनाव के नतीजे भी ऐसे ही आए,  यहां तक सबको ये लग रहा था कि अब आखिरकार जगजीवन राम प्रधानमंत्री बनेंगे,  लेकिन यहां मोरारजी देसाई ने लंगड़ी लगा दी।

(4)  जब जेपी के हाथ जोड़ने से पहले जगजीवन का दिल पसीज गया - बाबू जगजीवन राम में भी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने की महत्वाकांक्षी थी,  उन्हें इस बात से आपत्ति थी कि जिस पार्टी के सबसे ज़्यादा सांसद उत्तर भारत से आए हैं,  उनकी अगुवाई कोई गुजराती कैसे कर सकता है,  तब प्रधानमंत्री पद के तीन दावेदार थे देसाई,  जगजीवन और चौ. चरण सिंह,  पर जयप्रकाश के दखल के बाद तय हुआ कि मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री होंगे,  इससे जगजीवन राम इतना नाराज़ हुए कि उन्होंने देसाई की कैबिनेट में शामिल होने से इनकार कर दिया,  शपथ-ग्रहण समारोह में भी शामिल नहीं हुए,  इसके बाद जेपी को एक बार फिर दखल देना पड़ा, जेपी जगजीवन से मिले,  उनसे कैबिनेट में शामिल होने का बेहद भावुक आग्रह किया,  ये बातचीत ऐसे भावों के साथ हुई कि एक बार को जयप्रकाश लगभग रुआंसे हो गए,  उनका जगजीवन के सामने हाथ जोड़ना ही बचा था,  पर इसके पहले ही जगजीवन का दि पसीज गया,  जगजीवन से लेकर जनता पार्टी के बाकी नेताओं और यहां तक कि इंदिरा गाँधी को भी ये पता था कि जेपी के फैसले सही-गलत हो सकते हैं,  लेकिन उनके अंदर कोई व्यक्तिगत लोभ नहीं है,  यही वजह थी कि जगजीवन कैबिनेट में शामिल होने के राजी हो गए,  उन्हें रक्षा मंत्रालय दिया गया और चौ. चरण सिंह के साथ उप-प्रधानमंत्री का पद भी,  जगजीवन राम ने 1977 के चुनाव की हवा पलट दी थी,  जिसने इंदिरा गाँधी को सत्ता से बेदखल कर दिया था,  इंदिरा गाँधी ने इस बगावत को कभी माफ नहीं किया,  जगजीवन राम की राजनीतिक पूंजी समेटने में सबसे बड़ा योगदान इंदिरा गाँधी की छोटी बहू मेनका गांधी का था।

(5)  जब बाबू ने 'बॉबी' को हरा दिया - 1970 में राज कपूर की फिल्म रिलीज़ हुई थी 'मेरा नाम जोकर'  इसमें राज कपूर ने अपनी सारी संपत्ति लगा दी थी और कर्ज भी लिया था,  फिल्म फ्लॉप हो गई और राज कपूर बर्बादी की कगार पर आ गए,  फिर उन्होंने एक छोटे डिस्ट्रीब्यूटर चुन्नीभाई कपाड़िया की बेटी डिंपल कपाड़िया और अपने बेटे ऋषि कपूर के साथ एक फिल्म बनाई 'बॉबी’' ये 1973 में रिलीज़ हो गई और अपने कॉन्टेंट की वजह से हिट हो गई, ये वो दौर था जब फिल्में आम जनता तक बेहद मुश्किल से पहुंच पाती थीं,  ये टीवी पर ब्लॉकबस्टर फिल्में दिखाने का ज़माना नहीं था,  पर 1977 के चुनाव से पहले ये फिल्म इतवार के एक रोज़ टीवी पर दिखाई गई,  असल में बात ये थी कि 1977 के चुनाव से पहले दिल्ली के रामलीला मैदान में इंदिरा गांधी की विपक्षी पार्टियों के नेताओं की एक बड़ी जनसभा होनी थी,  ये रैली अटल बिहारी वाजपेयी के भाषण के लिए भी याद रखी जाती है,  जिसमें जगजीवन राम की वजह से भारी भीड़ आई थी, पर इस रैली में लोगों को पहुंचने से रोकने के लिए संजय गांधी के करीबी और सूचना-प्रसारण मंत्री विद्याचरण शुक्ला ने रैली वाले दिन ही टीवी पर 'बॉबी' दिखाने का फैसला किया,  उन्हें उम्मीद थी कि लोग फिल्म देखने के लिए घर पर रुके रहेंगे,  पर शुक्ला गलत साबित हुए,  रैली में भारी तादाद में लोग पहुंचे और बारिश होने के बावजूद वो छाता लेकर देर रात तक डटे रहे,  अगले दिन अखबारों में हेडिंग लगी "Babu beats Bobby"

(6)  जब पुरी के जगन्नाथ मंदिर में बिना घुसे लौट आए थे - जगजीवन राम का एक किस्सा पुरी के जगन्नाथ मंदिर से जुड़ा है,  जहां वो अपने परिवार के साथ दर्शन करने गए थे,  मंदिर पहुंचने पर उनसे कहा गया कि वो बड़े नेता हैं,  इसलिए उन्हें तो अंदर जाने दिया जाएगा,  लेकिन उनके परिवार को मंदिर के अंदर जाने की इजाज़त नहीं दी गई,  ऐसा उनके दलित होने की वजह से किया जा रहा था,  ऐसे में जगजीवन राम खुद भी मंदिर के अंदर नहीं गए और वहीं से वापस चले आए,  जनवरी 1978 में उन्होंने बतौर रक्षामंत्री बनारस में संपूर्णानंद की मूर्ति का अनावरण किया था,  जब वो वहां से चले गए,  तो वहां के कुछ ब्राह्मणों ने ये कहकर मूर्ति को गंगाजल से धोया कि एक दलित के छूने से मूर्ति अपवित्र हो गई है,  इस पर जगजीवन ने कहा था,  जो व्यक्ति ये समझता है कि किसी के छू देने से पत्थर की मूर्ति अपवित्र हो गई,  उनका दिमाग पत्थर जैसा है।

0 Comments so far

Jump into a conversation

    No comments found. Be a first comment here!

Your data will be safe! Your e-mail address will not be published. Also other data will not be shared with third person.
All fields are required.